भूत का मंत्र

खट्टर कका के तरंग लेखक : हरिमोहन झा

खट्टर काका भंग घोंट रहे थे।

मेरे साथ एक तांत्रिक को देखकर बोले - अजी, यह कौन हैं ?

मैंने कहा - यह ओझा हैं।

चौधरीजी की हवेली में भूत लग गया है। वही झाड़ने के लिए आये हुए हैं।

ख़ड्टर काका को हँसी आ गयी। बोले-यह तो स्वयं भूत हैं। जिस पर चढ़ेंगे, उसकी खैर नहीं !

ओझा बिगड़कर बोले - मैं तांत्रिक हूँ। बारह वर्ष कामाख्या में रहकर मंत्र सिद्ध कर आया हूँ।

मैं क्या नहीं कर सकता ?

खट्टर काका बोले-अच्छा! अगर एक जोंक आपकी नाक में लगा दिया जाय, तो क्या उसे मंत्र के जोर से भगा दीजिएगा ?

खैर, वह भी जाने दीजिए।

मैं मुद्ठी में एक पैसा रखता हूँ।

जितना तंत्र-मंत्र आप जानते हैं, उसके जोर से उसे उड़ा दीजिए, तो मैं आपका लोहा मान लूँगा।

यह रंग-ढंग देखकर ओझा चुपके से खिसक गये । मैंने कहा - ओझा कहते हैं कि दुलहन की देह पर भूत चढ़ा हुआ है।

खट्टर काका के होंठों पर मुस्कान आ गयी। बोले - अजी, चौधरी बुढ़ापे में नयी शादी कर एक मस्त हथिनी उठा लाये हैं।

तब रात में चौधरानी के ऊपर भूत सवार हो जाता है, तो इसमें अचरज क्या ?

मैंने कहा-खट्टर काका, आपको तो हर बात में हँसी रहती है।

खट्टर काका बोले-हैंसी की तो बात ही है।

"कमजोर की लुगाई, सबकी भीजाई।' भूत को भी इसी देश में आकर देवर बनने का शौक होता है !

मैं - खट्टर काका, आप भूत नहीं मानते हैं ?

खट्टर-अजी, मैं 'भूत', भविष्य', 'वर्तमान', सभी मानता हूँ।

मैं - वह भूत नहीं।

खट्टर - तब कौन-सा भूत ?

मैं - वह भूत जो आदमी पर चढ़ जाता है।

खट्टर काका एक क्षण सोचकर बोले-हाँ, वह भूत भी मानता हूँ। अभी भी हम लोगों के माथे पर वह भूत चढ़ा हुआ है।

मैंने कहा - खड्टर काका, आप व्यंग्य कर रहे हैं। परंतु पद्म-पुराण में भूतों का कितना वर्णन लिखा है!

खट्टर काका भंग में काली मिर्च मिलाते हुए बोले-वही भूत तुम्हारे सर से बोल रहा है।

बड़े-बड़े पंडितों के सिर पर यह भूत सवार रहता है। जहाँ कुछ पूछो कि 'ऐसा लिखा हुआ है'! उनसे कहो-“महाराज! लिखा है तो रहा करे।

क्या आपने उसके नाम से गुलामी का पट्टा लिख दिया है ?

क्या आपकी अपनी बुद्धि बंधक पड़ी हुई है ?

दूसरे देशवाले नित्य नये-नये आविष्कार कर रहे हैं, और आप लकीर के फकीर बने हुए हैं !”

मैंने कहा-खट्टर काका, एक दिन हमारे देश में भी विज्ञान था। पुष्पक विमान था, अग्निवाण था...

खट्टर काका झल्लाकर बोले-फिर वही भूत बोल रहा है !

भूत का भूत! हाथी चला गया, हथिसार चला गया। फिर भी हम हाथ में सीकड़ लिये हुए हैं, कि हमारे दरवाजे पर कभी हाथी था।

अजी, जब था, तब था। अब क्या है, सो न देखो। रस्सी जल गयी, ऐंठन नहीं गयी। दूसरे देशवाले कहाँ से कहाँ पहुँच गये, और हम अपनी खटिया पर लेटे हुए, जम्हाई लेते हुए, डींग हॉँक रहे हैं--“एक दिन हम लोग भी आकाश में उड़ते थे!”

दूसरे देशों की आँखें भविष्य की ओर हैं; हम लोगों की भूत की ओर। यह भूत जान छोड़े, तब तो आगे बढ़ें!

मैंने कहा--खट्टर काका, आपको भूत-प्रेत में विश्वास नहीं है। परंतु इतने लोगों को जो भूत लगता है, सो कैसे ?

खट्टर काका एक मुट्ठी सौंफ भंग में मिलाते बोले - अजी, वह है भय का भूत। अँधेरी रात में सुनसान बगीचे के बीच किसी चोर या जार को देखकर कितने ही लोग भय के मारे गायत्री जपने लगते हैं, कृष्णाभिसारिका को 'यक्षिणी' समझकर उनकी धौती ढीली हो जाती है।

मस्तिष्क के विकार से कोई प्रलाप करे, तो भूत” बक रहा है! कोई चुपचाप आँगन में ईट-पत्थर बरसा दे, तो प्रेत उपद्रव कर रहा है!' अँधेरी रात में कहीं सुनसान में आग चमके तो 'राकस"! सॉप नहीं दीखे तो भूत-सॉप! आग लगने का कारण ज्ञात नहीं, तो 'ब्रह्माग्नि! यह सब कोरा अंधविश्वास है।

मैंने कहा-खड्र काका, आपको अलौकिक बातों में विश्वास नहीं है।

मगर अभी देश में ऐसे-ऐसे गुणी हैं, जो कर्णपिशाच को वश में कर सब कुछ जान लेते हैं।

मंत्र के द्वारा तिल्ली काटते हैं। कौड़ी फेंककर साँप को नाथते हैं। कटोरा चलाकर चोर का पता लगाते हैं। वैताल सिद्ध कर जो चाहें, मैंगा सकते हैं। मंत्र के प्रभाव से 'मारन', उच्चाटन', 'वशीकरण', सब कुछ कर सकते हैं।

खड्टर काका भंग रगड़ते हुए बोले-झूठ! यदि इनमें एक भी बात सच होती, तो मैं डंके की चोट उसका प्रचार करता। सरकार खुफिया पुलिस की जगह कटोरा चलानेवाले को नियुक्त कर लेती।

सिंचाई मंत्री पुरश्चरण के द्वारा वर्षा करवा लेते, विदेश-मंत्री राजदूतों के स्थानों पर कर्णपिशाच रख लेते । रक्षामंत्री वशीकरण मंत्र के प्रयोग से शत्रुओं को वशीभूत कर लेते। सेना के मद में जो करोड़ों खर्च होता है, वह बच जाता। देश पर कोई आक्रमण करता, तो एक झुंड तांत्रिक खड़े कर दिये जाते।

वे ऐसा हम्‌ फट्‌ स्वाहा करते कि सभी शत्रु भस्म हो जाते। और चिकित्सा-मंत्री महामारी के समय में महामृत्युंजय मंत्र का

पाठ कराते-
व्यम्बक यजामहे सुगंंधिं पृष्टिवर्धनम्‌ !

मैंने कहा-खड्टर काका, ओझा भूत झड़ेंगे, इसलिए बहुत-सी चीजें जुटा रहे हैं। उलटी सरसों, काली गाय का गोबर, तेलिया मसान का भस्म, श्यामवर्ण घोड़े की पूँछ का बाल!

खट्टर काका भंग का गोला बनाते हुए बोले-यही ढकोसला कहलाता है। भला, उलटी सरसों और भूत में कौन-सा कार्य-कारण संबंध है ?

मैंने कहा-तंत्र-मंत्र का रहस्य गुप्त होता है, इसी कारण ओझा आधी रात को एकांत में दुलहिन का भूत झड़ेंगे।

खट्टर काका डंडा पटकते बोले-इसी का नाम है गुंडई! और देशों की विद्या इंके की चोट पर चलती है और हमारे यहाँ की विद्या कनफुसकी में चलती है!

चोर कभी उजाला नहीं सह सकता ठग विद्या अंधकार में ही चलती है। पाश्चात्य विज्ञान प्रकाश में चमक रहा है। वह रेडियो', 'टेलीविजन' निकालता है, तो सारी पृथ्वी पर खिरा देता है। परंतु अपने देश के किसी पंडित को यह विद्या हाथ लग जाती तो पता नहीं, कितना आडंबर फैलाते! कहते कि सीधे ब्रह्मलोक से आकाशवाणी आ रही है! यजमान को सचैल स्नान करा, अहोरात्र उपवास कराकर, शुभ नक्षत्र में स्वर्ण, धेनु दान करवाकर, अमावस्या की रात में एकांत में श्मशान में ले जाकर, मृत व्यक्ति का स्वर सुना देते और आजीवन उसे दूहते रहते ।

रेडियो को चंडी की मूर्त्ति बनाकर, लाल वस्त्र से ढैंककर, अक्षत-सिंदूर छीटकर, गुप्त मंत्र पढ़कर, यथार्थ पर ऐसा आवरण डालते कि कोई वास्तविकता नहीं समझ सके और मरते समय वही रहस्य अपने बेटे के कान में देकर उसे भी सिद्ध बना जाते ।

मैंने कहा-खट्टर काका,-आप मंत्र को पाखंड समझते हैं ?

खट्टर काका भंग घोंटते हुए बोले - अजी, मंत्र का अर्थ है परामर्श।

यदि किसी स्त्री को गर्भ नहीं रहता हो, तो मैं राय दूँगा कि “गर्भाशय की परीक्षा कराओ।' यह उचित मंत्र होगा। किंतु यदि मैं कहूँ कि “गर्भाशय के द्वार पर सूर्य बैठे हुए हैं और जब तक वह हटेंगे नहीं, तब तक गर्भ स्थापित नहीं होगा तो यह पाखंड होगा।

यदि मैं यह भी कहूँ कि 'सूर्य को प्रसन्‍न करने के लिए प्रतिदिन छः हजार बार ओम्‌ घृणि: सूर्याय नमः जपते हुए बारह ब्राह्मणों को बारह दिनों तक हलुआ-पूड़ी जिमाइए', तो यह महापाखंड होगा।

यदि मैं यह भी जोड़ दूँ कि 'सूर्य के रथ का पहिया जरा अटक गया है, उसे हटाने के लिए थोड़ी-सी उल्लू की विष्टा, ऊँट की लीद, चमगादर की बीट, घोड़े की नाल, लाल मणि और बारह तोले सोना भी चाहिए तो यह महा-महा-पाखंड होगा।

और इसी प्रकार के महा-महा-पाखंडी सिद्ध कहलाते हैं! उनके नाम के -आगे 108 श्री जोड़ा जाता है! मेरा वश चले तो सीधे 420 लगा दूँ। मैंने पूछा-खट्टर काका, सभी इतने तंत्र-मंत्रवाले धूर्त हैं ?

खट्टर काका बोले-अजी, ये सभी ठग हैं, ढोंगी हैं, वंचक हैं।

खट्टर-पुराण का यह श्लोक याद रखो-
तांत्रिक: मांत्रिकश्चैव हस्तरेखाविशारद:
शकुनज्ञश्च॒ दैवज्ञः सर्वे पाखंडिन: स्मृताः

अर्थात्‌ “तंत्र-मंत्र, हस्तरेखा, सगुन और भविष्य की बातें कहनेवाले ये सारे लोग पाखंडी हैं।”

मैंने पूछा-खड्टर काका, तब सारा तंत्र-मंत्र मिथ्या है ?

खट्टर काका भंग में चीनी मिलाते हुए बोले--अजी, असल में तंत्र का अर्थ है रसायनशास्त्र दो वस्तुओं के सम्मिश्रण से किसी नये गुण का आविर्भाव हो जाता है।

इसी विज्ञान से दूसरे देश उन्नति की चोटी पर चढ़ गये हैं।

परंतु जो झूठ-मूठ का आइंबर रचकर तंत्र-मंत्र के द्वारा मिह्टी को चीनी, पानी को घी, या पत्थर को सोना बनाने का ढोंग रचते हैं, वे ठग हैं।

मुझे मुँह ताकते देख खट्टर काका बोले-यहाँ तंत्र-मंत्र, योग, इंद्रजाल, गुहाविद्या आदि नामों से पाखंड का महासागर लहरा रहा है।

देखो, अग्निपुराण में तंत्र-मंत्र द्वारा शत्रुनाश के कैसे-कैसे उपाय बताये गये हैं-
ओम हूँ ओम स्फें, अस्त्रं मेटय,
ओम्‌ चूर्णय ओम सर्वशत्रुं मर्दय
ओमू ह्व ओमू ह्व: ओमू फट

यह मंत्र 108 बार जप करने के बाद डमरू बजा दें तो शत्रुओं की सेना में भगदड़ मच जायेगी! सभी सैनिक हथियार फेंककर भाग जायेंगे!

चामुंडा देवी का मंत्र है -

ओम्‌ चामुंडे किलि किलि ओम्‌ हूँ फ़ट्‌
ओम फट विदारय ओम्‌ त्रिथूलेन छेदय,
वज्ञेण हन, दंडेन ताडय ओम पचपच,
पाशेन बंध बंध अंकुशैन कट कट,
हन हन, ओम प्रातय ओम चामुंडे
किलि किलि हुमू फट स्वाहा
(अग्निपुराण 35। 4-2)

यह मंत्र सिद्ध कर लें, तो चामुंडा सभी शत्रुओं को डंडे से पीटेंगी, त्रिशूल से चीर देंगी, रससे से बाँध देंगी, अंकुश भोंक देंगी, वज्र से चूर-चूर कर देंगी, पकाकर खा जाएँगी!

सभी ऐटम बमवाले बम बोल जाएँगे! बताओ, किसी राष्ट्र के पास इन मंत्रों का जवाब है ?

मुझे स्तंभित देखकर खट्टर काका पुनः बोलें--हमरे तंत्रों में ऐसे-ऐसे टोटके हैं कि दुनिया सुने तो दंग रह जाय! देखो -
गहीत्वा शुभनक्षत्रे अपामार्गस्य मूलकम्‌
लेपमात्रे शरीशणां सर्वशस्त्रनिवारणम्‌
(तंत्रसार)

“शुभ नक्षत्र में चिड़चिड़ी की जड़ पीसकर देह में लेप लो, तो किसी हथियार की चोट नहीं लगेगी!” दत्तात्रेय तो ऐसा उपाय बता गये हैं कि शत्रु ही नपुंसक बन जाय!

न रहे बाँस न बजे बाँसुरी! देखो -
बुधे वा शनिवारे वा कृकलां परिगृहद्य च
शत्रुमृत्रयत्ते यत्र कृकलां तत्र नि:क्षिपेत्‌
निखनेत्‌ भूमिमध्येएु उद्ध ते च पुनः सखे
नपुंसको मवेत्‌ शत्रु: ना न्यथा शंकरोवितम्‌
(दत्तात्रेयतंत्र)

अर्थात्‌ “शनिवार या बुधवार को एक गिरगिट पकड़कर वहाँ गाड़ दो, जहाँ शत्रु पेशाब करता है। बस, शत्रु नामर्द हो जायेगा! यह गुप्त रहस्य स्वयं शंकर ने कहा है!”

किसी स्त्री को वश में करना हो तो यह मंत्र जप लो -

हीं कालिकायै धीमहि तन्‍न: कालि प्रचोदयात्‌
हुम्‌ फट स्वाहा अमुकीम्‌ आकर्षय
(तंत्रसार)

बस, जिसका नाम लोगे, दौड़ी तुम्हारे पास चली आयेगी -

पुष्ये रुद्रजटमूलं मुखस्थं कारयेदू बुंधः
तांबूलादी प्रदातव्यं वश्या भवति निश्चितम्‌
(दत्तात्रेयतंत्र)

“पुष्प नक्षत्र में रुद्रजटा की जड़ पान में देकर प्रेमिका को खिला दो, वह तुम्हारी दासी बन जायेगी।”

अजी, एक तरकीब तो ऐसी है कि प्रेमिका क्या, उसका बाप भी आकर तुम्हारे पाँव दबाने लग जायेगा-

श्वेतार्क॑ रोचनायुक्तम्‌ आलमूत्रेण पेषयेत्‌
ललाटे तिलक कृत्वा त्रैलोक्य क्षोभयेत्‌ क्षणम्‌
दृष्टमात्रेण तेनेव सर्वों भवति किंकरः
(तंत्रसार)

“सफेद आक और गोरोचन को अपने मूत्र में पीसकर ललाट में तिलक कर लो, तो उसे देखते ही सब उसके दास बन जायें!” जो काम और किसी सूत्र से नहीं हो सकता, वह मूत्र से हो जायेगा!

खट्टर काका मुस्कुरा उठे। बोले-अजी, कहीं सचमुच ये सब प्रयोग न करने लग जाना! नहीं तो लेने के देने पड़ जाएँगे! ये सब अलौकिक सिद्धियाँ तांत्रिकजी के लिए छोड़ दो।

मैंने कहा-अगर उनमें वैसी शक्ति रहती तो मारे-मारे फिरते? बेचारे के घर पर छप्पर तक नहीं है। खट्टर काका बोले-तब उन्हें कहो कि गधे की चर्बी से तिलक करें। मुझे मुँह ताकते देखकर खट्टर काका बोले-हँसी नहीं करता हूँ।

उसी तंत्र में लिखा है -

गर्दभस्य॒वसायुक्त॑ हरिताल॑ मन:शिला
एभिस्तु तिलक कृत्वा यथा लंकेश्वरों नृपः

“गधे की चर्बी, हरताल और मनसिल मिलाकर तिलक करे, तो लंकेश्वर की तरह राजा बन जाय ।” अजी, ऐसे-ऐसे आविष्कारों को तो पेटेंट' करा लेना चाहिए!

मैंने कहा-खड्टर काका, तंत्रों में ऐसी-ऐसी ऊलजलूल बातें क्यों हैं ?

खट्टर काका बोले-लोगों को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए। एक-से-एक अभिचार और व्यभिचार के प्रयोग भरे हैं।

“अमुक नक्षत्र में अमुक मंत्र पढ़कर अमुक गुटका मुँह में रख लो तो अदृश्य होकर विचरण कर सकोगे!” अगर यह बात सच रहती तो यार लोग रेल ही में डेरा डाल देते, टी.टी.आई. टिटियाते ही रह जाते! मिठाई की दूकानों का दीवाला निकल जाता।

रोज मुफ्त की मलाई उड़ाते। किसी की ससुराल में जाकर मालपुओं पर हाथ फेर आते। फिर वैसे तंत्र के आगे लोकतंत्र को कौन पूछता ?

" मैंने कहा--खट्टर काका, ऐसी-ऐसी असंभव बातों की कल्पनाएँ अपने यहाँ क्यों की गई हैं ?

खट्टर काका बोले--हम लोग कल्पना और जल्पना में विश्व की रेकार्ड तोड़े हुए हैं।

मनुष्य तो मनुष्य, हमारे यहाँ की गौएँ भी तंत्र-मंत्र जानती थीं !

देखो, कपिला गौ में कितनी अलौकिक शक्ति थी -
निर्गता कपिलावकत्रातः त्रिकोटीखंडगधारिणः
विनि:सृताः नासिकाया: शूलिन: पंचकोटय:
विनि:सृताः लोचनाभ्यां शतकोटि थनुर्धरा:
वक्षः स्थलाननिःसृताश्च कोटिश: दंडधारिणः
विनि:सृताः पादतलात्‌ वाद्यभांडास्तु कोटिशः
विनिर्गताः गुह्वदेशात कोटिशो ग्लेच्छ जातय:
(ब्रह्मवैवर्त)

अर्थात्‌ “कपिला गौ के मुँह से तीन करोड़ तलवारवाले, नाक से पाँच करोड़ भालावाले, आँखों से सौ करोड़ धनुष-वाणवाले, थन से करोड़ों डंडावाले, ख़ुर से करोड़ों बाजावाले और गुदा से करोड़ों म्लेच्छ निकल पड़े!"

अब तुम्हीं बताओ, आज तक ऐसी गाय संसार के और किसी देश में पैदा हुई है ?

इसलिए मैं कहता हूँ कि दुनिया में हमारा जवाब नहीं, हमारे यहाँ कुत्ता भी देवता (भैरव) का वाहन समझा जाता है।

उल्लू - गथे भी देवियों (लक्ष्मी, शीतला) के वाहन माने जाते हैं। उल्लू भी तांत्रिक प्रयोग में काम आता है !

देखो, दत्तात्रेय तंत्र में लिखा है -
उलूकत्य कपालेन घ्रतेनाहत कज्जलम्‌
तैन नेत्रांजनं कृत्वा रात्रौ पठति पुस्तकम्‌

“उल्लू के कपाल और घी से प्रस्तुत काजल आँख में लगा लो और रात के अंधकार में भी पुस्तक पढ़ लो!” ऐसे टोटके उल्लुओं ही के लिए हैं !

मैंने कहा-खट्टर काका, ओझा दुलहिन के लिए एक यंत्र बना रहे हैं।

खट्टर काका भंग घोलते हुए बोले-उसे यंत्र नहीं, षड्‌यंत्र कहो।

असली यंत्र है मशीन। यंत्र द्वारा आकाश में उड़ जाओ, पहाड़ उड़ा दो, समुद्र बाँध दो, पानी बरसा दो, बिजली चमका दो और ये सभी यंत्र अन्यान्य देशवालों ने निकाले हैं। समझो तो यंत्ररूपी वैताल उन्होंने ही सिद्ध किया है ।

यंत्र खेत जोतता है, चावल कूटता है, रसोई बनाता है, कपड़ा बुनता है, भार ढोता है, पंखा चलाता है, गीत सुनाता है, अंतरिक्ष में भ्रमण कराता है। सभी यंत्र तो हम लोग विदेशों से ही मँगाते हैं।

और बदले में कौन-सा यंत्र देते हैं ? यहाँ के तांत्रिक बहुत करेंगे तो एक बाल उखाड़कर ताबीज बनाकर भेज देंगे कि-लो, सिद्धिदाता यंत्र !

मैंने पूछा-तो भूत के मंत्र में आपका विश्वास नहीं है ?

खट्टर काका बोले-अजी, भूत का मंत्र हम लोग जानते ही कहाँ हैं ?

भूत का वास्तविक मंत्र जानते हैं पाश्चात्य देश क्षिते, जल, पावक, गगन, समीर, इन पंचभूतों को अपने वश में कर, जो चाहें, करा लेते हैं। जल, स्थल और आकाश पर विजय प्राप्त कर रहे हैं।

और एक हम लोग हैं, जो नकली भूत के फेर में पड़कर उलटी सरसों ढूँढ़ते फिरते हैं! हमारे सिर पर मूर्खता का जो भूत सवार है, वह भस्मीभूत हो, तब न देश का भविष्य बने! इसी कारण तो मैं भूतनाथ की आराधना करता हूँ।

यह कहकर खट्टर काका ने भंग का लोटा उठाया और शिवजी के नाम पर उत्सर्ग कर पी गये।