फलित ज्योतिष

खट्टर कका के तरंग लेखक : हरिमोहन झा

उस दिन ज्योतिषीजी मेरे यहाँ पंचांग देख रहे थे। उसी समय खट्टर काका पहुँच गये। उनको देखते ही ज्योतिषीजी अपना पोथी-पत्रा समेटने लगे। फिर भी खट्टर काका पूछ ही बैठे-ज्योतिषीजी! क्या हो रहा है?

ज्योतिषीजी ने कहा - नयी दुलहन अभी मायके में है । यह किस दिन यहाँ के लिए यात्रा करेंगी, उसी का विचार कर रहा हूँ ।

खट्टर काका बोले-वह जब चाहेंगी, चली आयँगी। इसके लिए आप क्यों परेशान हो रहे हैं?

ज्योतिषीजी - लेकिन प्रस्थान तो अच्छे दिन ही करेंगी !

खट्टर काका - अवश्य ! दुर्दिन मे, आँधी-पानी के दिन, तो नहीं चलेंगी ।

ज्योतिषीजी - लेकिन इस महिने में तो एक भी दिन नहीं होता है ।

खट्टर काका - इस महिने में पूरे तीस दिन होते हैं ।

ज्योतिषीजी - लेकिन काल जो अभी पूर्व मे है ?

खट्टर काका - ज्योतिषीजी मुझे मत ठगिए । काल क्या आपका छुट्टा साँढ़ है, जो अभी पूरब की तरफ मैदान चरने गया है ? काल कब किस जगह नहीं रहता ?

ज्योतिषीजी - आप तो शास्त्र मानते ही नहीं । अभी सूर्य दक्षिणायन हैं ।

खट्टर काका - हैं, तो हैं । इसमे दुल्हन का क्या कसूर है कि आप उन्हे ससुराल नहीं आने देते ?

ज्योतिषीजी - मैं क्या करुँ ? अभी तीन महिने विदा होने का कोई दिन नहीं बनता ।

खट्टर काका - क्यों नहीं बनता ?

ज्योतिषीजी - देखिए, पूस में तो विदा हो नहीं ।

खट्टर काका - क्यों नहीं हो ?

ज्योतिषीजी - पूस महिना प्रशस्त नहीं है ।

खट्टर काका - पूस महिने ने कौन सा पाप किया है ?

ज्योतिषीजी - अब आपसे कौन बहस करे ? माघ-फागुन मे सामने काल पड़ जाता है । चैत में चन्द्रमा वाम पड़ जाता है ।

खट्टर काका- इनका विधाता ही वाम है कि आपसे यात्रा का दिन तका रहे हैं । ज्योतिषीजी, जरा साहित्य का भी योग दीजिए । फागुन में कहीं काल का विचार होता है ! चैत्र का चन्द्रमा कहीं वाम हो ।

ज्योतिषीजी - उसके बाद तो भद्रा ही पड़ जाता है ।

खट्टर काका - भारी भद्रा तो हैं आप ! मुझे कहें, तो आज ही दिन बना दूँ ।

ज्योतिषीजी - सो कैसे आज सोमवार को पूरब की ओर दिशाशूल ही लग जाएगा ।

खट्टर काका - कैसे लग जाएगा रास्ते में कही कील गड़ी हुई है ?

ज्योतिषीजी - आप तो नास्तिक की तरह बोलते हैं ? "शनौ चन्द्रे त्यजेत् पूर्वाम् दक्षिणा ....."

खट्टर काका - कथं त्यजेत् ? तब आज पटना से भागलपुर जानेवाली गाड़ी कथं चलेत् ? सम्पूर्ण पृथ्वी ही पश्चिम से पूरब की ओर कैसे भ्रमण करते हैं ?

ज्योतिषीजी - जो बुद्धिमान हैं, वे दिग्बल में चलते हैं ।

खट्टर काका - ज्योतिषीजी, आपकी बात मैं मान लेता, यदि दिग्बल मे चलने से रास्ते में मोतीचुर के लड्डू बरस जाते । परन्तु मैं तो हर रोज हर तरफ जाता हूँ । न तो दिशाशूल में कभी शूल गड़ा और न दिग्बल में फूल झड़ा !

ज्यो० - तो आपके लिए दिक्शूल कुछ नहीं है ?

खट्टर काका - जिसे आप दिशाशूल कहते हैं, वह सिर्फ एक कल्पित दृक्शूल है, जो आपकी आँख मे खटकता है ।

ज्योतिषीजी - तो आपके लिए वारदोष कुछ नहीं है ?

खट्टर काका - रोममात्र दोष नहीं है । वारदोष और देशों को क्यों नहीं लगता ? "सबसे बुड़बक दीनानाथ" क्या हमी लोग हैं ?

ज्योतिषीजी - यदि शास्त्र ही उठा दीजिए, तब तो कोई बात नही ? परन्तु मुहुर्त्तचिंतामणि देखिए - -

खट्टर काका बीच ही मे काटते हुए बोले - मुहुर्त चिंतामणि नहि, धूर्त्त चिंतामणि कहिए ! आप लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए सभी लोगों को मुहूर्त्त के फेरे में डाले हुए हैं। राजा के लिए अभिषेकमुहूर्त्त! सेना के लिए अश्वगजसंचालनमुहूर्त्त! सिपाही के लिए शस्त्रधारणमुहूर्त्त! बनिया के लिए क्रय-विक्रयमुहूर्त्त! महाजन के लिए ऋणदानमुहूर्त्त! सोनार के लिए भूषणघटनमुहूर्त्त! धोबी के लिए वस्त्रप्रक्षालनमुहूर्त्त! नर्त्तकी के लिए नृत्यारंभमुहूर्त्त! यह सब पाखंड नहीं तो और क्या है?बेचारे किसानों को पग-पग पर मुहूर्त्त-जाल में फँँसा दिया गया हैं। हल जोतने के लिए हलप्रवहणमुहूर्त्त! बीज बोने के लिए बीजोप्तिमुहूर्त्त! धान रोपने के लिए शस्यरोपणमुहूर्त्त! धान काटने के लिए धान्यछेदनमुहूर्त्त! स्त्रियों की चोटी तो आप लोगों ने कसकर पकड़ी है। कह कब जूड़ा बाँँधे उसके लिए केशबंधनमुहूर्त्त! कब चूल्हा गाड़े, उसके लिए चुल्हिकास्थापन- मुहूर्त्त! कब नहाये, उसके लिए स्नानमुहूर्त्त! बच्चे को कब दूध पिलाए, उसके लिए स्तनपानमुहूर्त्त!

मुझे विस्मित देखकर खट्टर काका बोले-मैं हँँसी नहीं करता। स्तनों पर भी ज्योतिषियों का अधिकार है! स्तनंधय शिशु को भी मुहूर्त्त के बंधन से छुटकारा नहीं! विश्वास नहीं हो, तो उसका भी वचन सुन लो-


रिक्तां भौमं परित्यज्य विष्टिपातं सवैधृतिम
मृदुधृव क्षिप्रभेषु स्तनपानं हितं शिशोः! (दैवज्ञवल्लभ)

अजी, मैं पुछता हूँँ, यह सब क्या मजाक है? कोई प्रसूतिका मंगलवार को अपना स्तन नवजात शिशु के मुँँह में लगा देगी, तो क्या मंगल ग्रह बिगड़कर अमंगल कर देंगे? उनको स्तन से क्या बैर!

मैंने कहा- हो सकता है, ग्रह-नक्षत्रों का कुछ सूक्ष्म प्रभाव पड़ता हो, इसीलिए इतना काल-विचार किया गया है।

खट्टर काका बोले- अजी, यही काल तो हम लोगों का महाकाल बन गया!बाट में काल,हाट में काल, घाट में काल! ठाट बाँँधो तो काल! इतना ठाट-बाट तो लाट साहब का भी नहीं होता, जितना काल सम्राट का! "वह रुष्ट होकर विभ्राट कर देंगे!" इसी डर ने लोगों को जाहिल-जाट बना दिया। शादी करो, तो मुहूर्त देखो। गौना करो तो मुहूर्त्त देखो! गृहप्रवेश करो, तो मुहूर्त्त देखो। यहाँँ तक कि गर्भाधान करो, तो मुहूर्त्त देखो! यह सब खेलवाड़ नहीं, तो और क्या है?

मैं-खट्टर काका, आप दिल्लगी कर रहे हैं। गर्भाधान भी कहीं पत्रा देखकर किया जाता है।

खट्टर काका बोले-गर्भाधान ही क्यों, इनका वश चले तो गर्मा धान का भी मुहूर्त्त बना दें!

गर्भाधान का वचन देखो-


षष्ठयष्टमी पंचदशी चतुर्थी चतुर्दशीरप्युभयत्र हित्वा ।
शेषाः शुभाः स्युः तिथयो निषेके वाराः शशांकार्य सितेंदुजाश्च ॥ (बृहज्ज्योतिषसार)

षष्ठी, अष्टमी, पूर्णिमा, अमावस्या, चौठ, चतुर्दशी मे गर्भाधान की परमिट नहीं मिलती । सप्ताह में केवल तीन दिन सोम, बुद्ध, शुक्र को इस कार्य के लिए परमिंट दी जाती है । अजी, मैं पूछता हूँँ, यदि पुर्णिमा की आनन्दमय रात्रि में वर-कन्या 'मिथुन-लग्न' हो जाय, तो क्या चन्द्रमा को ग्रहण लग जाएगा या आसमान फट पड़ेगा ? रविवार को दाम्पत्य संयोग होने से क्या सूर्य के रथ का घोड़ा भड़क जाएगा या चक्का टूट जाएगा ? फिर वे स्वयंभू ज्योतिषी दाल-भात मे मुसलचंद क्यों बन जाते हैं ? मिथुन राशि के बीच वृश्चिक बनकर क्यों पहुँँच जाते हैं ? पूछे न आछे, मैं दुलहिन की चाची !

मैं - खट्टर काका, क्या आपको ज्योतिष में विश्वास नहीं है ?

खट्टर काका बोले - अजी, फलित ज्योतिष यदि फलित होता तो मैं अभी तक ढाई हजार बार मर चुका होता !

मैं - सो कैसे खट्टर काका ?

खट्टर काका - देखो, ज्योतिष का वचन है -
रविस्तापं कान्तिं वितरति शशी भूमितनयो ,
मृतिं लक्ष्मीं सौम्यः सुरपतिगुरुर्वित्तहरणम् ।
विपत्तिं दैत्यानां गुरुरखिलभोगानुगमनम् ,
नृनां तैलाभ्यंगात् सपदि कुरुते सूर्यतनयः ॥ (ज्योतिष सार-संग्रह)

अर्थात् , 'रविवार को तेल लगाने से कष्ट, सोमवार को कान्ति, मंगलवार को मृत्यु, बुद्धवार को लक्ष्मी, वृहस्पति को दरिद्रता, शुक्रवार को विपत्ति और शनिवार को सुख की प्राप्ति होती है ।' इसमे कौन सा कार्य-कारण संबंध है, सो तो दैवज्ञ ही जानें ! मगर मैं पचास वर्ष से नित्य तेल लगाता आया हूँँ । इतने दिनो में ढाई हजार से ज्यादा मंगलवार पड़े होंगे । परन्तु आज तक मैं जिन्दा ही हूँँ । फिर भी तुम ज्योतिष मे विश्वास रखने को कहते हो ?

मैने कहा - खट्टर काका, इसका उत्तर तो ज्योतिषी ही दे सकते हैं ।

खट्टर काका बोले - ज्योतिषी क्या उत्तर देंगे ! अपने ही फंदे मे फँँस जाएगे । देखो कैसा गड़बड़झाला है । ऋतु प्रकरण में एक जगह कहते हैं -

'आदित्ये विधवा नारी '

अर्थात् ,'यदि कोई स्त्री रविवार को ऋतुमती हो, तो विधवा हो जाएगी ।' और फिर दूसरी जगह कहते हैं -

'पंचम्यां चैव सौभाग्यम्'

अर्थात् , 'यदि पंचमी तिथि में ऋतुमती हो तो वह सौभाग्यवती होगी ।'

अब मैं ज्योतिषी महराज से पूछता हूँँ कि अगर पंचमी रविवार को कोई स्त्री ऋतुमती हो, तब क्या होगी ?

ज्योतिषीजी को चुप देख खट्टर काका बोले - और देखो एक वचन है - माघे पुत्रवती भवेत् ।

अर्थात् , 'माघ मास में रजोदर्शन होने से पुत्रवती हो ।' और दूसरा वचन है -

'कृत्तिकायां तु वन्ध्या स्यात्' ।

अर्थात् , 'कृत्तिका नक्षत्र में रजोदर्शन होने से स्त्री बंध्या हो ' ।

अब ज्योतिषाचार्य से पूछो कि यदि माघ मास कृत्तिका नक्षत्र मे स्त्री रजस्वला हो जाय, तब तो बंध्या पुत्र का जन्म हो जाएगा !

ज्योतिषीजी को निरुत्तर देखकर खट्टर काका फिर बोले - और तमाशा देखो । एक जगह तो कहते हैं कि - "धने पतिव्रता ज्ञेया" यानि धन राशि में रजस्वला होने से पतिव्रता होते हैं ।

और दूसरी जगह कहते है कि - "मंदे च पुंश्चली नारी" अर्थात, शनिवार को रजस्वला होने से व्यभिचारिणी हो ।

अब तुम्ही कहो कि यदि वह धन राशि में शनिवार को रजस्वला हो जाय, तो क्या करेगी ?

अजी, कहाँ तक कहूँ ? इतने पाखण्ड भरे हुए हैं,कि वर्णन करने से महापुराण बन जाए । फिर भी लोग ज्योतिषी के पीछे पड़े रहते हैं ।

खट्टर कका बोल ही रहे थे कि उधर से तब तक गंगानाथ जी दौड़ते हुए पहुँचे और बोले - ज्योतिषीजी, अभी-अभी मेरे घर में शिशु का जन्म हुआ है । इसी से दौड़ा आ रहा हुँ जरा लग्न-कर्म देखिए ।

ज्योतिषीजी ने पूछा - कितने देर पहले शिशु का जन्म हुआ है ?

गंगानाथजी बोले - यहीं करीब दस मिनट पहले हुए हैं

ज्योतिषीजी पत्रा देखते हुए एकाएक चीख उठे - बाप रे बाप !

खट्टर काका ने पूछा - क्या हुआ ? क्या ततैया ने काट लिया ?

ज्योतिषीजी सर पर हाथ रखते हुए बोले - नहीं महराज ! सो रहता तो क्या बात थी ? यह तो सर्वनाश हो गया !

गंगानाथजी को काटो तो खून नहीं ! थर-थर काँपते हुए बोले - जल्द कहिए, ज्योतिषीजी ! क्या बात है ?

ज्योतिषीजी बोले - कहूँ क्या खाक ? मूल नक्षत्र के पहले चरण में जन्म हुआ है । गंडयोग में ! वह आपको ही ले डुबेगा । "मूलाद्यपादे पितरं निहन्ति !"

गंगानाथजी पर बज्रपात हो गया । वह फूट-फूट कर रोने लगे । ज्योतिषीजी गंभीर भाव से कहने लगे- शिशु ने आपका नाश करने के लिए ही जन्म लिया है। दो ही उपाय हैं। या तो उसे कहीं फेक दीजिए या आज ही माँ के साथ ननिहाल भेज दीजिए। आठ वर्ष तक उसका मुँह आपको नहीं देखना है। और अभी से

धेनुं दद्यात सुवर्णं च ग्रहांश्चापि प्रपूजयेत

गोदान,स्वर्णदान, नवग्रहपूजा, यह सब करना पड़ेगा।

अब खट्टर काका से नहीं रहा गया। बोले- जिसने यह सब लिखा है, वह झूठा है, मक्कार है! असली ग्रह तो आपलोग हैं। नक्षत्रों की आड़ में अपना नक्षत्र बनाते हैं। क्यों इस बेचारे को व्यर्थ महाजाल में डाल रहे हैं?

ज्योतिषीजी- तो क्या आप जन्मकुंडली का फल नहीं मानते?

खट्टर कका- कुंडली का इतना ही फल मानता हूँ कि उससे आपके बच्चे के कान में कुंडल पड़ जाते हैं। मेरी नजर में वह सरासर जाली दस्तावेज है। इसी समय हजारों ब्च्चे दुनिया में पैदा हुए होंगे। तो क्या सभी के भग्य-कर्म एक-से होंगे? एक ही साथ दो जुड़वाँ बच्चे जन्म लेते हैं। एक जीता है, दूसरा मर जाता है। टीपन तो एक ही रहती है। फिर फल क्यों परस्पर विरुद्ध होते हैं?

ज्योतिषीजी कुछ कुंठित होते हुए बोले- तो भृगु-पराशर आदि जो इतना सारा जातक-विचार कर गये हैं, वह मिथ्या है?

खट्टर काका बोले- ये ही सब नाम बेचकर तो आप लोग हजारों वर्षों से यह ठग-विद्या का व्यापार चला रहे हैं। जो मन में आवे सो श्लोक गढकर जोर दीजिए और ठोक दीजिए पराशर के मत्थे!

अजी, मैंने भी ज्योतिष के ग्रंथ देखे हैं। उनमें ऎसी-ऎसी बातें, जो धूर्त्तों की ही रची हो सकती हैं। यजमानों की आँखों मे धूल झोंककर यजामानिनों के साथ भद्दे मजाक तक किए गये हैं ।

ज्योतिषीजी ने सशंकित होते हुए पूछा - कैसे आप उदाहरण दे सकते हैं ?

खट्टर काका ने कहा - एक-दो नही, अनेकों । देखिए ये लोग कैसे ढोंग रचे हुए हैं -


उपपदे बुधकेतुभ्यां योग संबंधके द्विज ।
स्थूलांगी गृहिणी तस्य जायते नात्र संशयः ॥(पराशरहोराशास्त्र)

यजमान की जन्मकुंडली देखकर वे पहले ही जान जाते हैं कि उसकी पत्नी मोटी, गुलथुल बदन की होगी । इतना ही नहीं , कुंडली में ग्रहों का हिसाब लगाकर स्तनों का आकार भी भांप लेते हैं ।

कठिनोर्ध्व कुजाचार्ये श्रेष्ठस्थूलस्तनोत्तमा । (पा० हो०

अगर कुज (मंगल) बुलंद होंगे, तो कुच भी बुलंद रहेंगे ।

मुझे बिस्मित देखकर खट्टर काका कहने लगे - अजी, इतने ही में मुँह बा रहे हो ? अभी और सुनो ।


जा मित्रे मंदभौमस्थे तदीशे मंदभौमजे ।
वेश्या वा जारिणी चापि तस्य भार्या न संशयः ॥ (पा० हो०)

जिसकी टीपन में इस तरह का योग होगा, उसकी पत्नी निःसंदेह वेश्या होगी या यारों के साथ आशनाई करेंगी ।

मैने कहा - अरे, ऎसी बातों से तो दाम्पत्य संबंध का बिच्छेद हो जा सकता है

खट्टर काका बोले - उसकी फिक्र श्लोक बनानेबाले को थोडे ही है ? और सूनो ।


भग्नपादार्क्ष संयोगाद् द्वितिया द्वादशी यदि ।
सप्तमी चार्कमंदारे जायते जारजो ध्रुवम् ॥

अर्थात् , शिशु की कुंडली में उपर्युक्त योग रहे तो वह निश्चय जारज संतान है ।

मैं - यह श्लोक तो स्त्री का गला कटवा सकता है ।

खट्टर काका - अजी, केवल स्त्री का ही नही, छोटे भाई का भी गला काटनेवाला श्लोक भी है । देखो -


ग्रहराजे स्थिते लग्ने चतुर्थे सिंहिकासुते ।
स्वदेवरातु सुतोत्पत्तिः जाता तस्याः न संशयः ॥ (पारासर होराशास्त्र)

अर्थात् टीपन में ऎसा योग हो, तो 'निस्सन्देह देवर के वीर्य से पुत्रोत्पत्ति हुई है !' टीपन सूँघने से से ज्योतिषी महराज को वीर्य का गंध लग जाती है । अब तुम्ही बताओ, यह सब गुंडई नहीं है तो और क्या है ? और ऎसे-ऎसे शोहदों को इस देश में कहा जाता है ज्योतिर्विद्यार्णव !

मैने पूछा - आपने जो सब वचन कहे हैं, वे क्या सचमुच ज्योतिष के ग्रंथ में है ?

खट्टर काका ने कहा - नहीं तो क्या मैं अपनी तरफ से गढ़कर कह रहा हूँ ? ज्योतिषाचार्य तो यहाँ बैठे ही हुए हैं ! पूछ लो कि ये सब श्लोक ग्रन्थ में है या नहीं । सो भी ग्रन्थ कैसा तो पाराशर होराशार !

ज्योतिषीजी सर खुजलाते हुए बोले - हाँ, वचन तो जरूर ग्रन्थ में है । 'पाराशर होरासार' ज्योतिषशास्त्र का प्रामाणिक ग्रंथ है । किन्तु उसको आप असत्य क्यों मानते हैं ?

खट्टर काका बोले - केवल असत्य ही नहीं, अश्लील भी । उसमे ऎसी-ऎसी गंदी गालियाँ भरी हुई है, जैसी चकले में ही सुनने को मिलेंगी । देखिए -


धनेशे सप्तमे वैद्ये परजायाभिगामिकः ।
जाया तस्य भवेद्वेश्या मातापि व्यभिचारिणी ॥

इस प्रकार की ग्रहदशा हो तो 'वह आदमी परस्त्री-गामी होगा, उसकी पत्नी रंडी होगी, उसकी माँ व्यभिचारिणी होगी ' ! ऎसी माँ-बहूवाली गालियाँ भठियारों के मुंँह से ही निकल सकती है । क्या यह विद्वानों की भाषा है ?

मैने कहा - खट्टर काका, ज्योतिषशास्त्र में ऎसी बातें भी होगी, यह मैं नहीं जानता था ।

खट्टर काका बोले - तुमने ज्योतिष पढा ही कब ? बृहज्जातक, पाराशर आदि देखो तब पता लगेगा ।

अब ज्योतिषीजी से नहीं रहा गया । शास्त्रार्थ की मुद्रा में बोले - यह सब झूठ है, इसका प्रमाण ?

खट्टर काका ने उत्तर दिया - प्रमाण स्वयं मैं हूँ । मेरी टीपन में राजयोग लिखा है ।


वाहनेशस्तथा माने मानेशो वाहने स्थितः ।
लग्नधर्माधिपाभ्यां तु दृष्टो चेदिह राज्यभाक ॥

परंतु राज मिलने की क्या बात, एक राज (मजदूर) तक नहीं मिलता। राजयोग के बदले रोज हठयोग का अभ्यास करना पड़ता है। अब रहा जारयोग! सो जरा तर्कशास्त्र का योग लगा कर देखिए। क्या व्यभिचार पत्रा देखकर किया जाता है? और उससे जो गर्भ होता है, वह क्या लग्न का विचार कर पेट से निकलता है? आप दूसरों का कौन कहे, अपने पुत्र का भी जारज योग नहीं पकड़ सकते! इसीलिए कहा गया है-


गणयति गगने गणकः चंद्रेण समागमः विशाखायाः
विविधभुजंगक्रीडासक्तां गृहिणीं न जानाति!

विशाखा, अनुराधा, और रोहिणी के समागम पर तो आपकी सूक्ष्म दृष्टि रहती है, चु चे चो ला अश्विनी को आप कसकर पकड़े रहते हैं, आकाश के हस्त नक्षत्र का प्रवेश आप देखते हैं, किंतु अपने घर की हस्तिनी की गतिविधि आप नहीं जानते! तब जारज योग क्या पकड़िएगा?

ज्योतिषीजी तिलमिला उठे। बोले- यह तो गाली हो गयी। ज्योतिषी की स्त्री क्या गणिका हिती है?

खट्टर काका हँसकर बोले- गणक का स्त्रीलिंग तो गणिका ही होना चाहिए। और, स्वयं गणक भी तो कुछ हद तक गणिका के समान ही होते हैं, देखिए, कैसी चुटीली उक्ति है!


गणिका गणकौ समानधर्मौं निजपंचांगनिदर्शकावुभौ
जनमानस मोहकारिणौ तौ विधिना वित्तहरौ विनिर्मितौ

"विधाता ने गणक (ज्योतिषी) और गणिका (वेश्या) को इसीलिए बनाया है, कि वे अपने पंचांगों के द्वारा जनमन को मोहित कर द्रव्य हरण करें। ये पत्रा खोलकर दिखलाते हैं वे पाँचों अंगों को खोलकर दिखला देती हैं।"

ज्योतिषीजी कटकर रह गये। फिर भी अभिमानपूर्वक बोले- ज्योतिष के सभी वचन प्रामाणिक और सत्य हैं। भृगु पराशर आदि त्रिकालदर्शी थे।

खट्टर काका ने मुस्कुराते हुए पूछा- ज्योतिषिजी, आपको अपनी जन्मकुंडली पर पूर्ण विश्वास है?

ज्यो०- अवश्य।

खट्टर काका- अछा, तो जरा अपनी कुंडली मुझे देखने दिजिए।

ज्योतिषिजी ने कुछ हिचकिचाते हुए अपनी कुंडली बस्ते से निकालकर खट्टर काका के हाथ में दी।

खट्टर काका ने कुंडली देखकर कहा- क्यों ज्योतिषी जी? मैं फल कहूँ? आप भागेंगे तो नहीं?

ज्यो०- भागूँगा क्यों?

खट्टर काका- तो सुनिए। पराशर का वचन है-


भौमांशकगते शुक्रे भैमक्षेत्रगतेऽपि च
भौमयुक्ते च दृष्टे च भगचुम्बनभाग भवेत!

अब आप अपने शुक्र का स्थान देखिए। यह योग आपमें लगता है कि नहीं? अब यदिआप कहें, तो मैं ठेठ भाषा में सबको अर्थ समझा दूँ।

यह सुनते ही ज्योतिषीजी पोथा-पत्रा समेटते हुए तुरंत उठकर विदा हो गये।

खट्टर काका बार-बार पुकारते रह गये- ओ ज्योतिषीजी! अजी ज्योतिषीजी महाराज! सुपारी तो लेते जाइए।

परंतु ज्योतिषीजी काहे को लौटेंगे?