हिरण , गीदड़ और कौआ

हितोपदेश की नैतिक कहानी - हिरण , गीदड़ और कौआ

कौए की बातें सुन गीदड़ को गुस्सा आ गया ।

वह कौए की ओर घूरता हुआ बोला : " अरे कलवे ,

जब तुम पहली बार इस हिरण से मिले थे तो तुम भी तो इसके लिए अजनबी ही थे ,

फिर तुम्हारी और इसकी मित्रता कैसे बढ़ती गई ?

बात यह है कि “ जहां पर विद्वान नहीं , वहां मुर्ख भी आदर पाने लगते हैं ।

जहां कोई पेड़ न हो वहां पर अरंडी के पौधे को ही पेड़ समझ लिया जाता

है ।

" यह मेरा है , वो तेरा , पराया , इस तरह की बातें केवल छोटे लोग ही करते हैं ,

बड़े दिल के लोगों के लिए तो पूरा संसार ही एक परिवार

" और मैं तुम्हे सच्चे मन से विश्वास दिलाता हूं कि जैसे मेरा दोस्त यह हिरण है ,

वैसे ही तुम हो , आज से यदि हम यह सोच लें कि हम तीनों ही मित्र हैं तो हमारी शक्ति बहुत बढ़ जाएगी ,

तीनों मिलकर आनन्द से जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।

" गीदड़ की बातों का कौए के मन पर बहुत प्रभाव पड़ा , वह कहने

" चलो , मामा , यदि यह बात है तो एक जुआ और सही , आज से हम तीनों मित्र बनते हैं ।

फिर देखते हैं , हमारी मित्रता क्या रंग लाती है ।

" इस प्रकार यह तीनों मित्रता के धागे में बंध गये , और एक साथ रहने लगे ।

एक दिन गीदड़ ने हिरण को अकेला देखकर कहाः ' मित्र , इस जंगल के पास ही एक धान का खेत है , चलो आज हम वहीं पर चलकर धान खाते हैं ।

क्या मजा आएगा धान खाकर ! " " यदि तुम्हारी यह इच्छा है तो मुझे इन्कार कहां चलो चलते हैं ।

" हिरण ने अपने मित्र का दिल रखने के लिए कहा ।

फिर दोनों उस धान के

खेत में पहुंच गये ।

और हिरण लगा बड़े मजे से धान खाने ।

इसी बीच खेत के मालिक ने अपना जाल फैला दिया था , सीधा - सादा हिरण उस जाल में फंस

गया ।

जाल में फंसा हिरण सोच रहा था कि अब तो कोई मित्र ही इस जाल की रस्सियां काटकर उसे मौत के मुंह से बचा सकता है ।

गीदड़ ने हिरण को जाल में फंसे देखा तो मन ही मन में कहने

लगाः

“ वाह ..... वाह ..... आज मेरा षड्यंत्र सफल हुआ है ,

अब मैं इस हिरण का मज़ेदार मांस खाकर अपनी पुरानी इच्छा पूरी करूंगा ।

यह तो अब जाल में फंस गया है ... इसे यहां से कोई नहीं निकाल सकता ।

अब तो मुझे कई दिनों तक भोजन की तलाश नहीं करनी पड़ेगी ।

" जैसे ही हिरण ने गीदड़ को अपनी ओर आते देखा , तो खुशी से बोला : “ मित्र , तुम ठीक समय पर आ गये हो ।

देखो , तुम जल्दी से इस जाल की रस्सियां काटकर मुझे आज़ाद कराओ , नहीं तो यह शिकारी मुझे पकड़कर ले जाएगा ।

आज तुम्हारी मित्रता मेरे काम आएगी ।

बड़े लोगों ने ठीक ही कहा है कि :

" सच्चा मित्र वही है , जो मुसीबत के समय काम आए ।

दुःख में मित्र की परीक्षा होती है , युद्ध में बहादुर की कर्ज में सत्यवादी की , गरीबी में स्त्री की और संकट में भाई बहनों की यह भी कहा गया है कि सच्चा बन्धु वही है जो

“ उत्सव या व्यसन में ,

अकाल या गदर में , राजद्वार या मरघट में , साथ देता है । "

गीदड़ ने हिरण की बातें सुन बड़े अंदाज से कहाः " देखो मित्र , यह जाल बना है चमड़े का और आज हे रविवार ,

मैं रविवार के दिन चमड़े को मुंह नहीं लगाता क्योंकि मैं बहुत पूजा - पाठ करता हूं ।

यदि तुम बुरा न मानो तो सुबह तक के जिए प्रतीक्षा कर लो ।

बस , सुबह तुम जैसे कहोगे में कर लूंगा ।

" हिरण बेचारा ठंडी सांस फंस गया था ।

मौत उसकी “ अब उसका कौन है इस निकाले ! " भरकर रह गया ।

अब तो वह बुरी तरह आखों के सामने नाच रही थी ।

दुनिया में जो इस मौत के मुंह से

उधर रात अधिक बीत जाने पर कौए ने जैसे ही देखा कि उसका मित्र हिरण अभी तक नहीं आया , तो उसकी चिन्ता बढ़ने लगी ।

काफी प्रतीक्षा के पश्चात् जब उसका दिल बहुत उदास हो गया तो वह उस अंधेरी रात में अपने मित्र की तलाश में निकल पड़ा ।

जंगल से दूर जैसे ही वह उस धान के खेत में पहुंचा तो उसने जाल में फंसे अपने हिरण मित्र को देखा और आश्चर्य से पूछाः " अरे मित्र , तुम यहां कैसे फंस गये ? "

हिरण अपने मित्र को देखकर खुश हुआ ।

उसे इस भंयकर अंधेरे में प्रकाश की किरण दिखाई दी और बोला : " जो मित्र की बात न माने उसका यही हाल होता है ।

सच्चे मित्र का दुःख के समय ही पता चलता है , आज मुझे पता चला कि दोस्त कोन है और दुश्मन कौन ... "

तुम किस की बात कर रहे हो ... ?

कौए ने हिरण से पूछा ।

" मेरे मित्र , इस संसार में बड़े - बड़े धोखेबाज़ हैं , जिनके मुंह में राम और बगल में छुरी होती है ,

जो मुंह से मित्र बनते हैं और अंदर से उसी का खून पीने के लिए तैयार रहते हैं ।

इनमें से ही एक है यह गीदड़ जो मेरे मांस पर लारें टपका रहा है ।

आज उसने मुझे फंसाकर अपनी मनोकामना पूरी करनी चाही है ।

" " अरे , भले लोक , मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि हर एक पर विश्वास मत करो ,

निर्दोष मित्र का दुश्मन कुछ नहीं बिगाड़ सकता , खूनी लोग अच्छे - भले लोगों की हत्या करने से नहीं डरते ।

मेरा कहा न मानकर तुमने स्वयं ही अपनी मौत बुलाई है ।

तभी तो कहा है । किः " मौत सिर पर मंडरा रही हो तो मरने वाले को न दीपक के बुझने का पता चलता है ,

न दोस्तों की बात सुनाई देती है और न ही कोई और रास्ता दिखाई देता है ।

" तुम स्वयं ही सोचो कि भला यह गीदड़ भी किसी का दोस्त होता है !

जो पीठ के पीछे काम बिगाड़े और सामने आकर मीठी मीठी बातें करे ,

ऐसे दोस्त को उस मटके की भांति फेंक देना चाहिए जिसके ऊपर तो दूध हो और नीचे जहर !

" फिर कौए ने गीदड़ की ओर देखकर कहाः " अरे ओ धोखेबाज़ , पापी , तुने यह क्या पाप कमाया ?

तू दोस्ती के माथे पर कलंक है ! " हे भगवान् , तूने ऐसे पापी को धरती पर कैसे भेजा ।

क्यों धरती मां के सीने का बोझ बढ़ाया ।

सच ही कहा है , धोखेबाज़ों से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी , क्योंकि ये तो हर हाल में ही बुरा करते हैं ।

बुरे प्राणी से अच्छाई की आशा रखना मूर्खता है ।

" ये लोग ऐसे अंगारे हैं जो हाथ में लेने से हाथ को जलाते हैं और ठंडे हों तो धुंआ बनकर कालिमा लगाते हैं ।

" वास्तव में बुरे लोगों का स्वभाव तो मच्छर के समान है , पहले तो पांव में पड़ेगा फिर डंक मारकर खून पीएगा ।

कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि खोटा आदमी कितना भी मीठा बोले ,

उस पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए , क्योंकि उसकी ज़बान पर मिठास और अन्दर ज़हर भरा होता है ।

" सुबह हुई तो कौए ने देखा कि खेत का मालिक हाथ में डंडा लिए चला आ रहा है ।

कौए ने हिरण की ओर देखकर कहा , " तुम अपने पेट में हवा भर , पांव अकड़ा लो , इस प्रकार मुर्दे से बन जाओ ।

मैं तुम्हारे शरीर पर बैठ आंखों को नोचने का नाटक करूंगा ।

वह समझेगा कि तुम मर चुके हो । फिर मैं तुम्हें आवाज दूंगा ।

" और तुम भागते नज़र आना । " हिरण कौए की सारी चाल समझ गया ।

खेत का मालिक जैसे ही जाल में फंसे हिरण के करीब आया तो उसने मरे हुए हिरण को देखा , उसका दिल टूट गया ,

सारी आशाओं " साली पर पानी फिर गया ।

माथे पर हाथ मारते हुए वह कहने लगा , सारी मेहनत बेकार गई " यह कहते हुए उसने अपना जाल खोल दिया और निराश होकर वापस जाने लगा ।

खेत मालिक को जाते देख , कौए ने झट से शोर मचाना आरम्भ कर दिया ।

अपने मित्र की आवाज सुन , हिरण तेजी से उठा और छलागें लगाते हुआ वहां से भाग निकला ।

जान बची तो लाखों पाए ।

" इसीलिए तो मैं कहता हूं कि भक्षक से मित्रता का फल कभी अच्छा नहीं निकलता । "