धर्म ही रक्षक

एक दिन मणिकुंडल मानापुर पहुँचा।

वहाँ के राजा की एक अंधी पुत्री थी।

राजा ने घोषणा की थी कि उसकी पुत्री को ठीक करने वाले से वह उसका विवाह करके अपना राज्य उसे दे देगा।

मणिकुंडल गौतमी गंगा के किनारे जाकर विशाल्यकरणी जड़ी-बूटी ले आया जिससे राजकुमारी की आँखों में रोशनी आ गई।

राजा ने उसे अपना दामाद बनाकर राजा बना दिया।

मणिकुंडल सदा धर्म की प्रशंसा करता था।

एक दिन वह गौतम के विषय में सोच रहा था तभी चीथड़ों में एक व्यक्ति को मणिकुंडल के समक्ष लाया गया।

वह व्यक्ति राजा के कोषागार में झाँक रहा था।

ध्यान से देखने पर मणिकुंडल ने गौतम को पहचान लिया।

गौतम ने कहा, "मित्र, तुम्हें धोखा देने की सज़ा मुझे मिल चुकी है।

मैंने सारा धन गँवा दिया... मैं भोजन ढूँढने के लिए ताक-झाँक कर रहा था।

अब मुझे समझ आया कि धर्म ही श्रेष्ठ है।”

मणिकुंडल ने आदेश दिया, “यह मेरा मित्र गौतम है।

इसे स्नान कराकर अच्छे वस्त्र दें, भोजन दें और आराम की व्यवस्था करें। "