हितोपदेश की कहानियां - पागल बंदर
इस जंगल के एक कोने में एक कायस्थ भक्त अपना आश्रम बनवा रहा था ।
वहीं पर आरी से कटे हुए लठ्ठे पड़े थे ।
काम समाप्त होते ही बढ़ई ने एक लट्टे के सिर पर बड़ी कील गाड़ दी थी ।
बंदरों का एक झुंड उछलता कूदता उधर से गुजर रहा था ।
इनमें से एक बंदर मौत के घेरे में फंसा उस कील को लेकर बैठ गया ।
उसने उस बड़े लठ्ठे को उठाकर उसमें कील निकालने का प्रयास किया मगर कील ने हिलने का नाम न लिया ।
फिर उसने अपने मुंह से कील निकालनी चाही और उस पर इतना ज़ोर लगाया कि वह कील निकलने की बजाय उसके हलक में ही फंस गई ।
बस , फिर क्या था , वह मूर्ख बंदर पल - भर में अपने जीवन से हाथ धो बैठा ।
इसलिए मित्र , मैं यह कहता हूं कि जो काम आपको करना है ।
पहले उसके बारे में सोचो कि इसका करना जरूरी है अथवा नहीं ।
किसी भी बेकार के काम में हाथ मत डालो , राह चलते व्यर्थ की चीज़ों की ओर ध्यान देना खतरे से खाली नहीं होता ।
बुद्धिमान् वही है जो अपने काम से काम रखे ।
करटक ने दमनक की बात बड़े ध्यान से सुनकर कहा : " फिर भी सेवक को अपने मालिक की बातों को समझने का प्रयत्न तो करना ही चाहिए ।
देखो न , जो नौकर अपने मालिक की भलाई की बात सोचते हुए किसी दूसरे के काम में टांग अड़ाता है
वह उसी तरह दुःख भोगता है जैसे ढींचू ढींबू का शोर मचाने वाला गधा बुरी तरह पिटा था । "
" वह कैसे पिटा ? "
“ लो सुनो , उस गधे की कहानी , जो बेकार में ही हर कार्य में टांग अड़ाता था ।
" इतना कहते हुए दमनक उस गधे की कहानी सुनाने लगा ।