गिद्ध और बिलाव

हितोपदेश की नैतिक कहानी - गिद्ध और बिलाव

गंगा नदी के तट पर बड़ का एक बहुत पुराना घना - सा पेड़ था , उसी पेड़ पर एक गिद्ध रहता था ।

गिद्ध बेचारा बहुत बूढ़ा हो गया तो उसके पंजों के नाखून भी जाते रहे ।

इसके साथ- साथ आंखों से भी कम दिखाई देने लगा था , जिसके कारण बेचारा अपने लिए शिकार नहीं कर सकता था ।

गिद्ध बेचारे की इस हालत को देखकर उस वृक्ष पर रहने वाले दूसरे पक्षियों को दया आ गई ।

वे सबके सब हर रोज उसे अपने खाने में से थोड़ा - थोड़ा दे देते थे , जिससे उस गिद्ध का पेट भर जाता ।

इस खाने के बदले में वह वृक्ष पर रहने वाले पक्षियों के बच्चों की दिन - भर देखभाल करता था ।

एक दिन एक बिलाव इन पक्षियों के बच्चों को खाने के लिए आ निकला ।

उसे वृक्ष की ओर आते देख पक्षियों के बच्चों ने एकदम से शोर मचाना आरंभ कर दिया ।

इस शोर को सुनकर गिद्ध ने पूछाः " अरे कौन है ? क्या हुआ ? "

बिलाव ने जैसे ही गिद्ध को वहां बैठे देखा तो उसने सोचा , अब तो मारे गये ।

इस गिद्ध के होते हुए मैं भला कहां शिकार कर पाऊंगा ! यह तो उलटा मेरा शिकार कर लेगा ।

फिर वह थोड़ी देर रुका और सोचा : “ हां ... हां ... जब तक कोई डर वाली बात नजर न आए तो मुझे डरना ही नहीं चाहिए ।

फिर यह बूढ़ा गिद्ध है इसको काबू करने के लिए थोड़ी - सी बुद्धि की जरूरत है ।

यह मोटी बुद्धि का गिद्ध क्या जाने हमारी गहरी चालों को ।

" बस , यही सोच बिलाव उस गिद्ध के पास गया और बोला : " मैं हूं बड़े गिद्ध चाचा ।

तू यहां क्या करने आया है ?

तेरी भलाई इसी में है कि जिस रास्ते से आया है उसी रास्ते से भाग जा , वर्ना तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा ।

" गिद्ध क्रोध से बोला ।

बिलाव ने गिद्ध के

क्रोध को देखा तो नई चाल चलीः " अरे चाचा , इसमें भला क्रोध में आने की क्या बात है ?

यह कोई जरूरी तो नहीं कि मैं बुरे इरादे से यहां आया हूं ।

आप यह सोच रहे हैं कि मैं एक बिलाव परिवार में पैदा होकर कभी अच्छे काम नहीं कर सकता !

देखा जाए तो यही हम लोगों में सबसे बड़ी कमी है कि हम हर अच्छाई - बुराई को जाति की नींव पर रखते हैं ।

जबकि यह तो प्राणी की अपनी व्यक्तिगत बात है ।

" " मैंने तेरी बात यदि मान ली हो तो अब आगे बोल तू क्या चाहता है ?

और क्या करने आया है यहां ?

" " चाचाजी , मैं तो इसी गंगा तट पर रहता हूँ ।

और गंगा मां के चरणों में सुबह ही प्रणाम करने आता हूं ।

वहीं पर नहा - धोकर पूजा - पाठ करता हूं ।

मैं तो इतना भक्त हूं कि मांस को मुंह नहीं लगाता ।

कई पक्षियों ने आकर मुझे यह बताया था कि आप भी अब भक्त बन गये हैं , सारा दिन पूजा - पाठ करते हैं , लोगों को भी ज्ञान देते है ।

बस , आपकी प्रशंसा सुनकर मैं भी चला आया यह सोचकर कि आपसे कुछ ज्ञान ही प्राप्त हो जाए जिससे मेरे सारे पाप धुल जाएं ।

हालांकि गृहस्थ धर्म तो यह कहता है किः " घर में शुत्र भी आ जाए तो उसकी इज्जत करनी चाहिए उसके सम्मान में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए ।

गृहस्थी तो ऐसा वृक्ष है कि चाहे उसके कोई शाखें और तने भी काट दे तो भी उससे अपनी छाया नहीं हटाता ।

सज्जनों के घरों में इन चार चीज़ों की कभी कमी नहीं रहती : " १. घास - फूस या कुश का आसन ।

“ २. बिछौना । “ ३. धरती , पानी । “ ४ मीठी बोली ।

“ चाचा , आप तो बड़े हैं । आपने भी यह सुना होगा कि घर में आए मेहमान का मान - सम्मान अवश्य करना चाहिए ।

मेहमान तो गुरु के बराबर होता है ।

जैसे गुरु की पूजा वैसे मेहमान की पूजा , बुद्धिमान लोग कहते हैं किः

" महापुरुष - सज्जन लोग , अपने से कमजोरों पर सदा दया - दृष्टि रखते हैं ।

घर चाहे कितने बड़े पापी का भी क्यों न हो ।

चांद अपनी चांदनी को उस घर से भी हटाता नहीं है ।

" लोग यह भी कहते हैं कि जिस घर से मेहमान निराश और दुःखी लौटता है ,

वह उस घर बालों के सारे पुण्य छीन अपने पाप उन्हें दे

जाता है । "

“ यह भी कहा गया है कि ऊंचे घराने में नीच भी चला जाए तो भी उसके सम्मान में कभी नहीं करनी चाहिए ।

क्योंकि मेहमान भगवान् समान होता है ।

" गिद्ध ने बिलाव की बातें सुनकर कडा " देखो भाई , मैं तुम्हें इसलिए यहां से जाने के लिए कह रहा हूं कि तुम एक बिलाव हो और तुम्हारा भोजन केवल मांस है ।

और मेरे इस वृक्ष पर सभी छोटे - छोटे बच्चे बैठे हैं ।

इनकी रक्षा का बोझ मुझ पर है ।

" बिलाव ने गिद्ध के मुंह से जैसे ही यह बात सुनी तो धरती को नमस्कार करते हुए अपने कानों को हाथ लगाया और बोला

: " चाचा , मैंने तो जब से धर्मशास्त्र पढ़ा है , मांस खाना तो छोड़ ही दिया है ।

साथ में सारे पाप छोड़ दिये हैं ।

अब तो में हर सप्ताह व्रत भी रखता हूं ।

मैं तो जंगल के सब साथियों को भी यही कहता हूं कि पाप मत करो ।

किसी को भी दुःख मत दो ।

अहिंसा से प्रेम पैदा होता है , हिंसा से नफरत , इसलिए प्रेम को हर मन में पैदा करके इस जंगल में स्वर्ग पैदा करो ।

हम सब इस जंगल के वासी हैं , हममें कोई छोटा - बड़ा नहीं ।

हम सब प्रेम - बंधन में बंधकर एक हो जाएं तो कोई शुत्र भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।

" चाचा , कितने दुःख की बात है कि मांस से बने शरीर वाला प्राणी ही इसमें के मांस को नोचकर खाता है ।

दोनों के मांस में अन्तर ही क्या है ?

मांस खाने वाला क्या यह नहीं जानता कि वह केवल अपने कुछ ही क्षणों के मज़े के लिए दूसरे की जान ले लेता है ,

छी - छी - छी , यह कितनी बुरी बात है , कितना बड़ा पाप है ...

" फिर , जब जंगल के फलों से हमारी भूख मिट सकती है तो भला क्या जरूरत है कि

हर किसी की जान लेकर अपना पेट भरें . ... नहीं .......... चाचा ... ..नहीं . मैं तो अब इन बातों से बहुत दूर जा चुका हूं ।

" बूढ़ा गिद्ध बिलाव की ज्ञान - भरी बातें सुनकर बहुत खुश हो गया , उसे इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि यह बिलाव तो अब पूरा ईश्वरभक्त बन गया है ।

अब यदि यह हमारे पास रहने लगे तो हमें इससे कोई डर नहीं है और साथ ही यह हमारा मित्र बन जाएगा ।

इसके साथ रहने से कोई भी दुश्मन हमारे सामने नहीं टिकेगा , यही सोच गिद्ध ने उसे इस वृक्ष के नीचे वाले बिल में रहने की अनुमति दे दी ।

बिलाव की चाल सफल रही , बस फिर क्या था !

वह हर रोज सुबह उठते ही एक पक्षी के बच्चे को अपने बिल में उठा लाता और बड़े मज़े से खाता । धीरे - धीरे सब पक्षियों में हाहाकार मच गया । वे सबके सब अपने बच्चों को न देख रोने लगे कि आखिर उनके बच्चे कहां जाते हैं ।. ..यह बूढ़ा गिद्ध ज़रूर कोई खूनी पक्षी है जो हमारे बच्चों को खा रहा है ।

बिलाव ने समझ लिया कि अब उसका भेद खुलने वाला है ।

ये पक्षी उसके बिल में पड़ी हड्डियों को देखकर समझ जाएंगे कि उनके बच्चों को मैं ही खाता हूं ।

बस , जैसे ही उन्हें इस बात का पता चलेगा ,

तो ......

यह गिद्ध उसकी बोटियां नोच - नोचकर टुकड़े - टुकड़े करके फेंक देगा , ..मौत ........ मौत .. .. अब तो उसकी मौत करीब है ।

बिलाव के सामने अब अपनी जान बचाने का एक ही रास्ता था , भागना ....... बस , रातों - रात वह उस बिल से निकलकर भाग गया ।

सुबह ही सब पक्षियों ने मिलकर अपने शुत्र की तलाश शुरू की . ... ढूंढते ढूंढ़ते जैसे वे

सब उस वृक्ष की जड़ में बने बिल में पहुंचे तो वहां पर हड्डियों के ढेर देखकर उनका माथा ठनका ।

वे सबके सब समझ गये कि यह शुत्र कोई बाहर से नहीं आया , यह सारा काम उस बूढ़े गिद्ध का ही है जो सारा दिन वृक्ष पर बेकार बैठा रहता

है ।

बस , फिर क्या था , उन्होंने बिना सोचे समझें , बिना गिद्ध से कुछ पूछे उसे जा पकड़ा ।

सारे पक्षियों ने उसे नोच डाला और कहने लगे , " तुम पापी हो , धोखेबाज़ हो , तुमने ही हमारे बच्चों को मार - मारकर खाया है , हम तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेंगे ........

गया ।

इस प्रकार गिद्ध बेचारा मर गया ।

धोखेबाज़ फरेबी बिलाव बच

- इसलिए मैंने कहा था हिरण भैया , जिसके स्वभाव को तुम नहीं जानते उससे न मित्रता करो , न घर में रखो ।