एक पंथ दो काज

हितोपदेश की कहानियां - एक पंथ दो काज

इस प्रकार पंडित विष्णुजी उन दोनों राजकुमारों को अपने साथ ले आए ।

उन राज पुत्रों की आदतें तो बहुत बिगड़ चुकी थीं ।

उन्हें धर्म - कर्म से घृणा - सी थी । वे दोनों अपना समय मौज - मस्ती में काटना चाहते थे ।

पंडित विष्णुजी ने अपने ज्ञान की शक्ति से उन दोनों बालकों के मन की आवाज को सुन लिया था ।

वह यह बात भली भांति जानते थे कि इन लड़कों पर सीधों ज्ञान थोपने का अर्थ यही होगा कि ये दोनों या तो यहां से भाग जाएंगे या फिर विद्रोह कर देंगे ,

इसलिए उन्होंने इनको सुधारने के लिए एक नया मार्ग निकाला ।

इससे इनका मनोरंजन भी होगा और इन्हें ज्ञान भी प्राप्त हो जायेगा ।

इसे विद्वान् लोग कहते हैं - एक पंथ दो काज ।

इन दोनों राजकुमारों ने पहली रात तो पंडितजी की कुटिया में बड़े आनन्द से व्यतीत की ।

दूसरे दिन सुबह ही पंडितजी ने इस दोनों राजकुमारों को अपने पास बुलाया और बड़े प्यार से बोले : " देखो बेटो ,

बुद्धिमानों का समय व्यतीत होता है लिखने - पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने में और मूखों का समय कटता है सोने और लड़ाई - झगड़े में ।

इसलिए मैं तुम्हारे मनोरंजन के लिए तुम्हें अच्छी कहानियां सुनाऊंगा ।

इन कहानियों को सुनकर तुम्हें बहुत आनन्द आएगा ।

क्योंकि ' कहानियां बड़ी ही विचित्र होंगी ।

कौए , कछुए , शेर , हिरण आदि की कहानियां भला किस बच्चे को अच्छी नहीं लगतीं ।

इनमें से पहली कहानी का श्लोक इस प्रकार है : चाहे कोई साधन न हो , धन भी पास न हो , यदि बुद्धि और मेल - जोल से ,

प्यार से काम लें तो कठिन से कठिन काम भी चुटकियों

में बन जाते हैं । इस संसार में अनेकों प्रकार के विचित्र प्राणी हैं ।

किसी का किसी से मेल नहीं खाता ।

धरती और धन के झगड़े भी होते हैं ।

लेकिन इन सबके लिए बुद्धि की जरूरत हैं ।

जिसके पास बुद्धि नहीं वह सब कुछ पाकर भी खो देता है ।

जैसे कि एक कौए , कछुए और हिरण ने कर दिखाया ।

" " क्या कर दिखाया पंडितजी ? " दोनों राजकुमारों ने इस कहानी में रुचि प्रकट करते हुए पूछा ।

" लो सुनो यह कहानी । "

गोदावरी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था ।

उस पर दूर - दूर से आकर सैकड़ों पक्षी रातों को विश्राम करते थे ।

सैकड़ों ही घोंसले उस पेड़ पर बने हुए थे , जो इन पक्षियों के घर कहलाते थे ।

यह सबके सब पक्षी रात - भर इस पेड़ पर आराम करते और सुबह होते ही पेट की आग बुझाने के लिए इधर - उधर की बस्तियों की ओर उड़ जाते ।

एक दिन सुबह ही एक कौए ने उस वृक्ष के नीचे खड़े एक शिकारी को देखा जिसके हाथों में बड़ा - सा जाल था ।

कोए का माथा ठनका और वह सोचने लगा यह यमराज सुबह - सुबह कहां से आ टपका , इसके खूनी हाथों से तो बचना कठिन है ।

यह चालबाज शिकारी अभी तो इधर - उधर घूम रहा है , मौका पड़ते ही यह अपना दाव मारेगा ।

इसके जाल में न जाने कितने मासूम बेगुनाह पक्षी फंस जाएंगे और यह उन्हें ले जाकर जान से मार डालेगा ।

धन कमाने के लाभ में अन्धा यह शिकारी उन्हें उन लोगों को भी बेचेगा , जो इन पक्षियों को भूनकर काटकर चबा जाएंगे ।

कौए ने सोचा , यह तो उसके साथियों पर बहुत बड़ा हमला होने वाला है ।

उसने दूर से ही देख लिया कि यह शिकारी चावल के दाने वृक्ष के चारों ओर फैला रहा है ।

इस पर वह अपना जाल बिछाएगा । उन जाल में फंसेंगे भोले - भाले , भूखे पक्षी ।

अपना जाल फैलाकर शिकारी वृक्ष की ओट में आराम से बैठकर अपने शिकार का इन्तजार करने लगा ।

इधर दूर आकाश में कबूतरों का एक दल उड़ता हुआ जा रहा था ।

उनके राजा ने देखा , नीचे धरती

पर चावल ही चावल बिखरे पड़े हैं ।

चावलों को देख सारे कबूतरों के मुंह में पानी भर आया , ऐसा लगता था शायद उन्हें बहुत जोर की भूख लगी थी ,

भूखे को तो हर ओर भोजन ही भोजन नज़र आता है ।

ये बेचारे कबूतर किस खेत की मूली थे ।

चावलों को देख सबके सब कबूतरों के पंख जैसे रुक - से गये हों , उन्होंने अपने राजा से कहा : " महाराज , वह देखो , भोजन और वह भी चावलों का आहार ।

क्या आनन्द आएगा , बड़ी देर से भूख ने तंग कर रखा था ।

" कबूतरों के राजा ने अपनी प्रजा की ओर बड़ी विचित्र नज़रों से देखा , जैसे कुछ सोच रहा हो ,

फिर थोड़ा - सा रुककर कहने लगा " अरे भाइयो , इन चावलों पर झपटने से पहले यह तो सोच लो कि इस जंगल में ये चावल आए कहां से ,

जब कि इस जंगल में दूर - दूर तक कहीं भी आबादी नहीं है । मुझे तो अवश्य ही दाल में काला नज़र आता है ।

" “ महाराज , आप यह क्या कह रहे हैं ।

जरा आप हमारी भूख का तो ख्याल कीजिए ।

" कबूतरों ने इकट्ठे होकर कहा ।

“ मेरे साथियो ! मुझे तुम्हारी भूख के साथ साथ तुम्हारे जीवन का भी ख्याल रखना पड़ता है ।

तुममें और मुझमें केवल इतना ही अन्तर है कि तुम मेरी प्रजा हो और मैं तुम्हारा राजा , जो राजा अपनी प्रजा का ख्याल नहीं रखता वह राजा कहलाने का और बनने का अधिकारी नहीं ।

यह मत भूलो कि प्रजा भोली - भाली होती है , वह कभी भी भूल कर सकती है ।

उसका जीवन कभी भी खतरे में पड़ सकता है ।

अपनी प्रजा को हर खतरे से बचाने की जिम्मेवारी राजा पर होती है ।

" " मगर महाराज , हम तो भूखे हैं और हमारे सामने इस समय भोजन बिखरा पड़ा है ,

क्यों न हम इस चावलों के भोजन को खा अपने पेट की भूख मिटा लें ,

फिर न जाने यह भोजन हमें कभी मिले या न मिले ।

कहीं हम भूखे ही न तड़पते रहें ।

" कबूतर भूख से व्याकुल होते हुए बोले ।

" मैं मानता हूं मित्रो , कि तुम बहुत भूखे हो , मगर यह सोच लो कि इन चावलों को खाने के लालच में हमारी भी वही हालत न हो ,

जो एक ऐसे यात्री की हुई थी जो सोने का कंगन पाने के लोभ में अन्धा होकर कीचड़ में फंसकर रह गया ,

और वह मूर्ख बूढ़े शेर की चालाकी का शिकार हो गया ।

" " यह कैसे हुआ महाराज ? " सारे कबूतर हैरानी से बोल उठे और अपने राजा के मुंह की ओर देखने लगे ।

" लो सुनो , उस यात्री की दर्द भरी कहानी ।

इस कहानी को सुनकर ही तुम्हें पता चलेगा कि यह दुनिया कितनी चालाक और धोखेबाज है ।

" इतना कह कबूतरों का राजा कहानी सुनाने लगा ।