गंगा का अवतरण

एक बार, कपिल ऋषि की तपस्या में राजा सागर के पुत्रों ने व्यवधान डाला।

कपिल की क्रोधाग्नि में वे सभी भस्म हो गए।

पर उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल पाई थी।

कपिल ऋषि ने राजा सागर को सलाह दी, “गंगा को नीचे ले आएँ।

वह जब पुत्रों के भस्म के ऊपर से बहेंगी तो उन्हें मुक्ति मिलेगी।”

राजा सागर का प्रयत्न व्यर्थ रहा।

उनके वंशज राजा भगीरथ ने ब्रह्मा से गंगा को धरती पर भेजने की प्रार्थना की।

ब्रह्मा के अनुरोध पर गंगा ने कहा, “हे ब्रह्मदेव! मैं ऐसा नहीं कर सकती।

धरती पर मैं अपना वेग नहीं संभाल पाऊँगी... यदि धरती पर बाढ़ आ गई तो?"

ब्रह्मा ने कहा, “गंगा, शिव से जाकर सहायता माँगो।”

गंगा ने जाकर शिव को अपनी चिंता बताई।

शिव ने आश्वासन दिया, “गंगा, चिंता मत करो।

मैं तुम्हें अपने सिर पर जटाओं में धारण करूँगा और तुम्हारे वेग को रोकूँगा।"

इस प्रकार शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया।

फिर गंगा एक पतली धारा के रूप में नीचे धरती पर आईं।