चूहे और कौए की मित्रता

हितोपदेश की नैतिक कहानी- चूहे और कौए की दोस्ती

जैसे ही कबूतरों का राजा अपने साथियों को लेकर

ऊंचे पहाड़ों की ओर उड़ गया तो वृक्ष पर बैठा एक कौआ ,

इन दोनों मित्रों को विदा होते देखकर इनकी इस मित्रता पर अत्यंत खुश हो रहा था ।

उसे उस समय यह एहसास हो रहा था कि काश उसका भी

कोई ऐसा ही मित्र होता जो दुःख के समय तो काम आता !

हिरण्यक जैसा मित्र तो किसी नसीब वाले को ही मिलता है ।

फिर मैं भी क्यों न इसे ही अपना मित्र बना लूं ?

यही सोचकर वह वृक्ष से उड़ता हुआ हिरण्यक के बिल के पास पहुंचा और उससे कहने लगा ।

" हिरण्यक ! भैया , मैं आपसे मित्रता करना चाहता हूं ?

क्या तुम मेरे मित्र बनोगे ?

" हिरण्यक ने अपने बिल के अंदर से ही पूछाः " अरे भाई ! तुम हो कौन ?

कहां से आए हो ?

मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं हूं ।

भाई , मैं इस जंगल में रहने वाला एक कौआ हूं ।

मेरा इस जंगल में कोई भी मित्र नहीं ।

अरे भाई कौए ! तुम्हारी - हमारी दोस्ती कैसे निभ सकती है ?

“ संसार में जो जिसके साथ जी सकता है , बुद्धिमान प्राणी उसी के साथ दोस्ती करते हैं ।

मैं तो तुम्हारा भोजन हूं ।

मेरी तुम्हारी दोस्ती कैसे निभेगी ?

" भोजन और भक्षक की दोस्ती तो मुसीबत का घर है ।

जानते . हो , एक गीदड़ ने दोस्ती के जाल में ही फांसकर हिरण के साथ क्या किया था ?

" " क्या किया था ? " कौए ने आश्चर्य से पूछा । " हां सुनो । "

" मैं तुम्हें इन दोनों की कहानी सुनाता हूं । "

इतना कहते हुए हिरण्यक ने यह कहानी आरंभ की ।