नंदी का जन्म

शिलाद नामक एक ऋषि थे।

उनकी एक अनूठे पुत्र की कामना थी।

इन्द्र ने उनके सामने प्रकट

होकर कहा, “शिलाद, शिव की तपस्या करो, वही तुम्हारी मनोकामना पूरी करेंगे।”

शिलाद ऋषि ने हज़ार वर्ष तक शिव भगवान की कठोर तपस्या की।

यहाँ

तक कि उनकी चमड़ी भी दीमकों ने खा ली थी।

शिव प्रसन्न हुए, उन्हें स्वस्थ किया और उनकी इच्छा पूछी।

सिर झुकाकर शिलाद ने कहा, “महेश्वर ! मेरी ऐसी इच्छा के लिए मुझे क्षमा करें पर मुझे एक अनूठा, अमर पुत्र चाहिए।

मैं चाहता हूँ। वह थोड़ा अलग हो।”

शिव मुस्कराए और आशीर्वाद दिया, “हूँऽऽ...

मैं तुम्हें वर दे रहा हूँ पर तुम्हें सोमयज्ञ करना चाहिए।"

शिलाद ऋषि ने यज्ञ किया।

यज्ञ की अग्नि से ही एक बालक की उ

त्पत्ति हुई।

उसके तीन नेत्र और चार भुजाएँ थीं।

वह देखने में एकदम शिव की तरह लगता था।

उसके जन्म पर आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की और दिव्य संगीत बजाया।

उसका नाम नंदी रखा गया। नंदी अर्थात् 'परम सुख दाता।'

शिलाद जब नंदी को घर लेकर आए, तो स्वतः उसके दो हाथ तथा तीसरा नेत्र अदृश्य हो गया।