एक जंगल में हिरण और कौआ बड़े प्यार से रहते थे ।
इन दोनों की मित्रता सारे जंगल में ही प्रसिद्ध थी ।
हिरण बहुत सुन्दर और मोटे - ताजे शरीर का था ।
एक दिन एक गीदड़ ने उस मोटे ताजे हिरण को देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया ,
वह मन ही मन में बोलाः " वाह ... वाह ... क्या हिरण है ! इसका भरा हुआ मांस खाने में कितना आनन्द आएगा ,
" मगर वह मेरा शिकार बने कैसे ? " क्योंकि उसे तो पता है , गीदड़ मेरा शत्रु होता है ।
जैसे ही में उसके पास जाऊंगा , यह मुझे देखते ही घृणा से दूर भाग खड़ा होगा ।
” फिर गीदड़ के तेज़ दिमाग में हेरा - फेरी की एक योजना ने जन्म लिया ,
वह समझ गया कि हिरण सीधे तरीके से काबू आने वाला नहीं , मैं इसे मित्र बनाकर अपने जाल में फांस सकता हूं ।
यही सोचकर गीदड़ हंसता हुआ हिरण के पास गया और बड़े अंदाज़ से बोला " कडो मित्र कैसे हो ?
आज तो बहुत दिनों के पश्चात् नजर आए हो । " " अरे भाई , तुम कौन हो ?
मैं तो तुम्हें नहीं जानता । " हिरण ने गीदड़ की ओर देखकर कहा ।
" मैं भी तुम्हारी भाँति इस जंगल का ही एक प्राणी गीदड़ हूं ।
वास्तव में मैं अकेला रह - रहकर बहुत ही ऊब गया हूं , कहीं मन नहीं
लगता , इतने बड़े जंगल मे अकेला !
तुम ही सोचो कि मेरे दिल पर क्या बीतती होगी ।
बस , इसीलिए सोचा कि किसी को अपना मित्र बनाऊं , जिसके सहारे मेरा समय भी कट जाएगा ,
इसके साथ - साथ अच्छा साथी भी मिल जाएगा ।
बड़े लोगों ने कहा है कि अकेला तो जंगल का वृक्ष भी बुरा होता है ।
" " यदि तुम इतने ही दुःखी हो तो तुम्हारा मित्र बनने में मुझे कोई एतराज नहीं । "
हिरण ने कहा ।
फिर दोनों एक - दूसरे के गले मिलते हुए मित्रता की नींव रखने लगे ।
दोनों बहुत देर तक इधर उधर की बातें कर अपना मन बहलाते रहे ।
हिरण को ऐसा लगा जैसे वास्तव में ही उसे सच्चा मित्र मिल गया हो , क्योंकि गीदड़ तो मीठी - मीठी बातें करने में बड़ा होशियार था ,
हिरण बेचारा सीधा - सादा , भोला - भाला था , इस प्रकार वे दोनों बहुत देर तक जंगल में घूमते रहे ।
शाम को हिरण उस बड़े पेड़ के नीचे अपने मित्र गीदड़ के साथ पहुंचा जहां पर उसका एक मित्र कौआ रहता था ।
कौए ने जैसे ही अपने मित्र को गीदड़ के साथ आते देखा तो उसका माथा ठनका , उसने झट से पूछाः " हिरण भैया !
यह तुम्हारे साथ कौन है ? " " यह मेरा नया दोस्त गीदड़ है ।
यह तुम्हारे से भी दोस्ती करेगा ।
यह अकेला है , बेचारा इसका इस जंगल में कोई भी मित्र नहीं ।
" " हिरण भैया , यह बात याद रखो कि एकदम से किसी भी अनजान प्राणी से दोस्ती करना ठीक नहीं ।
फिर तुम इस गीदड़ के बारे में अभी कुछ भी तो नहीं जानते ।
जिसके बारे में कुछ भी अता - पता न हो उसे घर में नहीं रखना चाहिए , ऐसी भूल पहले एक बूढ़े पक्षी ने की थी । "
" कैसी भूल ? " हिरण ने पूछा ।
" उसने एक बिलाव को घर में आसरा देकर अपनी मौत आप बुला ली थी ।
" " वह कैसे ? " हिरण और गीदड़ झट से बोल उठे ।
“ सुनो उसकी कहानी : "