एक समय की बात है- उत्तर भारत में स्थित विंध्याचल पर्वत को अपनी शक्ति का बहुत घमंड हो गया।
उसने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए अपनी ऊँचाई खूब बढ़ा ली।
फलतः सूर्य देव का मार्ग अवरुद्ध हो गया।
एक ओर प्रकाश और दूसरी ओर अंधकार होने से सभी जीव परेशान होने लगे।
देवता भी चिंता में पड़ गए और अगस्त्य मुनि के पास सहायता माँगने गए।
विंध्याचल पर्वत अगस्त्य मुनि का बहुत सम्मान करता था।
अगस्त्य मुनि स्वयं उसके पास गए और उससे कहा, “विंध्य, मुझे दक्षिण की ओर कुछ कार्यवश जाना है,
तुम बहुत ऊँचे हो... क्या तुम थोड़ा झुक सकते हो?”
“गुरुदेव, जैसी आपकी आज्ञा!" विंध्य ने कहा और झुक गया।
अगस्त्य ने कहा, “विंध्य, मेरे लौटने की प्रतीक्षा करना।"
विंध्याचल पर्वत ने ऋषि की आज्ञा का पालन किया पर गुरुदेव वापस नहीं लौटे।
उन्होंने अपना आश्रम दक्षिण में ही बना लिया।
विंध्याचल पर्वत आज भी उसी अवस्था में स्थित है।