हितोपदेश की कहानियां - दोस्ती का लाभ
चूहे की इन लाभकारी बातों की परवाह न करते हुए , कछुआ तालाब से निकलकर चल पड़ा ।
उसे देख कौआ और चूहा भी चल पड़े ।
उन्हें यह पता था कि हमारा मित्र अकेला जा रहा है , कहीं रास्ते में इसे कुछ हो न जाए ।
कछुए को धरती पर चलते देख एक शिकारी ने झट से उसे झपट लिया और धनुष को डोरी के साथ बांधकर कहने लगा :
" अपने नसीब भी कितने तेज हैं यारो , घर से भूखे निकले तो आते ही शिकार मिल गया ,
" इतना कहते हुए शिकारी कछुए को अपने कन्धे पर लाद चल पड़ा ।
कछुए को इस प्रकार से पकड़े देखकर हिरण , कौआ , चूहा शिकारी के पीछे - पीछे चलने लगे ।
चूडा रो - रोकर कहने लगाः " अरे भाई , आज तो में बहुत दुःखी हूं ।
इतना दुःख तो मुझे उस दिन भी नहीं हुआ था , जब मैंने अपना पूरा खजाना खो दिया था ।
मित्र का बिछड़ना तो सबसे अधिक दुःखदायी है ।
जिनके स्वभाव में ही दोस्ती रची हुई हो , ऐसे मित्र तो बहुत कम मिलते हैं ।
ऐसे मित्र जो संकट में साथ न छोड़े , उनका मिलना तो बहुत ही कठिन है ।
" कहते हैं , प्राणियों में जैसा विश्वास ऐसे मित्रों में होता है , वैसा माता - पिता में भी नहीं होता ।
इस कछुए का पकड़ा जाना हम मित्रों के लिए बहुत ही दुःख की बात है ।
" लोग तो कहते हैं कि पिछले जन्म के अच्छे - बुरे कर्मों का फल . इस बचपन का दूसरे बचपन में ,
इस जवानी का दूसरी जवानी में भोगना पड़ता है ।
लेकिन मुझ अभागे को तो इस जन्म का इसी जन्म में भोगना पड़ता है ।
" हाय , मेरा मित्र ! इस दो अक्षरों के नाम में भी कितना प्यार छुपा है ,
यही प्यार जब जुदाई में बदलता है तो संसार भर के दुःख देता है ।
मित्रता करना तो सरल है किन्तु निभाना बड़ा कठिन है ।
इस दुःख को सहन करना बहुत ही कठिन लगता है , जब आंखों में जुदाई के आंसू आते हैं ,
दिल फूट - फूटकर रोने लगता है ।
" हिरण और कौए ने चूहे को रोते देखकर कहाः " अरे भाई , रो क्यों रहे हो ?
अब रोने से क्या लाभ होगा , हमें बताओं कि हम क्या करें ?
" चूहा थोड़ी देर के लिए रुका फिर कुछ सोचकर बोला , " यार .. बात बन गई । "
" क्या बन गई ? जरा हमें भी तो पता चले । "
हिरण ने पूछा ।
" देख भाई हिरण , तुम इस शिकारी के आगे भागते जाओ और एक स्थान पर जाकर गिर जाना ,
कौआ तुम्हारे ऊपर बैठकर तुम्हें खाने के अन्दाज में चोंचें मारेगा ।
बस , शिकारी समझेगा कि मुझे कछुए से बढ़िया शिकार मिल गया है ।
हिरण , भला हिरण के मांस के सामने यह कछुआ क्या है ! बस , यही सोचकर वह कछुए को फेंक हिरण की ओर दौड़ेगा ।
जैसे ही शिकारी तुम्हारी ओर भागे तो तुम उठते ही भाग लेना ।
बस , फिर क्या , शिकारी देखता ही रह जाएगा ।
तुम्हें भला कौन पकड़ सकता है ।
उधर इतनी देर में कछुआ भी कहीं पानी में अपना स्थान बना लेगा ।
" “ वाह - वाह , मित्र ... वाह ... तुम्हारी बुद्धि की हम जितनी भी प्रशंसा करें कम है ।
वास्तव में ही तुम्हारे जैसे बुद्धिमान मित्र मिलना बड़ा " कठिन है ।
" हिरण और कौआ जोर - जोर से हंसकर कहने लगे ।
इसके पश्चात् हिरण तेजी से भागता हुआ उस शिकारी से बहुत आगे निकल गया और एक खाली स्थान देख धड़ाम से गिर पड़ा ।
उसे गिरते देख आकाश की ओर उड़ता कौआ झट से नीचे आया और धरती पर गिरे हिरण के ऊपर बैठ झूठ - मूठ अपनी चोंचें मारने
लगा ।
शिकारी ने जैसे ही मोटे - ताजे हिरण को अपने सामने पड़े देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया ।
अब भला इस काले कछुए की क्या जरूरत है जब हमें हिरण का बढ़िया मांस खाने को मिले ।
यही सोच उसने कछुए को धरती पर दे मारा ,
पीछे आते चूहे ने कछुए के बन्धन काटकर उसे शिकारी के जाल से मुक्त कर दिया ।
शिकारी जैसे ही हिरण की ओर भागा तो कौआ और हिरण वहां से ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग शिकारी भागते हिरण को देखता ही रह गया ।
दूसरी ओर मुड़कर उसने कछुए को देखा तो वह भी वहां से भाग चुका था ।
शिकारी अपने भाग्य पर आंसू बहाने लगा ।
दूसरी ओर चारों मित्र हिरण , कौआ , कछुआ , चूहा शिकारी को मूर्ख बनाकर खुशी से नाच रहे थे ।
मित्रों से लाभ की कहानी सुन दोनों राजकुमार बोलेः " महाराज , हमें इन कहानियों को सुनकर बहुत आनन्द
और ज्ञान प्राप्त हुआ है किन्तु हमारी दिली इच्छा है कि आप हमें ऐसी ही ज्ञान - भरी , आनन्ददायक , रोचक और भी कहानियां सुनाएं ।
" पंडित जी हंसकर उन राजकुमारों की ओर देखकर बोले : " मेरे प्यारे राजकुमारो , मित्रों से लाभ की कहानियां केवल तुम्हारे ही लाभ के लिए नहीं हैं ,
इन्हें तो जो भी कोई पढ़ेगा अथवा सुनेगा उसे ही लाभ होगा , उसे ज्ञान प्राप्त होगा ।
इस ज्ञान से प्राणी के पास इतनी शक्ति आ जाती है कि वह कहीं भी धोखा नहीं खा सकता ।
सच्चा इन्सान वही है जिसे भगवान् शिव पर विश्वास हो , वह अपने भक्तों को सदा सुखी रखते हैं । "