साँप की जीभ के विभक्त होने का कारण

गरुड़ ने अपने सौतेले भाइयों से कहा, “तुमने हमें छला है।

मेरी माँ को दासता से मुक्त करो...." सर्पों ने बदले में देवलोक से अमृत

लाकर देने की माँग की। गरुड़ देवलोक गया।

वहाँ उसने एक कलश में अमृत रखा देखा।

सुरक्षा का कड़ा प्रबंध था।

गरुड़ किसी तरह कलश उठाना चाहता था तभी वहाँ इन्द्र आ गए और बोले,

“गरुड़, तुम्हें अमृत क्यों चाहिए?

क्या तुम बुराई की विजय चाहते हो?

तुम्हारे भाई अमृत पीकर अमर हो जाएँगे।

क्या तुम यह चाहते हो?”

गरुड़ को अपनी भूल समझ आ गई।

इन्द्र ने उसे माँ को दासता से मुक्ति तथा सर्पों से अमृत को बचाने का उपाय बताया।

गरुड़ अमृत कलश लेकर आ गया।

गरुड़ के सौतेले भाइयों ने अमृत कलश आया देखकर,

उसकी माँ को मुक्त कर दिया। गरुड़ कहा,

“भाइयों स्नान के पश्चात् ही अमृत पान करना चाहिए।"

ने अमृत कलश वहीं कुशा (घास) पर रख दिया।

सर्प भाई स्नान करने गए।

तब तक इन्द्र ने झट आकर कलश ले लिया।

सर्पों ने कलश के नीचे अमृत बूँद गिरा जानकर कुशा को चाटना शुरु कर दिया।

तीखे धारदार कुशा से उनकी जीभ दो भागों में विभक्त हो गई।