शेर और बैल

हितोपदेश की कहानियां - शेर और बैल

हमारे देश में दक्षिण भाग में एक प्रमुख नगरी में वर्धमान नाम का एक बनिया था ।

धन तो उसके पास बहुत था , लेकिन दूसरे लोगों के बढ़ते हुए धन की ओर देख देखकर उसका मन मचलता रहता ।

उसका लालच और बढ़ता जा रहा था ।

इसका कारण यही है कि अपने से गरीब को देखकर तो आदमी अपने को अमीर समझता है ,

किन्तु अपने से अमीर को देखकर उसे यह महसूस होता है जैसे वह गरीब हो ।

धन की कहानी तो यह है कि ब्रह्महत्या करके भी धनी आदमी की सभी पूजा करते हैं ,

जबकि ऊँचे वंश में पैदा होने वाले गरीब को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है ।

बात यह है कि

बेकार , आलसी , किस्मत के सहारे निर्भर और सुस्त आदमी के पास उसी तरह लक्ष्मी नहीं आती ,

जैसे जवानी के नशे में धुत सुन्दरी बूढ़े आदमी से दूर भागती है ।

यह बात याद रखने वाली है कि बड़ा आदमी बनने के रास्ते में छः प्रकार की बाधाएं आती हैं ।

( १ ) सुस्ती , ( २ ) औरत की दासता , ( ३ ) बीमारी , ( ४ ) जन्मभूमि से प्यार , ( ५ ) संतोष , ( ६ ) बुजदिली ।

यह बात तो सिद्ध हो चुकी है कि जो भी थोड़े पर संतोष करके बैठ जाता है उससे विधाता का भी दिल भर जाता है

और उसकी सम्पत्ति में कोई बढ़ावा नहीं होता ।

तभी तो कहते हैं कि उत्साहहीन , हिम्मत न करने वाली और दुश्मनों की खुशी के साथ खुख रहने वाली औलाद को कोई मां जन्म न दे ।

होना तो यह चाहिए कि जिस चीज को तुम पा नहीं सकते उसे पाने का यत्न करना चाहिए ।

जो मिल गया उसको संभालकर रखना चाहिए ।

जो बच गया है उसे बढ़ाता जाए ।

जो बहुत अधिक धन है , उसे शुभ कामों में लगाए ।

धन कमाकर उसकी रक्षा करना कठिन होता है ।

ऐसा धन अपने - आप नष्ट हो जाता है ।

तभी तो कहते हैं कि उस धन का क्या लाभ जो न खाया गया और न ही उसका ठीक प्रयोग किया गया ।

उस ज्ञान का क्या लाभ जिसे पाकर आपने कुछ अच्छा नहीं किया ।

किसी को लाभ नहीं पहुंचाया ।

उस आत्मज्ञान का क्या लाभ जिससे इन्द्रियों पर भी काबू न पाया गया हो ।

धन और ज्ञान धीरे - धीरे ही प्राप्त होते हैं , जैसे बूंद - बूंद मिलकर नदी बनती है ।

जिसके दिन दान और भोग के बिना ही निकल जाते हैं उनका जीवन लुहारों की धौकनी की भांति है ,

जो सांस तो लेती है लेकिन उसमें जीवन का कोई अंश नहीं होता ।

यह सब बातें

सोच बनिए के बेटे ने इस नगर से दूर किसी बड़े नगर में जाने का फैसला कर लिया ।

उसके मन में केवल यही इच्छा थी कि वह अधिक से अधिक धन इकट्ठा कर बहुत बड़ा सेठ बन जाए ।

उसने अपने लिए एक बैलगाड़ी तैयार की , जिसके आगे दो सुन्दर एवं शक्तिशाली बैल जुते हुए थे ।

फिर सफर का जरूरी सामान इस बैलगाड़ी में रख शहर की ओर जाने लगा ।

बड़े लोग कहते हैं कि प्राणी को सुरमे और नाश से बहुत कुछ सीखना चाहिए ।

जैसे सुरमा आंख में थोड़ा - थोड़ा लगाते - लगाते एक दिन समाप्त हो जाता है ,

जैसे दीमक अंदर ही अंदर लकड़ी को खा जाती है ।

इनकी ओर देखकर पुरुष को अपने समय को याद रखते हुए कुछ भलाई के काम करने चाहिए ।

यह बात याद रखें कि शक्तिशाली के लिए कोई भी काम कठिन नहीं होता , परिश्रमी के लिए कोई स्थान दूर नहीं ,

विद्वान् के लिए कोई जगह विदेश नहीं और मीठे बोलने वाले के लिए कोई पराया नहीं ।

इसके विपरीत काम को बिगड़ते देख जो मन में निराशा की भावना पैदा करे , उससे दूर रहना चाहिए ,

क्योंकि निराशा ही सब असफलताओं की जड़ है ।

बनिए के पुत्र ने रास्ते में देखा , उसका एक बैल थोड़ा थका - सा है और लंगड़ाकर चल रहा है ।

उसने झट से रास्ते में ही एक नया बैल खरीदा और उस लंगड़े बैल को रास्ते में ही छोड़ आगे चल दिया ।

लंगड़ा बैल बेचारा दुःखी मन से उस मानव को कोस रहा था जो सुख में उसका साथी था , दुःख में उसे छोड़कर चल पड़ा ।

सब यही कहते हैं कि , चाहे मनुष्य जलती आग में गिर पड़े , चाहे पहाड़ से गिरे या सांप काट ले ,

यदि उसकी आयु लम्बी हो तो वह अवश्य बच जाता है ।

यदि मौत की घड़ी आ जाए तो संसार की कोई शक्ति , उसे मरने से नहीं रोक सकती ।

ऐसी मौत तो तिनका चुभ जाने पर भी आ जाती है ।

हां , जिसकी रक्षा नसीब कर रहा हो , उसका बाल भी कोई बांका नहीं कर सकता ।

यदि भाग्य साथ दे तो जंगल में फेंका हुआ बच्चा बच जाएगा ,

जबकि घर में सुख के झूले झूलनेवाला बच्चा भी मौत के मुंह से नहीं बच पाता ।

भाग्य के सहारे ही तो लंगड़ा बैल इस जंगल में रहते हुए कुछ दिनों में ठीक हो गया और खुले जंगल में मौजें मारते हुए खूब मोटा - ताजा हो गया ।

इसी जंगल में एक शेर रहता था , उसका इस जंगल में कोई मित्र नहीं था ।

शेरों के मित्र तो वैसे ही नहीं बनते , हर कोई शेर के नाम से ही डरता है ।

एक दिन यह शेर प्यास से व्याकुल हो नदी किनारे पहुंचा ।

वहीं पर यह बैल पानी पीकर ज़ोर - ज़ोर से डकार रहा था ।

शेर ने ऐसी भयंकर गर्जन इस जंगल में पहले कभी नहीं सुनी थी ।

वास्तव में ही इस गर्जना को सुनकर शेर डर गया था ।

वह नदी से बिना पानी पिए ही दौड़कर दूर एक गुफा में बैठ सोचने लगा कि इस जंगल में ऐसा कौन सा जानवर आ गया है जिसकी

गर्जना से ही उसका कलेजा हिल गया है ।

उस शेर के मंत्री के दो बेटे थे , करटक और दमनक उन्होंने जैसे ही चिंतित शेर देखा तो समझ गये कि जंगल का यह राजा ,

जो नदी किनारे पानी पीने गया था , अवश्य ही किसी भयंकर जानवर से डरकर भागा है ।

शेर को इस हालत में देख करटक ने दमनक की ओर इशारा करके पूछा : " अरे भाई ,

हमारे महाराज तो पानी पीने गये , लेकिन वे तो प्यासे ही लौट आए । "

" हां , करटक भाई , मुझे भी कुछ दाल में काला लगता है ।

इस शेर को में बहुत दिनों से चिड़चिड़ा होते देख रहा हूँ ।

अरे भाई , जंगल का राजा है तो हुआ करे , हमें इससे क्या लेना !

कम से कम इसे हम से तो हंसकर बात करनी चाहिए ।

" " फिर हम इसके खरीदे हुए गुलाम तो नहीं जो हर समय इसी के इशारों पर नाचते रहें ।

हमने अपनी सारी आज़ादी इसके लिए समाप्त कर दी ।

मेरे भाई , यह बात याद राखो ।

" दूसरों के अधीन लोग सर्दी , हवा और धूप आदि के जितने कष्ट झेलते हैं ,

बुद्धिमान् लोग थोड़ा - सा काम करके ही अनेकों सुख पा लेते हैं ।

" " यदि आप अपने जन्म को सफल बनाना चाहते हैं तो दूसरों की गुलामी मत करो ,

गुलामी को ही यदि तुम जीवन समझते हो तो फिर मौत किसे कहते हैं ?

" " रोजगार ढूंढ़ने लोग जब धनवानों के सामने जाकर हाथ पसारते हें तो वे लोग भी उनका मजाक उड़ाते हुए कहते हैं ,

आओ बैठो ... उठो .. अरे मुंह से भी कुछ फूटो ! चुप क्यों खड़े हो ?

" " धन के लिए ही तो हमें इसके आगे बेचा गया ताकि हम बन - सवरकर वेश्याओं की भांति दूसरों को लाभ पहुंचा सके ।

" धनी लोगों की निगाहें स्वभाव से ही चंचल होती हैं और इधर - उधर ताक - झांक में लगी रहती हैं ।

हां , यदि ये लोग किसी गंदगी में भी अपनी नजरें डाल दें तो नौकरों को उस समय यही कहना पड़ता है

कि सेठ जी तो बहुत ही ऊंचे विचारों के हैं , छोटी - मोटी चीज पर तो नजर ही नहीं टिकती ।

" " नौकरों का तो जीना ही बेकार है ।

यदि चुप बैठे तो मालिक कहेगा , यह तो मिट्टी का माधो है , इसे तो बात कहने की अकल नहीं है ; यदि बोले तो कहेगा , अरे यह तो बकवासी है ,

सारा दिन बड़बड़ करता रहता है ।

सुबह - शाम मालिक के आगे - पीछे रहे तो कहेंगे यह तो पागल है , चमचा है ; दूर रहे तो कहेंगे , यह कामचोर है ,

डरपोक है । इसलिए मेरे भाई , की नौकरी करना बहुत बुरी बात है । "

एक बात मेरी और भी याद रखना मित्र ,

इन्सान धन कमाता है ऊँचा उठने के लिए मगर नौकर अपनी अपनी उन्नति के लिए मालिक के आगे - पीछे घूमता है ।

लोग संघर्ष करते हैं जीने के लिए और नौकर मरता है केवल मालिक की वाह - वाही लेने के लिए ।

नौकर सुख के सपने देखता देखता जीवन - भर दुःख पाता रहता है ।

अब तुम ही सोचो कि नौकरीपेशा लोगों से बुरा और कौन होगा ।

इनकी हालत पर तो रोना ही आता है ।

" " मेरे भाई , जो यह तुम कह रहे हो , हो सकता है सब सत्य हो मगर यह भी तो मत भूलो कि जो करने योग्य ही नहीं था ,

हम उसे कर ही नहीं सकते थे , उसके बारे में सोचने का क्या लाभ है ?

" करटक ने कहा , " सुनो भैया , अब तुम भी कान खोलकर सुन लो । "

" क्या सुनाना चाहते हो तुम ... ? "

" तुम्हारी बातों से मुझे बंदर की कहानी याद आ रही है जो कील उखाड़ने के

चक्कर में अपनी ही हड्डियां तुड़वाकर बिन आयी मौत मर

गया । "

" तुम कौन से बंदर की बात कर रहे हो ?

क्या मुझे उसकी कहानी नहीं बताओगे ?

मरे विचार में तो बंदर इस जंगल में सबसे अधिक चालाक जानवर है ।

उसे तो कोई धोखा नहीं दे सकता ।

' " हां , भाई समझते लोग यही हैं लेकिन तुम यह क्यों भूलते हो कि डूबते वही हैं जो तैराक होते हैं ,

गिरते वही हैं जो घुड़सवारी करते हैं । " " लो सुनो अब तुम उस बंदर की कहानी । "