शक्ति पीठ का उद्भव

सती के आत्मदाह की सूचना मिलते ही शिव दक्ष के महल में आए और

उनका सिर धड़ से अलग कर दिया।

उन्होंने सती के अधजले शरीर को अपने कंधे पर उठाया

और निरुद्देश्य विश्व में घूमने लगे।

वे तांडव कर रहे थे।

अपने सारे काम छोड़कर कई सौ वर्षों तक वह घूमते ही रहे।

देवगण उनके व्यवहार से चिंतित हो उठे।

उन्होंने विष्णु भगवान से प्रार्थना की, "हे प्रभु!

शिव भगवान को रोकने का समय आ गया है।

आप उन्हें रोकिए। संपूर्ण विश्व प्रभावित हो रहा है।

चारों ओर असंतुलन और अव्यवस्था फैल रही है।

कृपया आप कुछ करिए..." विष्णु भगवान ने कहा,

“मैं सती के शरीर को क्षत-विक्षत कर दूँगा ।

जिससे शिव अपने घर चले जाएँ।"

अपने सुदर्शन चक्र से विष्णु ने सती के शरीर के बावन टुकड़े कर दिए।

वे सभी टुकड़े अलग-अलग जगहों पर गिरे और बाद में वही 'शक्ति पीठ' कहलाए।