कौआ इस कहानी को सुन , चूहे के मुंह की ओर देखता हुआ बोला : " अरे भाई चूहे ।
तुम स्वयं ही बताओ कि यदि मैं तुम्हें खा भी लूंगा तो मेरा क्या बनेगा !
हां , यदि तुम्हें मैं दोस्त बना लूंगा तो हो सकता है उस हिरण की भांति तुम्हारे दुःख में कभी काम आ जाऊं ,
और उस कबूतर राजा की भांति कभी तुम मुझे दुःखों के बन्धनों से मुक्त करवा दो ।
" कहा गया है कि पुण्य करने वाले पक्षियों में भी आपसी विश्वास होना चाहिए ।
जो अच्छे स्वभाव के होते हैं वे कभी अपना धर्म नहीं छोड़ते ।
यदि साधु स्वभाव के लोगों को गुस्सा आ जाए तो उनके मन में विकार नहीं आता ,
घास - फूस की आग कितनी भी तेज क्यों न हो उससे सागर का पानी गर्म नहीं हो सकता ।
" चूहा कहने लगा , “ अरे भाई कौए , तुम हो चंचल स्वभाव के । ऐसे प्राणी से मित्रता नहीं निभ सकती ।
कहते हैं बिलाब , भैंसा , मेढ़ा , कौआ और बुजदिल इन पर विश्वास करने वाला सदा धोखा खाता है ।
" यह भी कहा गया है कि चूहों और कोओं में पिछले जन्मों से ही दुश्मनी चली आ रही है ।
अब तुम स्वयं ही बताओ कि हमारी तुम्हारी मित्रता निभेगी तो कैसे ?
" विद्वान् यह भी कहते हैं कि शत्रु के साथ चाहे कितनी भी मित्रता हो जाए ,
उस पर पूरा भरोसा नहीं करना चाहिए , क्योंकिः " उबलता हुआ पानी चाहे आग की भांति ही गर्म क्यों न हो , फिर भी आग के ऊपर पड़कर उसे बुझा देता है ।
" इसीलिए कहता हूं कि मूर्ख प्राणी चाहे कितना भी पढ़ जाएं , उससे दूर रहना ही अच्छा ।
“ मणि से सुशोभित होने पर भी सांप से दोस्ती करने पर मौत के सिवा कुछ न मिलेगा ।
" जो नहीं हो सकता उसका होना वैसे ही असम्भव है जैसे जल पर रथ का चलना और धरती पर नाव चलाना ।
" यह भी कहा गया है कि कितना ही बड़ा काम रुक गया हो , जो अपने दुश्मन और विरोध में उतरी पत्नी पर भी विश्वास कर ले समझो उसकी मौत दूर नहीं ।
" “ अरे यार चूहे ! यह सब लफ्फाजी मैंने लोगों के मुंह से बहुत सुन रखी है , मेरा तो यह अंतिम फैसला है कि मैं तुमसे ही मित्रता करूंगा ,
और तुम मुझसे मित्रता नहीं करोगे तो मैं यहीं पर भूखा , प्यासा जान दे दूंगा ।
तुमने भी सुना होगा कि बुरे लोगों की मित्रता उस कच्चे घड़े के समान होती है , जो टूट तो बड़े आराम से जाता है ,
किन्तु उसे जोड़ने का कोई भी उपाय नहीं हो सकता ।
इसके विपरीत , अच्छे लोगों की संगत सोने के मटके की भांति होती है , जो पहले तो टूटता ही नहीं , हां , यदि टूट जाए तो आसानी से दुबारा बनाया जा सकता है ।
" और अच्छे लोग , नारियल की भांति ऊपर से सूखे और पत्थर की भांति होते हैं ,
जबकि दुर्जन बेर की भांति ऊपर से सुन्दर और अन्दर से पत्थर की तरह कठोर होता है ।
इसलिए भले लोगों की दोस्ती ही मांगी जाती है ।
" तभी तो लोग कहते हैं कि यदि साधुओं का प्यार न भी मिले उनके गुणों में बुराई नहीं आती ।
कमल का नाल टूट जाने पर भी उसके अंदर की नली में गूदे उसी समय अलग नहीं होते ।
" यह भी कहा गया है कि पवित्रता , दानशीलता , बहादुरी , सुख - दुःख में बराबरी , अनुराग , सत्य यही सब गुण अच्छे सच्चे मित्र में पाए जाते हैं ।
" यही सब गुण तुममें हैं ।
मुझे पता है कि तुम्हारे जैसा गुणी मित्र मुझे कभी नहीं मिलेगा ।
" कौए की बातें सुनकर चूहे का मन पिघल गया , उसे यह विश्वास हो गया कि वास्तव में ही यह कौआ उससे सच्चे दिल से मित्रता करना चाहता है ।
वह अपने बिल से बाहर आ गया और कौए से बोला : " तुम्हारी बातों ने मेरा मन जीत लिया है ।
आज से मैं तुम्हें अपना दोस्त मानता हूं ।
मुझे पूर्ण आशा है कि तुम भी इस दोस्ती को उसी भांति निभाओगे जैसे मेरी और कबूतर राजा की निभती रही है ।
हमारी मित्रता एक आर्दश मित्रता होगी , इस जंगल में रहते हुए एक - दूसरे के दुःख - सुख के साथी रहेंगे ।
भले लोग जो मुंह से कहते हैं वह करके दिखाते हैं ।
खोटे आदमी के मन में तो पाप होता है , उसके होंठों पर कुछ और मन में कुछ और होता है ।
भले लोग ऊपर और अन्दर से एक ही जैसे लगते हैं , जो उनके मन में होता है वही बोलते हैं , वही करते हैं ।
" यह कहकर चूहे ने कौए से मित्रता गांठ ली और अपने बिल में से तरह - तरह के मजेदार खाने निकालकर उसे खिलाए ।
थोड़ी देर के
पश्चात् कौआ वहां से उड़ गया ।
चूहा अपने बिल में घुस गया ।
उस दिन के पश्चात् दोनों मित्र रातों को इकट्ठे बैठकर अपने दुःख - सुख कहते , इकट्ठे ही खाना खाते , दिन में भी घूमने निकल जाते ,
जंगल में उनकी दोस्ती को देख दूसरे भी पक्षी हैरान होते थे ।
एक दिन कौए ने चूहे से कहा , " मित्र , इस जंगल में खाने - पीने की निरन्तर कमी होती जा रही है ,
इसलिए मैं यह स्थान छोड़कर कहीं दूसरे स्थान पर घर बनाने जा रहा हूं ।
" " अरे भाई , तुम यह क्या कह रहे हो ?
क्या तुम्हें पता नहीं कि दांत , बाल , नाखून और आदमी यदि अपने स्थान से उखड़ जाएं तो अपनी शोभा खो बैठते हैं ,
इसलिए तुम सोच - समझकर अपना ठिकाना बदलो ।
" चूहे ने उसे समझाया । कौआ हंसकर बोला , " अरे यार , तुम तो बुजदिलों वाली बातें कर रहे हो ।
क्या तुम्हें नहीं पता कि मित्र , शेर और हाथी अपने ठिकाने से दूर जाकर ही अपने लिए खाना - पीना ढूंढते हैं ! “
यह भी कहते हैं कि बहादुरों के लिए जैसा देश वैसा ही परदेश , वे जहां भी जाते हैं अपने लिए खाना पैदा कर लेते हैं ।
दांत , नाखून और दुम इनके बल पर ही शेर जंगल - जंगल दहाड़ता है ।
" " खैर , छोड़ो इस विवाद को , पहले तो तुम यह बताओ कि जा कहां रहे हो ?
बुद्धिमान् प्राणी अपना एक पांव जमाकर ही दूसरा उठाता है ।
“ आगे की जगह जांच - परखकर ही पहली जगह छोड़नी चाहिए । "
,
कौआ बोला , " प्रिय मित्र , मैं पहले ही अपने लिए एक स्थान देख चुका हूं ।
" " कौन - सा स्थान है ?
क्या मुझे नहीं बताओगे ... " " क्यों नहीं बताऊंगा ?
क्या तुम सोच सकते हो कि मैं अपने मित्र से भी चोरी करूंगा ? नहीं ... नहीं .. नहीं ... मित्र , ऐसा नहीं हो सकता ,
मैं तुम्हें बताए बिना नहीं जाऊंगा ।
“ हां सुनो , यहां से थोड़ी ही दूरी पर एक बड़ी सुन्दर झील है ।
उस झील में मेरा एक मित्र कछुआ रहता है , वह बहुत भला और
धार्मिक विचारों वाला है ।
मैं जैसे ही उसके पास जाऊंगा वह दुनिया - भर के पदार्थ मेरे लिए इकट्ठे कर लाएगा ।
वह तो ऐसा मित्र है जो स्वयं भूखा रहकर भी मुझे खिलाएगा ।
अब जब इस स्थान पर खाने को ही नहीं रहा तो हम यहां रहकर भी क्या करेंगे ?
" चूहे ने जैसे ही अपने मित्र के मुंह से यह बात सुनी तो उसने भी सोचा , अब मैं अकेला ही यहां पर रहकर क्या करूंगा ।
" जिस देश में खाने को न मिले , जहां कोई मित्र न हो , न ही सीखने - समझने का कोई अवसर मिले उस देश को छोड़ देना ही अच्छा ।
विद्वानों ने कहा है , धनवान , वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला पंडित , प्रजापालक राजा , साफ जल की नदी और गुणी हकीम वैद्य जहां पर यह सब नहीं वहां पर रहना ठीक नहीं ।
जीने
" रहना वहीं पर चाहिए जहां पर ये पांचों मिल सकेंः
1 जीने के लिए रोजगार ,
2. कानून का डर ,
3. शर्म और इज्जत ,
4. अच्छे साफ मन के लोग ,
5. एक - दूसरे के लिए त्याग करने वाले साथी ।
" यदि साहूकार , वैद्य , पूजा - पाठ करने वाला पंडित और जल साधन , ये चारों चीजें न हों वहां पर रहना उचित नहीं है ,
इसलिए अब मैं भी यहां पर अकेला न रहकर तुम्हारे साथ ही चलूंगा , क्या तुम मुझे अपने साथ ले चलोगे ? " कौए ने हंसकर कहा , “ क्यों नहीं , यह तो मेरा सौभाग्य है कि तुम जैसा मित्र मेरे साथ चल रहा है । "