शिलाद का पुत्र नंदी अत्यंत प्रतिभावान था।
उसे शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था।
एक बार मित्र और वरुण नामक दो संत आश्रम में आए।
नंदी ने उनकी सेवा की पर उन्होंने जाते समय शिलाद को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया,
नंदी को नहीं। शिलाद चिंतित रहने लगे।
नंदी के पूछने पर उन्होंने अपनी चिंता बताई।
नंदी ने पिता को सांत्वना दी कि शिव ने जीवन दिया है तो वही रक्षा करेंगे।
यह कहकर नंदी शिव की तपस्या में लीन हो गया।
नंदी की कठोर तपस्या से शिव ने उसे दर्शन दिया और उसकी इच्छा पूछी।
नंदी ने कहा, “मैं सदा आपके सान्निध्य में रहना चाहता हूँ।” नंदी से प्रसन्न शिव जी ने उसे गले लगा लिया।
उन्होंने उसे बैल का रूप दिया और अपना वाहन बनाकर अपना मित्र और अपने गणों में सर्वोत्तम स्थान दे दिया।
तभी से शिव जी के मंदिर में उनके सामने ही नंदी की स्थापना की जाने लगी।
नंदी महादेव की सवारी बने और आज भी पूजनीय हैं।