ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की दक्षायिनी या सती नामक एक पुत्री थी।
अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध उसने शिव भगवान से विवाह कर लिया था।
दक्ष सदा अपने दामाद के अनादर का अवसर ढूँढते रहते थे।
दक्ष ने एक महायज्ञ के लिए शिव को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया।
अपने पिता के घर यज्ञ में जाने के लिए दक्षायिनी (सती) ने शिव से अनुमति माँगी।
शिव ने कहा, “दक्षायिनी, तुम्हारे पिता ने जान-बूझकर हम दोनों को यज्ञ के लिए निमंत्रित नहीं किया है।
मुझे दामाद नहीं स्वीकारने के कारण हमारे निरादर का यह उनका तरीका है।”
किन्तु सती अपनी जिद पर अड़ी रहीं।
शिव के मना करने पर भी सती यज्ञ में भाग लेने के लिए गईं।
यज्ञ होते समय शिव और सती को छोड़कर सभी के नामों की आहुति दी गई।
सती ने दक्ष से कहा, “पिता जी, मैं शिव की प्रतिनिधि बनकर आई हूँ।
कृपया हमारे नाम की भी आहुति दें।
” दक्ष ने कहा, “अपने नाम की आहुति माँगने का तुम्हारा साहस कैसे हुआ?"
दक्ष टेढ़ी मुस्कान से बोले, “मैं तुम्हें अपने
परिवार का सदस्य नहीं समझता हूँ... मैं नहीं चाहता था कि तुम यहाँ आओ..."
क्रोधित होकर सती ने दक्ष को चेतावनी दी, “हे घमण्डी व्यक्ति !
शिव की शक्ति आपको और आपके पूरे राज्य को बर्बाद कर देगी।
इतना कहकर सती ने यज्ञ की अग्नि का आह्वान किया और जलती हुई अग्नि में कूद गईं।