गरुड़ और सौतेले भाई

कश्यप ऋषि ने अपनी दो पत्नियों कद्रू और विनता के अंडज बच्चों को आशीर्वाद दिया।

कद्रू के हज़ार सर्प पुत्र अंडे से उत्पन्न हुए।

विनता ने कद्रू के हज़ार पुत्रों के बराबर बलशाली, दो पुत्र माँगे।

सर्प तो जन्म ले चुके थे पर विनता के अंडे नहीं फूटे थे।

व्यग्रता के कारण विनता धीरज खो बैठी।

उसने एक अंडा फोड़ दिया।

उसमें से एक अर्धविकसित बच्चा निकला जिसका ऊपर का आधा शरीर ही बन पाया था।

उसका नाम अरुण था और वह सूर्य का सारथी बना।

शीघ्रता से अंडा फोड़ने के कारण अरुण ने अपनी माँ को कद्रू की दासी बनने का श्राप दे दिया।

काफ़ी समय बाद दूसरा अंडा फूटा, जिसमें से गरुड़ निकला।

हृष्ट-पुष्ट चमकीले बदन वाले गरुड़ से कद्रू ईर्ष्या करने लगी और अपने पुत्रों को उससे लड़ने के लिए उकसाती रहती थी।

दोनों बहनों में प्रेम नहीं था।

एक दिन कद्रू और विनता दोनों बहनों में इन्द्र के घोड़े की पूँछ का रंग जानने की शर्त लगी।

हारने वाले को दूसरे की दासता स्वीकार करनी थी।

विनता ने पूँछ का रंग सफ़ेद बताया।

कद्रू ने अपने सर्प बच्चों को पूँछ पर लिपट जाने को कहा जिससे पूँछ काली लगने लगी।

विनता शर्त हार गई और उसे कद्रू की दासी बनना पड़ा।