शंखचूड़ का दुस्साहस

विष्णु भगवान की अनन्य भक्त होने के बाद भी तुलसी शंखचूड़ की निष्ठावान पत्नी थी।

शंखचूड़ शीघ्र ही राजा बन गया।

शंखचूड़ ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया था।

उसने देवलोक को भी नहीं छोड़ा।

उसने घोषणा की, " हा हा हा ऽऽ... अब पूरी सृष्टि मेरी है...

न कोई देवता... न इन्द्र... केवल शंखचूड़ ।

" सभी देव तथा उपदेव शिव भगवान की शरण में गए।

शिव ने पुष्पदंत नामक दूत को शंखचूड़ को समझाने भेजा कि वह देवलोक को छोड़ दे पर शंखचूड़ ने हँसी उड़ाते हुए कहा,

"हा...हाऽऽ जाओ अपने मालिक से कहो कि यदि साहस है, तो आकर मुझसे युद्ध करें।"

इस प्रकार उकसाए जाने पर शंखचूड़ से लड़ने के लिए शिव ने अपनी सेना इकट्ठी की।

उस सेना में सभी गण, उनके नेता गणेश, सेना प्रमुख कार्तिकेय, युद्ध की देवी भद्रकाली और बहुत सारे लोग थे।

हालांकि शंखचूड़ ने चतुराईपूर्वक सभी को पराजित कर दिया।

उसे अजेय होने का वरदान भी था।

तब शिव ने विष्णु से जाकर कहा, "अब आपकी बारी है...

शंखचूड़ के अजेय होने के अस्त्र उसकी पत्नी और उसका ताबीज़ है।

आपको चतुरतापूर्वक इन दोनों वस्तुओं को शंखचूड़ से अलग करना होगा। "