चौथे दिन जब राजा भोज ने सिंहासन पर बैठने का विचार किया तो सिंहासन से कामकंदला नाम की चौथी पुतली राजा भोज के सामने प्रकट होकर बोली-' ठहरो राजा भोज! आगे कदम मत बढाना। पहले मेरी कथा सुन लो। मैं तुम्हें अपने राजा विक्रमादित्य की गुणों को पहचानने एवं गुणी को पुरस्कार देने की कथा सुनाती हूँ।' यह कहकर पुतली ने राजा भोज को यह कथा सुनाई-
एक बार राजा विक्रमादित्य अपने राजदरबार में बैठे अपने दरबारियों से राज्य के कामकाज के बारे में विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी एक ब्राह्मण राजदरबार में उपस्थित हुआ और हाथ जोड़ कर बोला-"महाराज, मैंने एक श्लोक बनाया है। मैं उसी को सुनाने आपके पास आया हूँ। अगर आप आज्ञा दें तो मैं वह श्लोक आपको सुनाऊं।"
राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण को श्लोक सुनाने की आज्ञा दे दी। आज्ञा मिलते ही ब्राह्मण ने विक्रमादित्य को श्लोक सुना दिया। श्लोक का तात्पर्य था कि जो मनुष्य अपने मित्र से द्रोह और विश्वासघात करता है, उसे करोड़ों वर्षों तक नरक का दुख भोगना पड़ता है। विक्रमादित्य श्लोक सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने ब्राह्मण को एक लाख स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार स्वरुप दी।
ब्राह्मण जब पुरस्कार की राशि लेकर जाने लगा तो विक्रमादित्य ने उसे रोकते हुए कहा-'ब्राह्मण श्रॆष्ठ! तुम्हारा श्लोक तो बहुत अच्छा था, लेकिन मैं इस बात को कैसे मान लूं कि मित्र से द्रोह और विश्वासघात करने वाले को करोड़ो वर्षों तक नरक में दुख भोगना पड़ता है।'
यह सुनकर ब्राह्मण रुक गया। उसने कहा-"महाराज, मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ जिसे सुनकर आपको यह मानना ही पड़ेगा कि मित्र के साथ द्रोह और विश्वासघात करने वाले को सचमुच करोड़ों वर्षों तक नरक का दुख भोगना पड़ता है।"
इतना कहकर ब्राह्मण ने कहानी सुनानी आरंभ करते हुए बोला-बहुत समय पहले मालवा राज्य में बल्लभ नाम का एक राजा राज्य करता था। उस राजा की तीन रानियां थी। वह सबसे प्रेम करता था लेकिन उसका अगाध प्रेम छोटी रानी के प्रति था। वह उससे एक पल भी अलग नहीं होता था। वह जहां भी जाता उसे अपने साथ ले जाता। उस रानी से उसका एक पुत्र था। राजा बड़ा मूर्ख था। मूर्ख होने के साथ-साथ वह बड़ा शक्की भी था।
राजा के इस स्वभाव एवं रानी के प्रति प्रेम को न समझा कर राज्य में चर्चाएं होने लगी। चर्चाओं का विषय क्योंकि राजा था, इस कारण दरबारियों में से एक ने राजा से कहा-'महाराज, छोटी रानी के प्रति आपके इतने आकर्षण को देखकर राज्य में चर्चाएं हो रहीं है कि राजा को अपनी छोटी रानी पर विश्वास नहीं है। इसलिए राजा उसे हमेशा अपनी आंखों के सामने रखता है। कभी भी अकेले नहीं छोड़ता।'
यह सुनकर राजा बोला-"ऎसी बात नहीं है। हम तो छोटी रानी से सबसे अधिक प्रेम करते हैं इसीलिए उसे साथ रखते हैं। अविश्वास जैसी कोई भावना हमारे मन में नहीं है।"
दरबारी बोला-"महाराज, आपका कहना ठीक है, लेकिन जनता के बीच जो चर्चाए हैं उनसे बचने का केवल एक ही उपाय है कि आप छोटी रानी का एक चित्र बनाकर अपने पास रखें। इस प्रकार आप की आंखों से छोटी रानी कभी ओझल नहीं होंगी तथा जनता का मुंह भी बंद हो जाएगा।"
राजा को दरबारी की बात जंच गई उसने अपने राज्य के सबसे योग्य और गुणी चित्रकार को बुलाने का आदेश दे दिया। चित्रकार के आने पर राजा ने उसे रानी का एक सुन्दर चित्र बनाने को कहा। चित्रकार रानी को एक बार नहीं अनेक बार देख चुका था, क्योंकि रानी राजा के साथ बराबर बाहर आया-जाया करती थी। कुछ दिनों बाद उसने रानी का एक बहुत ही सुन्दर चित्र तैयार किया। चित्रकार ने अपनी कला से चित्र में जान-सी डाल दी थी।
राजा ने जब रानी का चित्र देखा तो वह आश्चर्य चकित रह गया। वह मूर्ख और शक्की तो था ही। उसके मन में संदेह भी पैदा हो उठा। वह चित्र को देखकर मन ही मन सोचने लगा, किस तरह चित्रकार ने रानी का इतना सुन्दर चित्र तैयार किया? अवश्य ही चित्रकार और रानी के बीच कोई संबंध है यह सोचकर राजा चित्रकार से जलभुन गया उसने अपने सेनापति को आदेश दिया कि चित्रकार को जंगल में ले जाकर मार डालो और उसकी आंखें निकाल कर सामने पेश करो।
बेचारा चित्रकार करता तो क्या करता? वह राजा के समक्ष बहुत गिड़गिडाया लेकिन राजा ने उसकी एक न सुनी। सेनापति राजा की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता था, इसलिए वह चित्रकार को लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। सेनापति ऊंचे विचारों का था। वह राजा की मूर्खता और उसके शक्की स्वभाव से परिचित था। उसने बड़ी बुद्धिमानी और अपने प्रभाव से चित्रकार को बचा लिया। उसने एक हिरणी को मार कर उसकी आंखे निकाल ली। और चित्रकार को अपने घर में छुपा लिया ।
राजा हिरण की आंखो को चित्रकार की आंखें सकझकर संतुष्ट हो गया। इस प्रकार कई महीने बीत गए। एक दिन राजा का लड़का वन में शिकार खेलने गया। जैसा बाप वैसा बेटा। बाप की तरह उसकी भी रग-रग में कायरता और मूर्खता समाई हुई थी। वह शिकार खेलते-खेलते जंगल में काफी दूर निकल गया । तभी उसने एक शेर की गर्जना सुनी। डर के मारे उसके प्राण निकलने लगे । वह झट से एक पेड़ पर चढ गया ।
संयोग की बात पेड़ पर पहले से ही एक रीछ शेर के डर से बैठा हुआ था। शेर उस पेर के नीचे आकर बैठ गया और दोनों के उतरने की प्रतीक्षा करने लगा । पूरा दिन बीत गया लेकिन शेर पेड़ के नीचे ही बैठा रहा, वह वहां से हिला तक नहीं । रात में रीछ ने राजकुमार से कहा- शेर हम दोंनों का शत्रु है । हम दोनों को रात पेड़ पर ही काटनी पड़ेगी। बिना सोए काम कैसे चलेगा? उधर शेर पर भी निगाह रखनी होगी । इसलिए आधी रात तक तुम सॊओ और मैं पहरा दूं, और उसके बाद आधी रात तक मैं सोऊं तुम पहरा दो। इस प्रकार एक दूसरे की रक्षा करते हुए हम आराम भी कर लेंगे । राजकुमार रीछ की बात मान गया । जब राजकुमार गहरी नींद में खर्राटे भरने लगा तो, पेड़ के नीचे बैठा शेर बोला-"रीछ, लगता है राजकुमार सो गया है। आओ हम दोनों इस अवसर का लाभ उठाएं, क्योंकि राजकुमार मनुष्य है, और हम- तुम जंगल के जीव हैं। राजकुमार हमारा शत्रु है इसलिए तुम राजकुमार को नीचे धकेल दो और स्वयं भी नीचे आ जाओ। हम दोनों उसे खाकर अपनी भूख मिटाएं।"
लेकिन रीछ ने शेर की बात नहीं मानी। उसने कहा-"राजकुमार मुझ पर विश्वास करके सो रहा है। वह चाहे जो हो, पर इस समय मेरा मित्र है। मैं मित्र के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता।'तब तक आधी रात बीत चुकी थी। रीछ ने राजकुमार को जगाया और खुद सो गया। शेर ने रीछ को सोते देखकर राजकुमार से कहा-" राजकुमार मैं रीछ दोनों शत्रु हैं। यदि तुम मेरी बात मान लो, तो तुम हम दोनों से बच सकते हो।"
राजकुमार ने पूछा-"बताओ क्या बात है?"
शेर ने कहा-"तुम रीछ को नीचे धकेल दो। मैं उसे खाकर चला जाउंगा। तुम पेड़ से नीचे उतरकर अपने घर चले जाना।" राजकुमार शेर की बात मान गया। उसने सोचा कि शेर वास्तव मे ठीक कह रहा है। यह सोचकर उसने रीछ को धक्का दे दिया। जब रीछ नीचे की ओर गिरा तो उसकी नींद खुल गई और वह जल्दी से वृक्ष की एक टहनी पकड़कर लटक गया। राजकुमार के विश्वासघात से रीछ क्रोधित होकर बोला-'दुष्ट, मैंने जानवर होकर तेरी रक्षा की और तूने मनुष्य होकर मेरे साथ विश्वासघात किया। यदि मैं चाहूं तो तुझे तेरे पापों की भरपूर सजा दे सकता हूँ।"
रीछ की बात सुनकर राजकुमार घबरा गया। तब रीछ ने कहा-"घबरा मत मैं अपने वचन से नहीं फिरूंगा। मैं तुझे जान से नहीं मारुंगा, लेकिन तुझे तेरे किए की सजा अवश्य दूंगा।' यह कहकर रीच ने राजकुमार के कानों में पेशाब कर दिया। राजकुमार दर्द के मारे छटपटाने लगा। वह बहरा हो चुका था। सवेरा होते ही शेर वहां से चला गया। शेर के जाते ही रीछ भी नीचे उतरकर वहां से चला गया। राजकुमार भी किसी तरह पेड़ से उतरा और अपने महल की ओर चल पड़ा। राजकुमार की ऎशी दशा देखकर राजा बहुत चिंतित हुआ। उसने राज्य के हकीमों और वैद्यों को बुलवाकर राजकुमार का इलाज करवाया लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। इससे राजा को और भी अधिक चिंता होने लगी। आखिर एक दिन उसने अपने सेनापति से कहा-सेनापति जी आप ही कुछ उपाय करें।
सेनापति ने किसी तरह यह पता लगा लिया कि जंगल में राजकुमार के साथ कैसी घटना घटी थी। किस तरह वह शेर से डरकर पेड़ पर चढा था, किस तरह पेड़ पर उसमें और रीछ में मित्रता हुई थी, किस तरह उसने रीछ के साथ विश्वासघात किया था और किस तरह रीछ ने उसके कानों में पेशाब कर दी थी। यह सब पता लगाकर सेनापति ने राजा से कहा-"अब तो एक उपाय है, तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाए। मेरी पत्नी तंत्र-मंत्र की विद्या में बड़ी चतुर है। यदि आप आज्ञा दें तो मैं अपनी पत्नी को लेकर राजकुमार को दिखाऊं लेकिन मेरी पत्नी राजकुमार के सामने नहीं जायेगी। वह पर्दे की ओट में राजकुमार को देखेगी, और उसके रोग को दूर करने का उपाय करेगी।"
राजा ने सेनापति की बात मान ली। मंत्री ने उस चित्रकार को बुलवाया राजा ने जिसकी आंखें निकालने की आज्ञा दी थी और जिसे सेनापति ने अपने घर में गुप्त रुप में छिपाकर रखा था। सेनापति उसे स्त्री के वेश मे महल में ले गया। उसने चित्रकार को वह पूरी घटना बता दी थी जो वन में राजकुमार के साथ घटी थी। महल में चित्रकार रुपी सेनापति की पत्नी को, एक पर्दे के भीतर रखा गया। पर्दे के बाहर राजकुमार, राजा, सेनापति और रानी इत्यादि ओग थे। पर्दे के भीतर सेनापति की पत्नी ने कहा-'राजकुमार, तुम्हें जो रोग है, वह रोग नहीं मित्र के साथ धोखा करने का पाप है। तुमने अपने मित्र रीछ के साथ विश्वासघात करके बहुत बड़ा पाप किया है। जब तक तुम उसके सामने अपने पाप का प्रायश्चित स्वीकार नहीं करोगे, कभी ठीक नहीं हो सकते।"
यह सुनकर राजकुमार बोला-"हां, यह बिल्कुल सही बात है। मैंने अविश्वास के कारण ही अपनी यह हालत कर ली।" राजकुमार के बोलने और सचेत होने से उसे बड़ी प्रसन्नता हुई कि उसका बेटा ठीक हो गया है लेकिन उसके मन में यह सवाल भी पैदा हो उठा कि सेनापति की पत्नी ने यह सब कैसे जाना? तब उसने पूछा-'यह तुमने कैसे जाना कि राजकुमार ने वन में रीछ को धोखा दिया था?
चित्रकार रुपी सेनापति की पत्नी ने पर्दे के भीतर से कह-"महाराज, मुझ पर सरस्वती की कृपा है। मैं सरस्वती की कृपा से सब कुछ जान लेती हूँ। किसी ऎसे आदमी का चित्र भी ठीक बता देती हूँ, जिसे मैंने कभी न देखा हो, या दूर से देखा हो।'
यह सुनकर राजा चित्रकार रुपी सेनापति की पत्नी पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे देखने के लिए पर्दा उठा दिया। जैसे ही उसने पर्दा उठाया तो वह सेनपति की पत्नी के वेश में वहीं चित्रकार था। यह देखकर राजा बड़ा शर्मिदा हुआ और उसने प्रण किया कि बिना खोजबीन के केवल शक की निगाह पर किसी को दण्ड नहीं दिया जाएगा। उसने चित्रकार की स्पष्टवादिता से प्रसन्न होकर उसको बहुत सारा धन देकर विदा किया। विक्रमादित्य को यह कथा सुनाकर ब्राह्मण चुप हो गया। विक्रमादित्य ने प्रसन्न होकर उसे बारह गांव ईनाम में दे दिए।
विक्रमादित्य की दानशीलता की कथा सुनाकर पुतली बोली-"सुना राजा भोज तुमने, सिर्फ एक कहानी सुनने के लिए ही विक्रमादित्य ने ब्राह्मण को बारह गांव ईनाम में दे दिए। अगर तुमने कभी ऎसा दान किया हो तो तुम सिंहासन पर बैठ सकते हो अन्यथा नहीं। यह कहकर पुतली अदृश्य होकर अपने स्थान में समा गई और राजा भोज कुछ कहे बिना अपने महल में चले गए।