शंखचूड़ का अंत

अवसर पाकर शक्तिहीन शंखचूड़ पर शिव भगवान ने अपने त्रिशूल से आक्रमण कर दिया।

शंखचूड़ तुलसी को पुकारता हुआ गिर पड़ा।

तुलसी दौड़ी हुई आई तो उसने अपने असली पति को अपने सामने मृत पड़ा पाया।

विष्णु भगवान अपने

असली रूप में तुलसी के समक्ष प्रकट हुए और उसे बताया कि किस प्रकार उन्होंने चतुराई से उसे अलग किया था

जिससे शंखचूड़ मारा जा सके।

तुम्हारे हृदय की पवित्रता के कारण मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि तुम

धरती पर गंडकी नदी के रूप में प्रवाहित होगी और सदा एक पौधे के रूप में पूजित रहोगी,

जिसे कृष्ण को अर्पित किया जाएगा...।" विष्णु के द्वा

रा वह छली गई है यह जानकर तुलसी ने उन्हें श्राप दिया, “हे कठोर हृदयी !

मैं तुम्हें पत्थर बनने का श्राप देती हूँ।"

इस प्रकार शालिग्राम की उत्पत्ति हुई, जिसकी पूजा हिन्दू विष्णु भगवान के रूप में करते हैं।

दु:खी तुलसी को शिव ने सान्त्वना देते हुए कहा,

“तुलसी, धरती पर तुम्हारे जन्म का प्रयोजन तुम्हें पहले ही बता दिया गया था...

अब तुम्हारा कर्त्तव्य पूरा हो गया है...।

यहाँ का जीवन समाप्त कर तुम विष्णु के पास गोलोक जाओगी।"