देवता

खट्टर कका के तरंग लेखक : हरिमोहन झा

खट्टर काका ने हम लोगों के हाथ में जलपात्र देखकर पूछा- आज सबेरे-सबेरे तुम लोग कहाँ चले हो?

मैं- आज शिवरात्रि है। हम लोग शिवजी पर जल चढाने जा रहे हैं।

खट्टर काका-इस फागुन की सुबह में अभी इतनी ठंढी हवा चल रही है और तुमलोग उन पर पानी डालने जाते हो! शिवजी ने तुम लोगों क्या विगाड़ा है, जो इस तरह उन पर धावा करने चले हो!

मैं-खट्टर काका, आपको तो हमेशा मजाक ही रहता है।

खट्टर काका-हँसी नहीं करता हूँ। शिवजी तो स्वयं शीतवीर्य हैं। उन पर जल डालने की क्या जरूरत है? इससे तो अच्छा है कि लोटे का पानी इस पुदीने में डाल दो।

मैंने कहा-खट्टर काका, आपको देवताओं में भक्ति नहीं है?

खट्टर काका बोले-तब जरा बैठ जाओ। काफिला तो जा ही रहा है। तुम जरा बाद ही पहुँचोगे तो क्या होगा? हाँ, देवताओं के विषय में क्या कहते हो?

मैं-यही कि उनमें भक्ति रखनी चाहिए।

खट्टर काका-लेकिन यदि पुराण प्रमाण, तो भक्ति कैसे रखी जाय? मैं तो सभी देवताओं के चरित्र जानता हूँ। कहो तो एक-एक की बखिया उधेड़कर रख दूँ। मुझे तो कोई देवता ऎसे नहीं दीखते जो कामी, कपटी, कायर, काहिल और क्रूर नहीं हों ! दैत्य बल से जीतते थे। देवता छल से जीतते थे। मेरी समझ में तो देवता दैत्यों से भी ज्यादा गिरे थे।

मैं - खट्टर काका, आप तो हर बात में उलटी गंगा बहा देते हैं।

खट्टर काका-तो देवासुर संग्राम पढो़। जहाँ असुर लोग चढा़ई करते थे कि देवतागण त्राहि-त्राहि कर भागते थे। ब्रह्मा के यहाँ से विष्णु के यहाँ, और विष्णु के यहाँ से महेश के यहाँ! जब उनसे भी नहीं सँभलता था तो दुर्गा को गोहराते थे। इसी भीरुता पर महिषासुर ने फटकारा था-

हत्वा त्वां निहनिष्यामि देवान् कपटमंडितान् ।
ये नारी पुरतः कृत्वा जेतुमिच्छन्ति मां शठा ॥ (देवी भागवत ५|१८)

अर्थात् 'जो देवता नारी को आगे कर कपट से मुझे जीतना चाहते हैं, उन्हे मैं रण में सुला दूँगा ।' लेकिन देवताओं को लाज थोड़े ही थी ! देवी को आगे कर स्वयं अंचल की ओट में छिप जाते थे ।

मैं - तो क्या देवी देवताओं से ज्यादा शक्तिशालिनी थीं ?

खट्टर काका - इसमे क्या संदेह ? विष्णु चतुर्भुज थे तो दुर्गा अष्टभुजा थीं । शिव बैल पर चलते थे , दुर्गा सिंह की सवारी करती थीं । शक्ति के बिना शिव केवल शव रह जाते हैं ।

देवी अपने देह का मैल छुड़ाकर फेंक देती थी, वह भी देवता के छक्के छुड़ा देता था । तभी तो जब देवता लोग हारने लगते थे, तो देवी की गुहार करते थे ।

त्रिपुरस्य महायुद्धे सरथे पतिते शिवे ।
यां तुष्टवुः सुराः सर्वे तां दुर्गा प्रणमाम्यहम् ॥

जब त्रिपुरासुर से युद्ध करते समय शिवजी रथ के साथ गिर पड़े, तो सभी देवता दुर्गा की स्तुति करने लगे कि 'देवीजी ! अब आप ही बचाइए ।'

मै- यह तो लज्जा की बात हुई !

खट्टर काका - अजी, देवताओं को सो लाज रहती तो छलपूर्वक विषकन्या के हाथ से दैत्यों को जहर दिला देते ? समुद्र मंथन से अमृत निकला तो स्वयं पीकर अमर हो गये, और दैत्यों के आगे विष रख दिया ! इससे बढ़कर अन्याय क्या होगा ? ये लोग ऎसे स्वार्थांध थे कि दधीचि से उनकी रीढ की हड्डी माँग ली ! खुदगर्जी में इतना भी विचार नहीं रहा कि क्या माँग रहे हैं ! वह हड्डी बज्र बन गयी । ऎसी जगह तो बज्रपात हो जाना चाहिए !

मैं - खट्टर काका, आप एकतरफा फैसला करते हैं । देवताओं ने कैसे-कैसे काम किए हैं सो भी तो देखिए ।

खट्टर काका - अजी, काम तो ऎसे-ऎसे किए हैं कि उनका नाम भी नहीं लेना चाहिए ! देवताओं के राजा इंद्र ने ऎसा पाप किया कि उनके शरीर में सहस्र छिद्र हो गए !

"गौतमस्याभिशापेन भगांगः सुरसंसदि ।"

देवराज दुष्ट ऎसे थे कि जहाँ किसी को तपस्या करते देखते थे कि उनका इंद्रासन डोलने लगता था । जहाँ कहीं यज्ञ कार्य होने लगा कि मुसलाधार पानी बरसाने लगते थे ।

मैं - परन्तु वह वीर कैसे थे ?

खट्टर काका - ऎसे वीर कि मेघनाद ने रस्से में बाँध ! अजी, जो रात-दिन अमरावती में पड़ा-पड़ा अप्सराओं के साथ भोग-विलास में लिप्त रहेगा, वह युद्ध में कहाँ तक ठहरेगा ? तभी तो पुराण मे इंद्र की इतनी भर्त्सना की गयी है !

'लक्ष्मीसमशचीभर्त्ता परस्त्रीलोलुपः सदा ।' (ब्रह्मवैवर्त)

शची के समान पत्नी होते हुए भी सदा परस्त्रियों में लिप्त ! उन्हे नित्य नयी-नयी युवतियाँ चाहिए


नव्या नव्या युवतयो भवन्ति महद्देवानाम् (ऋग्वेद ३०|५५|१६)

उनमे रात-दिन सिंचन करना ही इनका काम था । 'तासु रेतः प्रासिंचत्' (शतपथ २\१\१\५)

मै - देखिए सूर्य और चन्द्रमा कैसे पुण्य-प्रताप से चमक रहे हैं !

खट्टर काका - दोनो में कोई देवता दूध से धोये नहीं हैं । सूर्य के पुण्य का हाल ऊषा और कुन्ती जानती हैं । प्रताप का यह हाल है कि केतु बार-बार निगल जाता है । समझो तो यह उच्छिष्ट हैं, झूठे हैं । तभी तो ज्योतिष में इनको पापग्रह कहा जाता है । तब गायत्री मंत्र में तेज कहाँ से आवे ! इसी से कितना भी 'धियो योनः प्रचोदयात्' करने से कुछ फल नहीं निकलता है। सविता का गुण हमने इसी अर्थ में ग्रहण किया है कि प्रसविता का कार्य तेजी के साथ करते हैं । और चन्द्रमा तो ऎसी कृति कर गये हैं कि अब तक मुँह पर कालिमा पुती हुई है । गुरुपत्नी का भी विचार नहीं ! यह कलंक 'यावच्चन्द्र दिवाकरौ' मिटनेवाल नहीं ! तभी तो वह क्षय रोग से ग्रसित हुए । ऎसे महापातक में तो गलित कुष्ट हो जाय ।

मैं - खट्टर काका, देवता गण अज अविनाशी होते हैं . . .

खट्टर काका - हाँ, अज कहते हैं बकरे को और अवि नाम भेड़ का है । उसके नाशक तो अवश्य होते हैं ।


'अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च ।
अजापुत्रं बलिं दद्यात् , देवो दुर्बलघाटकः ॥

जो अबल रहते हैं, उन्ही पर देवता प्रबल होते हैं ।

मै - खट्टर काका, छोटे-छोटे देवताओं को छोड़िए । बड़े हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।

खट्टर काका बोले - तो बड़ो की भी सुन लो । ब्रह्मा को तो मिट्टी का लोढ़ा ही समझो । चार मुँह रहने से क्या होता है ! कभी कोई काम उनसे पार नहीं लगा । जब-जब देवता लोग सहायत के लिए पहुँचे, तब-तब क्या, तो विष्णु के यहाँ जाओ ।' अर्थात मुझसे कुछ नहीं होगा ।' वह स्वयं साक्षी गोपाल की तरह पद्मासन लगाए बैठे रहेंगे ! वैसा बोदा तो कोई देवता नहीं ।

मैं - खट्टर काका, सृष्टि के आदि-मूल को आप ऎसा कहते हैं ?

खट्टर काका - आदि-मूल क्या रहेंगे ? वह तो खुद विष्णु की नाभि से निकले हैं । और, सृष्टि की बात क्या करते हो ? सत्ययुग मे जन्म लेकर उन्होने जैसा कृत्य किया, वैसा कलियुग मे भी प्रायः कोई नहीं करता । चारों वेद के कर्त्ता होकर अपनी ही कन्या के पीछे दौड़ गए ! कहलाने को 'अज', और काम बोतू का ! तभी तो अज का अर्थ बकड़ा भी हो गया है । इसी छगली वृत्ति के कारण वह अपूज्य माने जाते हैं । सभी देवताओं की पूजा हो जाने पर जो अक्षत शेष बच जाता है, वहीं उनके नाम पर छींट दिया जाता है ।

मैने कहा - खट्टर काका, सबसे बड़े हैं विष्णु भगवान ।

खट्टर काका बोले - तब विष्णु की भी सुन लो । उनके जैसा मायावी तो कोई नहीं । कहीं मोहन रूप बनाकर नारी को लुभाते हैं, तो कहीं मोहनी रूप धारण कर पुरुष को रिझाते हैं । मधु-कैटभ, सुंद-उपसुंद, सबको तो छल से ही मारा । जालंधर की स्त्री वृंदा के साथ ऎसा जाल किया कि अन्तिम विन्दु तक पहुँचा दिया ! ऎसा छलिया दूसरा कौन होगा ?

मैं - परंतु उन्होने अवतार लेकर कैसे-कैसे काम किये हैं, सो नहीं देखते हैं ?

खट्टर काका सुपारी कतरते हुए कहने लगे - अजी, सभी काम तो वैसे ही है । छल, कपट और स्वार्थ से भरे हुए । राजा बलि से ऎसा तिकड़म किया कि बेचारा बलिदान ही पड़ गया ! मुझे तो जान पड़ता है कि उसी बलि से बलिदान शब्द बना होगा । बलिबद् दानं बलिदानम् ! कही बाप से बेटे को लड़ाते हैं । कहीं भाई से भाई को । कही पति से पत्नी को फुटकाते हैं । हिरण्यकश्यपु से बैर प्रह्लाद से नाता ! रावण को मार विभीषण को राज ! राधा के साथ रास और उसके पति के साथ साहब-सलामत तक नहीं !

मैं- खट्टर काका, देखिए, उन्होंने कैसे ऎन वक्त पर द्रौपदी की लाज बचायी!

खट्टर काका मुस्कुराते हुए बोले - अजी, मुझे तो ऎसा लगता है कि यमुना तट पर चुरायी हुई गोपियों कि साड़ियाँ लेकर हीं उन्होंने द्रौपदी के आगें ढे़र लगा दी होगी । जब तक स्वार्थ था, तब तक वृन्दावन बिहारी बने रहे और काम निकल जाने पर द्वारिका का रास्ता लिया । फिर क्यों राधा की खोज करेंगे ? कभी एक चिट्ठी तक बेचारी को नहीं लिखी ! जिस यशोदा ने इतना मक्खन खिलाकर पोसा उन्ही को कौन सा यश दिया ? समझो तो यह किसी के भी नहीं थे । सिर्फ अपने मतलब के यार ! अपना स्वार्थ साधने के लिए मछली, कछुआ, सूअर कौन-कौन बाना नही बनाया ? ऎसा बहुरुपिया कौन होगा ? न नरसिंह रूप धारण करते देर, न बुद्धदेव बनते ! राम बनकर धनुष तोड़ते हैं, परशुराम बनकर कुल्हाड़ी चलाते हैं ! कभी बुद्ध के रूप में स्त्री को घर में छोड़कर वन का रास्ता लेंगे ! कभी राम के रूप में खुद घर में रहकर स्त्री को वन का रास्ता धरायेंगे ! ऎसे-ऎसे उटपटाँग कामों मे ही तो इनका मन लगता है । एक अवतार में माता की गर्दन काटते हैं, दूसरे में मामा को पटककर मारते हैं । अब कल्कि अवतार में न जाने क्या करेंगे ?

मैं - खट्टर काका, यह सब तो भगवान् की लीला है।

खट्टर काका-हाँ, भगवान् खेलते हैं। कोई गार्जियन तो ऊपर में है नहीं। जो-जो मन में आता है, करते रहते हैं। यह चाल क्या कभी छूटनेवाली है? समझो तो वह अभी तक नाबालिग ही हैं। इसी से राम या कृष्ण की मूर्त्ति में कहीं दाढी-मूँछ देखते हो?

मैं - खट्टर काका, यह तो पते की बात कही। विष्णु भगवान् चिर किशोर नजर आते हैं। परंतु विश्व के पालन-कर्त्ता तो वही हैं?

खट्टर काका-अजी, तभी तो विश्व की यह हालत है! वह ऎसे आलस्य-विलासी हैं कि हमेशा ससुराल में ही पड़े रहते हैं। सदा क्षीर सागर शयन! देवता लोग बहुत गोहार करेंगे तो एक-एक बार गरुड़ पर चढेंगे और सुदर्शन चक्र से काम कर आवेंगे। उसके बाद फिर वही लक्ष्मी-मुख कमल मधु व्रत! रात-दिन ससुराल में रहते- रहते आदमी अहदी बन जाता है। अजी, जिस पर संसार भर का भार हो, वह कहीं ऎसा घर जमाई बन कर पड़ा रहे! परंतु इनको डाँटे कौन? कभी भृगु जैसे ब्राह्मण से पाला पड़ जाता है, तो सीख जाते हैं। इसी से तो यह ब्राम्हण से भड़के हुए रहते हैं। यदि इनमें ब्राह्मण के प्रति भक्ति रहती तो मेरे कपार पर दरिद्रता क्यों सटी रहती?

मैं - तब तो त्रिमूर्त्ति में बाकी बचे सिर्फ महादेव।

खट्टर काका एक चुटकी कतरा मुँह में रखते हुए बोले- तब महादेव की भी सुन लो। वह तो सहज ही बौड़म ठहरे। आक-धतूर खाकर मत्त! न जाति-पाँति का ठिकाना, न छुआछूत का विचार! भूत-प्रेत बैताल का संग! चमड़े पहने, हाड़-मूँड लेकर श्मशान में क्रीड़ा करते रहते हैं। औघड़ की तरह! इसी कारण उनका प्रसाद कोई नहीं खाता।

मुझे मुँह ताकते देख खट्टर काका कहने लगे-समझो तो महादेव भारी नास्तिक थे। उन्होंने सारा कर्म-धर्म डुबो दिया। न शिखा-सूत्र रखा, न ब्राह्मण-भोजन कराया। कोई भला आदमी बैल की पीठ पर सवारी करता है? गले में साँप लपेटता है? एक बार जी में आया तो जहर उठाकर पी गये! समझो तो उनके जैसा सनकी आज तक पैदा नहीं हुआ।

मैं - खट्टर काका, महादेवजी निर्विकार हैं।

खट्टर काका-सीधे निर्विकार मत समझो। ससुर ने यज्ञ में निमंत्रण नहीं दिया तो जाकर उनकी गर्दन ही काट आये! ससुर का तो यह हाल, और ससुर की बेटी को सर पर चढाकर अर्धनारीश्वर बन गये! समझो तो इन्हीं की देखादेखी आजकल के कलियुगी पति स्त्रियों को सर पर चढाए रहते हैं।

मैंं- परंतु महादेवजी आशुतोष हैं। उन्हें प्रसन्न होते भी देर नहीं लगती।

खट्टर का-हाँ, जहाँ किसी ने एक बेलपत्र चढाकर ब्रूम् बोल दिया कि तुरंत वरं ब्रूहि। वरदान देते समय औढरदानी! इसी का फल हुआ कि भस्मासुर उन्हीं के मत्थे हाथ देने लगा! समझो तो सभी राक्षस इन्हीं के बहकाए हुए हैं। देवताओं में ऎसा अलमस्त कौन मिलेगा? इसीलिए तो बमभोला कहलाते हैं। अजी, मैंने तो भरसक चेष्टा की कि भोलानाथ से कुछ झीटूँ, लेकिन अभी तक कहाँ हाथ लगे हैं! ऎसे मदक्की का भरोसा ही क्या?

मैं - खट्टर काका, तब सभी देवताओं में श्रेष्ठ आप किसको समझते हैं?

खट्टर काका-कैसे कहूँ, स्वयं देवता लोग भी इसका निर्णय नहीं कर सके हैं। महादेव विष्णु को बड़ा मानते हैं। विष्णु महादेव को। राम महादेव को पूजते हैं। महादेव राम नाम का जप करते हैं। सीता गौरी की पूजा करती हैं। गिरीजा सीता का ध्यान करती हैं। पार्वती महादेव की आराधना करती हैं। महादेव दुर्गा की स्तुति करते हैं। ऎसा गडबड-घोटाला है कि स्वयं देवताओं को भी पता नहीं कि कौन बड़ा, कौन छोटा। नहीं तो महादेव के विवाह में कहीं गणेश की पूजा हो! बाप के विवाह में बॆटे की पूजा! देवताओं की बातें ही निराली होती हैं।

मैं - खट्टर काका, जो जितने बडे़ देवता हैं, वे उतने ही नम्र और विनयशील होते हैं।

खट्टर काका हँसकर बोले-जो देवानां प्रियः (मूर्ख)होगा, वही ऎसा कहेगा। अजी, देवताओं जैसा झगड़ालू कौन मिलेगा? इन लोगों में इस तरह लड़ाइयाँ हुई हैं कि क्या तीतर-बटेर में होगी? पहले तो 'आप बड़े, तो आप बड़े ।' और, जहाँ किसी बात पर बझ गती तो भिड़त होते भी देर नहीं! इंद्र और कृष्ण में, कृष्ण और महादेव में, महादेव और गणेश में, किस प्रकार उठा-पटक हुई है, सो देखना हो तो पुराण पढो़। और, अंत में फिर वही स्तुति! 'आप पूज्य, तो आप पूज्य! अजी, ये लोग प्रणम्य देवता थे!

मैं - खट्टर काका, अगर सभी देवता ऎसे ही हैं, तो फिर सृष्टि का काम कैसे चलता है?

खट्टर काका महीन कतरा करते हुए बोले-सच पूछो तो एक ही देवता असली सृष्टिकर्त्ता हैं, और वह हैं कामदेव। उन्हीं से सारी सृष्टि चलती है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश- तीनों उनसे हारे हुए हैं। जब बड़ो का यह हाल तो कुत्र गण्यो गणेशः!

मैंने कहा-खट्टर काका, गणेश की पूजा तो सर्वप्रथम होती है। विघ्न दूर करने के लिए ।

खट्टर काका-हाँ वह विघ्नेश कहलाते हैं। परंतु उनका तो अपना ही जीवन विघ्नों से भरा हुआ है। शनि की दृष्टि पड़ी तो मस्तक कट गया। गजवदन बनना पड़ा । परशुराम से लड़ाइ हुई तो फरसे से एक दाँत टूट गया। एकदंत हो गये। जब अपने ही विघ्न दूर नहीं कर सके तो दूसरे का विघ्न क्या दूर करेंगे! इसी से लाख गणपति ग्वं हवामहे करते रहने पर भी हम लोगों के दुःख दूर नहीं होते हैं।

मैं - तब गणेश से भी प्रबल हैं कामदेव?

खट्टर काका-गणेश के बाप से भी प्रबल हैं। कामदेव को पछाड़नेवाला आज तक कोई पैदा नहीं हुआ। इसी से मैं इनको सबसे बड़ा देवता मानता हू़ँ। जब तक सृष्टि का प्रवाह चलता है, तब तक कामदेव की सत्ता को कौन अस्वीकार कर सकता है? यह पंचभूतमय शरीर इन्हीं के पंचसायक का प्रसाद है। और, जिस दिन यह देवता अपना वाण तरकस में रखकर कूच करेंगे, उसी दिन प्रलय समझो। सृष्टि के लोप को ही प्रलय कहते हैं।

मैं - तब कामदहन की कथा क्यों है?

खट्टर काका बोले-'काम-दहन' का असली अर्थ है कामेन दहनम्। चौरासी लाख योनियाँ कामाग्नि से दग्ध होती रहती हैं। देखो, इनके जितने नाम हैं, सभी से यही बात सूचित होती है। सभी कामनाओं में प्रबल, इसीलिए कामदेव। मत्त कर देते हैं, इसलिए मदन। मन को मथकर छोड़ देते हैं, इसीलिए मन्मथ। अदृश्य हैं, इसिलिए अनंग। कोमल टिस देते हैं, इसलिए पुष्पधन्वा। संयोग करवाते हैं, इसलिए रतिपति। वियोग में जान ले लेते हैं, इसलिए मार!

मैं - तो महादेवजी उन्हें नहीं जीते हुए हैं?

खट्टर काका बोले-महादेव क्या जीतेंगे? कामदेव ही महादेव को जीते हुए हैं। तभी तो- दुर्गांग स्पर्शमात्रेण कामेन मूर्छितः शिवः (ब्रह्मवैवर्त)

दुर्गा के अंगस्पर्श से ही वह काम-मूर्च्छित हो गये! 'ब्रह्मवैवर्त' पुराण में शिव का संभोग-वर्णन पढो, तो समझोगे कि कामदेव ने महादेव की कैसी दुर्दशा की है!

भूमौ पपात तद्वीर्यं ततः स्कंदो बभूव ह।

यदि शिव सचमुच कामजयी होते तो कार्तिकेय और गणेश का जन्म कैसे होता ? लोग कहते है कि शिवजी ने मदन को भस्मीभूत कर दिया । मैं कहता हूँ कि मदन ने ने ही उन्हे भस्ममय बना डाला । तभी तो सती के वियोग मे भस्म लेपे रहते हैं ! जानते हो, भस्म क्या चीज है ?


'रुद्राग्नेयात् परवीर्यं तदभस्म्परिकीर्तितम्' । (बृहज्जातबालोपनिषद्)

भस्म साक्षात् रुद्र का वीर्य है ! अब तुम्ही कहो, महादेव प्रबल हैं या कामदेव ?

मुझे मुँह ताकते देख खट्टर काका बोले - वेद मे भी कामदेव को सबसे प्रबल देवता माना गया हैं देखो -


कामो जज्ञे प्रथमो नैनं देवाः आपुः पितरो न मर्त्याः ततस्त्वमसि
ज्यायान वुश्वहा महान् तस्मै ते काम नाम इति वृणोमि । (अथर्ववेद ९|२|१९)

भविष्य़पुराण प्रतिसर्गखंड मे तो यहाँ तक लिख मारा है कि


स्वकीयां च सुतां ब्रह्मा विष्णुदेवः स्वमातरम्
भगिनीं भगवान शंभूः गृहित्वा श्रेष्ठतामगात !

मैने पूछा - खट्टर काका, तो अन्याय देवताओं कि तरह कामदेव के मंदिर क्यों नहीं बने हैं ?

खट्टर काका हॅंस पडे़ । बोले - तुम बिल्कुल भोले हो । वह देवता हर मंदिर मे रहते हैं ! शरीर मंदिर से लेकर देव मंदिर तक में । कहीं-कहीं, जैसे कोनार्क और खजुराहो में, प्रकट रूप से विद्यमान है । अन्य मन्दिरों मे प्रच्छन्न रूप में हैं । अभी तुम जिस शिवलिंग पर जल ढारने जाते हो, वह किसका प्रतीक है ? मंदिर मे जाकर देखो, तो शिवलिंग और जलढरी, दोनो का रहस्य समझ में आ जाएगा ।

मैं - खट्टर काका, आप देवताओं से भी परिहास करते हैं ?

खट्टर काका - हॅंसी नही करता हूँ । लिंग पुराण देखो ।


लिंगवेदी उमादेवी लिंग साक्षान्महेश्वरः ।
तयोः संपूजनादेव देवी देवश्च पूजितौ ॥

और भी वचन लो - शिवशक्त्योश्च चिन्हस्य मेलनं लिंगमुच्यते । (शिवपुराण)


यत्र लिंगं तत्र योनिः यत्र योनिस्ततः शिवः
उभयैश्चैव तेजोभिः शिवलिंगं व्यजायत ।(नारदपंचरात्र)

शैव लोग एक अंग की पूजा करते हैं; शाक्त लोग दूसरे अंग की । कुछ लोग दोनो की । अब उसे द्वैत कहो या अद्वैत या विशिष्टाद्वैत ! उससे मुझे कोई झगडा़ नहीं ।

मैने कहा - खट्टर काका, आप तो हंँसी-हँसी मे बुद्धि को उलझा देते हैं । क्या आपको देवता मे विश्वास नहीं है ?

खट्टर काका बोले - अजी, विश्वास क्यों नहीं है ? 'देवता' का अर्थ है दिव्य कांति से युक्त । रंगबिरंगे वस्त्रों से चमकते हुए राजाओं को देखकर 'देवता' की कल्पना हुई । 'ईश्वर' का अर्थ मालिक । लक्ष्मीपति का अर्थ धनवान । नारायण का अर्थ है, जलमहल मे शयन करनेवाला । 'गरुड़वाहन' का अर्थ है शीघ्रगामी यान पर चलनेवाला । चतुर्भुज का अर्थ है जिसका बाहुबल चारों ओर व्याप्त हो । पंचमुख का अर्थ, जो पाँच व्यक्तियों का भोजन खा जाय! ये ही लोग देवता कहलाते आये हैं। जो धनी या प्रभावशाली हों वही देवता।

खट्टर काका नस लेते हुए कहने लगे-देखो, पहले छोटे-छोटे गण थे। इसलिए गणेश अर्थात् गण के सरदार से श्रीगणेश हुआ। वे दलनायक होते थे, इसलिए विनायक नाम पड़ा। उन दिनों भी गणपति गजवदन होते थे और साधारण जनता चूहे की भाँति उनके भार से दबी रहती थी। इसी से मूषिकवाहन कहलाए। बाद में बड़े-बड़े महाराजों को महलों में विलास करते देख अप्सरालय में विहार करनेवाले इंद्र की कल्पना की गयी। एकछत्र सम्राट को देखकर एकमेवाऽद्वितीयं ब्रह्म की कल्पना हुई। देवता लोग सामंतवाद के प्रतीक हैं; ब्रह्म साम्राज्यवाद के। परंतु अब तो समाजवाद का युग है। इस लोकतंत्र में असली देवता हमीं लोग हैं।