तुलसी और शंखचूड़

धरती पर अपने पूर्व जन्म में तुलसी गोलोक की एक ग्वालिन ( वृंदावन जहाँ गायें रहती थी)

थी। उसका नाम वृंदा था। वह कृष्ण भक्त थी। कृष्ण का मित्र श्रीदामा उससे

विवाह करना चाहता था। वृंदावन में जब कृष्ण की संगिनी राधा को कृष्ण

के प्रति वृंदा की चाहत का पता चला तब वह क्रुद्ध हो उठी।

श्रीदामा ने उससे कहा, “तुम वृंदा से क्यों ईर्ष्या करती हो?

सभी कृष्ण से निकटता चाहते हैं... वह तो तुम्हारे निकट हैं।"

यह सुनकर क्रोधित राधा ने कहा, “श्रीदामा, वृंदा तुमसे भी अधिक कृष्ण को चाहती है और वह वृंदा को।

तो तुम्हें बुरा नहीं लगता है? तुम्हें शर्म आनी चाहिए, जो तुम उसका और कृष्ण का पक्ष लेते हो...

मैं तुम्हें असुर रूप में जन्म लेने का श्राप देती हूँ।"

उसी समय विष्णु भगवान असुर राज धम्ब के सामने प्रकट हुए।

धम्ब उन्हीं की प्रार्थना कर रहा था। उन्होंने पूछा, “धम्ब, कहो तुम्हें क्या चाहिए?"

“हे प्रभु! संभव है मैं लालची कहलाऊँ पर मैं चाहता हूँ कि आप जैसा ही मेरा एक पुत्र हो।”

“ठीक है।" इस प्रकार विष्णु ने श्रीदामा को धम्ब के पुत्र शंखचूड़ के रूप में जन्म लेने भेजा।