जैसे ही कबूतरों का राजा अपने साथियों को लेकर
ऊंचे पहाड़ों की ओर उड़ गया तो वृक्ष पर बैठा एक कौआ ,
इन दोनों मित्रों को विदा होते देखकर इनकी इस मित्रता पर अत्यंत खुश हो रहा था ।
उसे उस समय यह एहसास हो रहा था कि काश उसका भी
कोई ऐसा ही मित्र होता जो दुःख के समय तो काम आता !
हिरण्यक जैसा मित्र तो किसी नसीब वाले को ही मिलता है ।
फिर मैं भी क्यों न इसे ही अपना मित्र बना लूं ?
यही सोचकर वह वृक्ष से उड़ता हुआ हिरण्यक के बिल के पास पहुंचा और उससे कहने लगा ।
" हिरण्यक ! भैया , मैं आपसे मित्रता करना चाहता हूं ?
क्या तुम मेरे मित्र बनोगे ?
" हिरण्यक ने अपने बिल के अंदर से ही पूछाः " अरे भाई ! तुम हो कौन ?
कहां से आए हो ?
मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं हूं ।
भाई , मैं इस जंगल में रहने वाला एक कौआ हूं ।
मेरा इस जंगल में कोई भी मित्र नहीं ।
अरे भाई कौए ! तुम्हारी - हमारी दोस्ती कैसे निभ सकती है ?
“ संसार में जो जिसके साथ जी सकता है , बुद्धिमान प्राणी उसी के साथ दोस्ती करते हैं ।
मैं तो तुम्हारा भोजन हूं ।
मेरी तुम्हारी दोस्ती कैसे निभेगी ?
" भोजन और भक्षक की दोस्ती तो मुसीबत का घर है ।
जानते . हो , एक गीदड़ ने दोस्ती के जाल में ही फांसकर हिरण के साथ क्या किया था ?
" " क्या किया था ? " कौए ने आश्चर्य से पूछा । " हां सुनो । "
" मैं तुम्हें इन दोनों की कहानी सुनाता हूं । "
इतना कहते हुए हिरण्यक ने यह कहानी आरंभ की ।