चूहा बना कबूतरों का मित्र

हितोपदेश की कहानियां - चूहा बना कबूतरों का दोस्त

जैसे ही इतने बड़े जाल को साथ ले कबूतर उस हिरण्यक के घर के पास उतरे तो हिरण्यक बेचारा डर के मारे छुप गया ।

कबूतर राजा बोला , " अरे भाई , तुम तो मेरे बड़े पुराने मित्र हो ।

तुम क्यों इस तरह डर रहे हो ?

तुम तो घर से बाहर निकलो ।

मैं तुम्हारा मित्र ही तो हूं ।

क्या इतनी जल्दी अपने कबूतर राजा को भूल गये ?

" हिरण्यक ने अपने मित्र की आवाज पहचान ली थी ।

इसलिए जल्दी बाहर निकल आया और खुशी से नाचता हुआ बोला : “ अरे वाह ! आज कितना भाग्यशाली दिन है ।

मेरा मित्र मुझसे मिलने के लिए मेरे घर आया ।

केसी ने ठीक कहा है :

" जिसकी मित्र से भेंट हो जाय , " जिसे मित्र के साथ रहने का अवसर मिले , " जिसका मित्र , उससे दुःख - सुख बांटने आए ,

" उससे अधिक भाग्यशाली इस संसार में कौन हो सकता है ! "

इतना कहते ही हिरण्यक ने उस जाल की ओर देखा जिसके अंदर सभी कबूतर फंसे हुए थे ।

" अरे दोस्त , यह क्या ? "

" हां , दोस्त , यही तो है वह मुसीबत जिसमें हम फंसे हैं । यह समझ

लो कि यह मुझे पिछले जन्म के कर्मों का फल मिला है । कहते हैं

जिस कारण से , जिस मतलब से , जिस ढंग से , जिस समय से जैसा , जितना और जहां - जहां भला - बुरा कर्म किया है ,

भाग्यवंश , उसी कारण से , उसी मतलब से , उसी ढंग से , उसी समय में वैसा ही ,

उतना और वही भला बुरा फल सामने आ जाता है ।

बीमारी , शोक , सन्ताप , बन्धन और व्यसन जैसी जिन बुराइयों में आदमी फंस जाता है ,

वे सब उसके दुष्ट कर्मों के पेड़ पर लगे जहरीले फलों जैसे हैं ।

" " मित्र , तुम चिंता मत करो ।

मैं तुम्हारी सारी बात को समझ गया हूं ।

मुझे पता है , तुम इस समय संकट में फंस गये हो ।

ऐसे संकट के समय कोई सच्चा मित्र ही साथ दे सकता है । "

लगा ।

इतना कहते हुए हिरण्यक कबूतरों के जाल ही रस्सियां काटने

जब हिरण्यक जाल की पक्की रस्सियां काटने लगा तो उसके नाजुक दांत दर्द करने लगे ।

एक - दो दांत टूट भी गये ।

“ अरे मित्र , लगता है तुम्हारा यह सारा जाल काटने से पहले ही मेरे सारे दांत टूट जाएं

गे ।

इसलिए मैं सबसे पहले तुम्हें ही इस जाल से मुक्त कराता हूं ।

कहीं ऐसा न हो मित्र , तुम्हारे साथी जाल से निकल जाएं और तुम फंसे ही रह जाओ ।

" " नहीं , नहीं हिरण्यक भैया , ऐसी बात तुम न सोचो , ये सब कबूतर मेरी प्रजा हैं ।

प्रजा की रक्षा करना राजा का काम है ।

इसलिए तुम पहले इनके बन्धन काट दो " अरे कबूतर भाई , अपनी चिंता न करके दूसरों की चिंता करना नीतिशास्त्र में कोई अच्छी बात नहीं है ।

कहते है : " बुरे वक्त को सामने रखकर सबसे पहले धन बचाना चाहिए ।

" पत्नी मुसीबत में हो तो धन की भी परवाह नहीं करनी चाहिए ।

" स्वयं पर मुसीबत आ जाए तो पत्नी और धन दोनों की परवाह न करके स्वयं को बचाना चाहिए ।

" अरे भाई जान है तो जहान है ।

धमार्थ काम शांति से तभी तो होंगे जब अपना जीवन होगा ।

जब प्राणी का अपना जीवन ही समाप्त हो जाएगा तो वह दूसरे किसी के जीवन की रक्षा क्या करेगा ?

याद रखो , यदि अपनी जान बची तो समझ लो सब कुछ बच गया ।

" कबूतर राजा बोला , " मेरे मित्र बात तो तुमने बहुत पते की की है ।

मगर क्या करूं , अपने साथियों को कष्ट में भी तो नहीं देख सकता ।

तभी तो मैं पहले इन्हें जाल से निकालने के लिए कह रहा हूं ।

विद्वानों ने कहा है : “ धन और दौलत तो लोग दूसरों की भलाई के लिए लगा देते हैं ।

जब धन और जीवन दोनों को एक दिन समाप्त होना है तो फिर यह अच्छे काम के लिए क्यों न हो ?

" मेरे इस उद्देश्य का एक मुख्य कारण यह भी है कि मेरी और इनकी जाति एक ही है ।

ये मेरी प्रजा हैं , मैं इनका राजा हूं ।

यदि मेरे ही राज में मेरी प्रजा बन्धन में रहे तो बोलो ऐसा राज किस काम का ?

“ एक और बात भी है - ये सब मुझसे कोई वेतन नहीं लेते और मेरे गुण गाते हैं , मेरी जयजयकार बुलाते हैं ।

मैं यदि आज राजा कहलाता हूं तो केवल इन्हीं के सिर पर न ?

ये सब त्याग की मूर्ति मेरी जनता है , इसलिए मैं अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी इनके बन्धन काटूंगा ।

" मेरे दोस्त ! मांस , मल - मूत्र और हड्डियों से बने इस मिटने वाले शरीर का मोह छोड़कर , शरणागतों की रक्षा के मेरे यश को बनाए

रखो ।

" और फिर यह भी तो सोचो , यदि इस मिटने वाले मल - मूत्र के शरीर के बदले निर्मल और पवित्र यश मिले तो इससे अच्छी चीज और क्या हो सकती है ।

शरीर और गुणों में बहुत अन्तर है मेरे दोस्त ।

" शरीर तो पल - भर में नष्ट हो जाता है ।

" किन्तु

" गुणों की महिमा तो जब तक यह संसार है उस समय तक ही रहती है । "

कबूतर राजा की बातें सुनकर हिरण्यक की आंखें खुल गईं ।

वह खुश होकर बोला , “ बहुत भली बातें कही हैं तुमने ।

आज मुझे पता चला कि तुम एक महान् पक्षी भी हो ।

तुम्हारे जैसे को तीन लोक में राज करना चाहिए ।

देखो , अभी मेरे चूहे आ रहे हैं ।

वे पल - भर में इस जाल को काटकर रख देंगे । ”

देखते देखते चूहों ने सभी कबूतरों के बंधन काटकर उन्हें मुक्त कर दिया ।

फिर कबूतर राजा ने अपने साथियों से कहाः " देखो मित्रो , तुम यह मत सोचना कि तुमने जाल में फंसकर कोई अपराध किया है ।

न ही अपने को दोषी समझना क्योंकि ऐसी भूल तो हर भूखे से हो सकती है ।

" देखो न उस बाज को जो सौ - सौ कोस से मांस को देख लेता है ।

लेकिन जब उसकी मौत आती है तो सामने बिछा जाल भी उसे नजर नहीं आता ।

“ हम पक्षियों की तो बात ही क्या है ।

सूर्य और चांद भी राहू - केतु का शिकार हो जाते हैं ।

हाथी जंजीरों में और सांप पिटारे में बंद कर लिए जाते हैं ।

बड़े - बड़े बुद्धिमानों को भी दुःख के दिन देखने पड़ते हैं ।

" खुले आकाश में उड़ने वाले पक्षी भी मुसीबतों में फंस जाते हैं ।

उन्हें आंधी और तूफान आ घेरते हैं । गहरे सागर में से मच्छ फांस लिए जाते हैं ।

क्या अच्छाई , क्या बुराई , कैसा भला , कैसा बुरा मृत्यु मुसीबत के पंजे फैलाकर सबको अपने जाल में फांस सदा के लिए समाप्त कर देती है । "

है ?

इसके बाद हिरण्यक ने सब कबूतरों को प्यार से अपने घर में बैठाकर खाना खिलाया , फिर उन सबको विदा किया ।