तारा और चंद्रमा के संयोग से बुध उत्पन्न हुए थे।
बुध और इला के संबंध से पुरुरवा का जन्म हुआ था।
पुरु पर्वत पर जन्म लेने के कारण उसका नाम पुरुरवा पड़ा था।
चन्द्र के वंश का होने के कारण पुरुरवा चन्द्रवंशी कहलाया।
वह अत्यंत बुद्धिमान तथा रूपवान था।
अपनी कठोर तपस्या के कारण पुरुरवा ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था और उसे संपूर्ण धरती का राजा होने का वरदान प्राप्त हुआ था।
ऐसा विश्वास है कि दिव्य गंधर्वों के पास से यज्ञ के लिए तीन प्रकार की अग्नि को वही लेकर आया था।
पुरुरवा और उर्वशी की कथा बड़ी रोचक है।
एक बार नारद मुनि इन्द्र की सभा में पुरुरवा के गुणों का बखान कर रहे थे जिसे सुनकर उर्वशी (स्वर्ग की अप्सरा) पुरुरवा के प्रति आकर्षित हो गई।
मानव के प्रति आकर्षित होने के कारण क्रोधित हो वरूण ने उसे धरती पर जाने का श्राप दे दिया।
पृथ्वी पर आयी उर्वशी के प्रति पुरुरवा आकर्षित हो गया।
दोनों ने विवाह कर लिया।
इन्द्र उर्वशी के बिना उदास रहने लगे।
तब गान्धर्वों ने चाल चली और उर्वशी को वापस स्वर्ग ले आए।
उर्वशी और पुरुरवा का आयुष नामक एक पुत्र था।