सृजन और विध्वंस का चक्र 'कल्प' कहलाता है।
एक बार की बात है- सात कल्पों के पूरे होने पर जल में आदिशेष पर विष्णु भगवान विश्राम कर रहे थे।
तभी एक कमल प्रकट हुआ।
विष्णु उस कमल की डंडी से खेल रहे थे कि अचानक से ब्रह्मा उस कमल पर आ गए।
आश्चर्यचकित विष्णु ने पूछा, “आप कौन हैं?”
“पहले आप बताएँ आप कौन है?" “ ओह !
कितना भोला प्रश्न है... मैं इस सृष्टि का दिव्य रूप हूँ,”
विष्णु ने उत्तर दिया। “फिर सुनें,
बिलकुल आप की ही भाँति मैं भी एक दिव्य रूप हूँ...
मैं इस सृष्टि का विधाता हूँ” ब्रह्मा ने कहा। “ओह ! रहने दीजिए।
असत्य मत कहिए आप इतने महान हो ही नहीं सकते” विष्णु ने शंका जताई।
ब्रह्मा ने दृढ़तापूर्वक कहा, “हूँऽऽ” मैं नारायण हूँ...
यदि आपको प्रमाण चाहिए तो स्वयं ही मेरे
भीतर जाकर देख लीजिए..." "ठीक है देखता हूँ।”
यह कहकर विष्णु, ब्रह्मा के शरीर में प्रविष्ट हो गए।
वहाँ उन्होंने तीनों लोकों और साक्षात् धरती,
जल, पर्वत, द्वीप और सृष्टि का सभी कुछ देखा।
वह इतना विशाल था
कि विष्णु के लिए अनुमान लगाना भी कठिन था।
ब्रह्मा के मुख से बाहर आकर उन्होंने स्वीकारा, “हाँ, सच में आप सृष्टि के विधाता हैं।”