कौआ , चूहा और कछुआ

हितोपदेश की नैतिक कहानी - कौआ , चूहा और कछुआ

जैसे ही कोआ और चूहा कछुए के घर पहुंचे तो वह बहुत ही खुश हुआ ।

उसने इन दोनों की खूब मन से सेवा की , लोग कहते हैं कि बच्चा हो अथवा बूढ़ा या जवान , घर आए मेहमान का पूरा सम्मान करो ,

मेहमान तो भगवान् का रूप होता है ।

हमारे शास्त्रों में लिखा

पंडित , क्षत्रिय , वैश्य इन तीनों का गुरु आग है , चारों वर्णों का गुरु ब्राह्मण है ,

स्त्री का एक ही गुरु है उसका पति और मेहमान इन सबका गुरु है ।

मेहमान का स्थान इतना ऊंचा है !

यदि ऊंचे घर , ऊंची जाति के घर वालों के यहां कोई छोटी जाति का मेहमान भी आ जाए तो भी वह पूज्य होता है ।

मेहमान तो भाग्यशाली लोगों के घर ही आते हैं ।

कौए ने अपने मित्र चूहे का परिचय अपने दोस्त कछुए से करवाते हुए कहा ,

“ देखो यार , यह मेरा सबसे प्रिय मित्र है , यह हम लोगों के डर के मारे मित्रता नहीं करना चाहता था ,

मैंने इसे बड़ी कठिनाई से अपने भले होने के प्रमाण और उदाहरण दे - देकर अपना मित्र बनाया है ।

वास्तव में यह है भी बहुत बुद्धिमान् ।

इसकी मित्रता से हमें बहुत लाभ होगा ।

आज से हम तीनों मित्र मिलकर रहेंगे , हम तीनों मित्रों में यह तेज बुद्धि वाला है ।

" कछुआ चूहे के गले लग गया और प्यार से उसकी पीठ पर अपना पंजा फेरते हुए कहने लगा : “ यार तुम ,

बहुत अच्छे हो जिसने हमसे दोस्ती निभाई , हमारी तुम्हारी मित्रता को सारा संसार याद करेगा । "

तुम

“ धन्यवाद मित्र , मैं तुम्हारा जितना भी धन्यवाद करूं कम है ,

दोनों के प्यार को देखकर तो मुझे पुरानी कहानी याद आ गई है ।

” " कौन - सी कहानी ?

क्या हमें नहीं सुनाओगे ?

" " क्यों नहीं , लो सुनो ... " यह कहकर चूहे ने यह कहानी आरम्भ की ।