शंखचूड़ आसुरी गुणों के साथ बड़ा हुआ।
बड़ा होने पर वह पुष्कर जाकर ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगा ।
ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर पूछा, "हे शंखचूड़ ! कहो, क्या चाहते हो?"
"हे ब्रह्मा, कृपया मुझे अजेय होने का वरदान दें।"
ब्रह्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं तुम्हें वर दे रहा हूँ पर तुम तभी तक अजेय रहोगे जबतक यह ताबीज़ तुम्हारे गले में रहेगी
और तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ रहेगी ।
" ब्रह्मा ने एक ताबीज़ देते हुए पुन: कहा, "शंखचूड़, मैं तुम्हें एक और वर दे रहा हूँ,
जो कि तुमने नहीं माँगा है... तुम 'तुलसी' नामक एक सुकन्या से विवाह करोगे।
उससे तुम्हारी मुलाकात ‘बद्रिकाश्रम' में होगी।"
आशीर्वाद पाकर शंखचूड़ अपने महल की ओर चल पड़ा।
रास्ते में वह बद्रिकाश्रम रुककर तुलसी से मिला।
वह उसके रूप से बहुत प्रभावित हुआ और विवाह का प्रस्ताव रख दिया।
उसके विषय में जानने पर तुलसी ने सोचा, “हूँऽऽ अपने यहाँ के कर्म पूरे करने का अब समय आ गया है...
मैं शीघ्र ही अपने प्रभु से मिलूँगी।" दोनों का विवाह हो गया।