कहानी गधे की

हितोपदेश की कहानियां - कहानी गधे की

वाराणसी शहर में एक कलवा धोबी रहता था ।

वह बेचारा सुबह ही गंगा घाट पर जाकर लोगों के कपड़े धोता और रात को उन कपड़ों को गधे पर लादकर वापस आ जाता ।

थके हुए धोबी को नींद तो खूब आती थी ; एक रात धोबी बड़ी गहरी नींद सो रहा था , रात को

उसके घर में चोर घुस आए । उसका गधा तबेले में बंधा हुआ था , उसके बाहर ही एक कुत्ता बैठा था ।

गधे ने कुत्ते की ओर देखकर कहा , “ देखो भाई , तुम घर में चौकीदार हो , इस समय घर में चोर आ घुसा है ,

तुम्हारा फर्ज है जोर - जोर से भौंकना शुरू कर दो ताकि मालिक जाग जाये ।

" कुत्ता झट से बोला , " देखो भाई गधे , तुम्हे मेरे फर्ज के बीच अपनी टांग नहीं फंसानी चाहिए

क्योंकि तुम नहीं जानते कि मैं रात - दिन कैसे इस घर की रखवाली करता हूं ।

यही वजह है कि मालिक घर के बारे में कोई चिन्ता न करते हुए मेरी विशेषता की ओर ध्यान ही नहीं देता ।

बात यहां तक पहुंच गई कि मालिक अब मेरे खाने - पीने की ओर ध्यान नहीं देता ।

मेरे दोस्त , एक बात याद रखो कि जब तक मालिकों का थोड़ा - बहुत नुकसान न हो तब तक वे नौकरों की विशेषता भी नहीं समझते ।

" “ ओ जंगली , सुन , जो नौकर काम के समय मालिक के सामने अपनी मांगें रखता है वह भला कैसा नौकर ?

और कैसी उसकी वफादारी ! " गधे ने कहा ।

कुत्ते ने झट से उत्तर दिया , “ अरे ओ चमचे !

यह मत भूल कि जो मालिक काम पड़ने पर ही नौकर को बुलाता है वह स्वार्थी होता है ।

मालिक का धर्म है अपने नौकरों की जरूरतें पूरी करना और नौकर का फर्ज है मालिक की सेवा करना ।

दोनों को ही अपने - अपने धर्म और कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए ।

" गधे को कुत्ते की बात पर क्रोध आ गया था , उसने कुत्ते की ओर घूरते हुए कहा ,

" अरे ओ दुष्ट बुद्धि , तुम तो पागल हो जो मुसीबत के समय भी अपने धर्म से दिल चुराते हो ! खैर , तुम जो भी जी चाहे करो ,

मैं तो कभी भी अपने मालिक के साथ गद्दारी नहीं कर सकता ।

मैं तो अपने धर्म का पालन करूंगा ही क्योंकि धूप का उपयोग पीठ की ओर से करना चाहिए और

आग का सेवन पेट की ओर से और मालिक की सेवा हर समय चारों ओर से करनी चाहिए और

परलोक के बारे में माया - ममता छोड़कर सोचना चाहिए । "

दिया ।

इतना कहते ही गधे ने ज़ोर - ज़ोर से ढींचू - ढींचू करना आरंभ कर

धोबी जो बड़े मज़े से सो रहा था गधे की आवाज़ सुनकर उसकी आंख खुल गई ।

उसे बहुत क्रोध आया ।

वह स्वयं ही चीखता हुआ उठा , " साले गधे , तेरे को सारे जीवन अकल नहीं आएगी , तू गधे का गधा ही रहेगा !

आज मैं तेरी भ्रष्ट बुद्धि को ठीक करता हूं ।

" इतना कहते धोबी ने एक मोटा डंडा उठाया और आंव देखा न ताब उस गधे पर डंडे बरसाने आरंभ कर दिए ।

उस गधे को इतना मारा कि मार - मारकर उसकी जान ही निकाल दी ।

अब तुम ही देखो भाई , दूसरे के काम में टांग अड़ाने से क्या लाभ होता है !

बरन् जब भी कोई काम करना हो तो केवल अपना काम ही करो , दूसरे के काम को उस तक ही रहने दो !

वही प्राणी सदा सुख भोगते हैं जो अपने काम तक सोचते हैं ।

फिर देखा जाए तो हमें इस शेर से लेना क्या है ! हमारे पास इतने दिनों का भोजन तो रखा है कि हम बड़े आराम से इतने दिन काट ,

आगे के लिए कोई नया शिकार ढूंढ़ ही लेंगे ।

तो क्या तुम खाली पेट भरने के लिए ही शेर की चाकरी करते हो ? यह बात तो तुमने कोई अच्छी नहीं की !

क्योंकि समझदार लोग राजा की सेवा उसके भले के लिए ही करते हैं , उस पर आई हर मुसीबत में उसका साथ देते हैं ।

यदि पेट भरने की बात ही हो तो हर प्राणी किसी न किसी रूप में अपना पेट भर ही लेता है ।

भैया ! जिसके जीने से ब्राह्मण , मित्र और भाई - बन्धु जीवित रहे उसी का जीना सफल माना जाता है ।

अपने लिए तो सभी जीते हैं , दूसरे के भले के लिए जीना यही जीवन होता है ।

और सुनो , जिसके जीने से बहुतों को लाभ पहुंचे उसी का जीना जीना होता है ।

अपनी चोंच से तो कौआ भी अपना पेट भर लेता है ।

यह भी ठीक है कि कोई कुछ रुपयों में बिकता है और कोई लाखों में भी नहीं बिक सकता ।

मैं तुम्हें यही सलाह दूंगा कि यदि नौकरी ही करनी है तो अपने की नौकरी करने से प्राणी बहुत छोटा बन जाता है ।

नौकरों में भी से ऊंचे की करो क्योंकि अपने से बराबर वाले और अपने से छोटे जो प्रथम श्रेणी में न आए तो उसका क्या जीवन है !

समझने की बात यह है कि घोड़ा , हाथी , लोहा , लकड़ी , पत्थर , कपड़ा , स्त्री , पुरुष और पानी इन

सब चीज़ों में आकाश और पाताल का अंतर है इसीलिए प्राणी को

चाहिए कि अपनी पहचान कराने के लिए अपने में ऐसी कोई न कोई विशेषता पैदा करे ।

इसीलिए कहता हूं कि छोटी व

स्तुएं या छोटे लोगों का कम महत्त्व नहीं होता , जरूरत है समय की गति की ओर देखते हुए सोच - विचार करके कदम उठाने की ।

अब तुम कुत्ते और शेर की मिसाल देख लो ।

कुत्ते को सूखी हड्डी मिल जाए तो वह उसी में संतोष कर लेता है और शेर काबू में आए गीदड़ को छोड़ हाथी के

पीछे उसका शिकार करने के लिए भागता है । इसे तुम बहादुरी कह सकते हो ।

ऐसी बहादुरी हर एक में नहीं होती हां , प्राणी उतने ही फल की आशा रखता है

जितनी उसमें हिम्मत होती है । यह जो मालिक और नौकर के सम्बन्ध हैं कोई बराबरी के सम्बन्ध तो हैं नहीं ।

कुत्ते को देख लो , मालिक के आगे दुम हिलाता है , उसके पांव में लेट तलवे चाटता है ।

किए लिए ? रोटी के चंद टुकड़ों के लिए ।

भले ही वे जुठे ही क्यों न हों ।

इसके विपरीत , हाथी को देखो , मालिक को सीधी निगाह से भी देखने को तैयार नहीं होता और सौ खुशामद करवाकर

उसका दिया हुआ भोजन खाने को तैयार होता है ।

मैं तो यह कहूंगा कि अपने ज्ञान , अपनी बहादुरी और नेकनामी से लोगों के मन जीतने का क्षण भर का जीवन भी बहुत है

क्योंकि मृत्यु के पश्चात् भी उसका नाम लोगों की ज़बान पर रहता है ।

ऐसे प्राणी को लोग सदा याद करते हैं । जहां तक जीने का प्रश्न हे कोआ भी लम्बी आयु पाकर जीता है मगर कैसे ?

दूसरों के दिए टुकड़ों पर । भला यह भी कोई जीवन है ?

कौए के बारे में तो हर स्थान पर यही कहा गया है कि वह पराये भोजन और चोरी ,

हेरा - फेरी से अपना पेट भरता है ।

मेरी समझ में उस प्राणी का जीवन व्यर्थ है जो न तो बेटे - बेटियों पर दया करता है ,

न नौकरों पर तरस खाता है , न गरीबों पर दया - दृष्टि रखता है और न बेसहारा लोगों की मदद करता है ।

ऐसे प्राणी का जीवन कौए की भांति है जो उम्र बहुत लम्बी काटता है पर दूसरों के लिए उसका कोई कार्य नहीं है ।

भैया दमनक ! हम यहां के प्रधान तो हैं नहीं जो सारे संसार के दुख - सुख सोचने लगे ।

आखिर हमें ऐसी बातें सोचकर मिलेगा क्या ?

करटक ने कहा , " प्रधान बनने के लिए भी एक लम्बी साधना की जरूरत है ।

छोटे आदमी को बड़ा बनने के लिए बड़े संघर्ष की जरूरत होती है ।

यदि इतनी आसानी से हर प्राणी बड़ा बन सकता तो यहां कोई भी छोटा नजर न आता ।

बड़े बनने के लिए अपने - आप में सभी गुण पैदा करने पड़ते हैं ।

फिर बड़े से छोटा बनने में कोई समय नहीं लगता है , पहाड़ पर ऊँचे पत्थर को ज़रा - सा धक्का दो तो वह पल - भर में नीचे की ओर लुढ़क जाता है

किन्तु जब इस पत्थर को नीचे से ऊपर

लाना हो तो बहुत परिश्रम और समय की जरूरत होती है ।

" इसीलिए मैं कहता हूं कि प्राणी अपने कर्मों से ही ऊँचा उठता है ,

और अपने ही कर्मों से नीचे गिरता है ।

कर्म और बुद्धि के मेल से प्राणी का स्थान बनता है ।

यदि तुम कुआं खोदते हो तो स्वयं भी गड्ढे में जाना होगा , और दीवार खड़ी करते हो तो उसके ऊपर चढ़ना होगा ।

“ मित्र , एक बात मत भूलो कि बड़ा बनने के लिए परिश्रम और बुद्धि दोनों की जरूरत है ।

" " तो क्या तुम यह कहना चाहते हो कि हमारे महाराज यदि चुपचाप यहां आ बैठे हैं तो इसमें भी कोई भेद है ?

" " और तुम इसका क्या कारण समझते हो ?

" करटक ने पूछा । " इसमें समझने के लिए क्या रखा है , चेहरे से देखकर ही बुद्धिमान् लोग अंदर की आवाज सुन लेते हैं ।

इशारा समझकर ही हाथी और घोड़े बोझ ढोते हैं ।

इसलिए तो कहा गया है कि समझदार के लिए इशारा ही काफी है ।

" " समझदार आदमी वही है जो इशारे से ही बात समझे ।

दूसरे के मन को जीतने के लिए प्रेम के दो मीठे शब्द ही बहुत होते हैं ।

जो काम लाठी , गोली , तलवार नहीं कर सकते वह मीठे बोल से ही हो सकता है ।

किसी के मन को जीतने के लिए धन से अधिक सेवा भाव की जरूरत पड़ती है ।

तुमने अभी सेवा का अर्थ ही नहीं जाना ।

जो बिना बुलाए चला जाए , बिना पूछे बोलना आरंभ कर दे , अपने को राजा या अफसर का प्यारा समझे , समझ लो कि उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई ।

" " अरे वाह , करटक , तुमने यह कैसे जान लिया कि मैं सेवा का अर्थ नहीं समझता ?

यह तो अपनी - अपनी पंसद है ।

कोई किसी एक बात में रुचि रखता है , कोई किसी दूसरी बात में स्वभाव से तो कोई भला - बुरा नहीं होता ।

" " यह तो आदमी की बुद्धि पर निर्भर है कि वह पहले दूसरे के मन में झांके और फिर उसकी पसंद - नापसंद के बारे में जानकर ही उससे बात करे ।

इससे वह उसे अपने सांचे में ढालने में सफल हो सकता है ।

" " रही बात सेवा का अर्थ समझने की सो मेरे दोस्त , वास्तव में सच्चा सेवक वही होता है ,

जो मालिक के मुंह से बात निकलने से पहले ही उसका अर्थ समझ जाए , और उसका काम पूरा कर दिखाए ।

ऐसा सेवक ही बुद्धिमान होता है , वही मालिक को प्यारा लगता है ।

" करटक ने कहा , " मैं तो इसलिए ही कह रहा था कि हो सकता है कि कहीं बिन बुलाए पास जाने से मालिक कहीं गुस्सा न कर जाएं ।

खैर , यह बात भी भूल जाओ । अब जो होता है होने दो । अब हमें उसके पास जरूर ही जाना चाहिए ।

जो प्राणी पहले ही फल सोचकर डर जाए , वह भला काम क्या करेगा ? यह तो बुजदिली की निशानी है ।

यदि कोई यह समझ ले कि मुझे तो मर ही जाना है ।

ऐसा सोचकर वह क्या काम करेगा ! " " मालिक को भी उसी नौकर की याद आती है जो उसकी सेवा में रहे ।

वह चाहे मूर्ख हो या नीचे घराने का मालिकों को तो केवल सेवा की जरूरत होती है ।

" " पहले तो यह बताओ करटक , कि तुम वहां पर जाकर कहोगे क्या ?

" " दमनक भाई , पहले तो मैं यह जानने की कोशिश करूंगा कि मालिक मुझ पर खुश है कि नहीं ? "

" तुम्हें यह कैसे पता चलेगा ? "

" देखो दोस्त , यदि मालिक खुश है तो यह उसके इन लक्षणों से जाना जा सकता है ।

वह आते हुए नौकर को दूर से ही देखने लगता है । हंसता है । प्यार से बोलता है ।

ऐसा मालिक नौकर की पीठ के पीछे भी इज्जत करता है । ऐसे नौकर को वह बार - बार याद करता है ।

अपने मित्रों को भी उसकी वफादारी की कहानियां सुनाता है ।

वह इसके साथ मीठा बोलते हुए कभी - कभी इनाम भी देता रहता है ।

" " यदि मालिक अपने नौकर से नाराज हो , वह नौकर की बात को टालता रहेगा ।

ऊपरी मन से उसकी हर आशा पूरी करने का वचन देगा किन्तु कभी कोई आशा पूरी करेगा नहीं ।

ऐसे ही लक्षणों से पता- चल जाता है कि मालिक किस मनस्थिति में है । " " यही सोच - समझकर जो मेरे दिल में आए मैं कह दूंगा ।

जो समझदार लोग नीतिशास्त्र को जानते हैं वे समय की जरूरत को भली- भांति जान जाते हैं ।

भले बुरे परिणामों का उन्हें पहले से ही पता चल जाता है ।

हर बुरे काम से वे बचने का प्रयत्न करते हैं । " " मैं मानता हूं दमनक !

लेकिन बिना किसी बात की नींख रखे तो तुम शेर से कुछ कह नहीं सकोगे ।

बिना मतलब के बिना समय के जो भी बात की जाए वह बेकार होती है ।

उसका कोई लाभ नहीं होता । " " तुम डरो मत करटक , मैं बिना किसी जरूरत के कोई बात नहीं करता ।

तुम यह बात भी याद रखो कि नौकर मालिक के दुख - सुख का साथी होता है ।

सच्चा नौकर वही है जो दुख में काम आए और जब उसे उदास देखे तो बिना पूछे ही उसका मन बहलाने की बात करे ।

इसलिए मेरे भाई , तुम मेरे पीछे - पीछे चुपचाप चले आओ ।

" “ ठीक है , भगवान् तुम्हारा भला करे , तुम्हारी इच्छा पूरी हो , मैं इससे अधिक तुम्हें और क्या कह सकता हूं ।

" करटक ने निराश होकर कहा जैसे उसने अपनी हार मान ली हो , लेकिन वह अपने मुंह से स्वीकार करने को तैयार न हो ।

दमनक वहां से चल सीधा उस गुमसुम बैठे शेर के पास गया ।

शेर ने दूर से दमनक को अपनी ओर आते देखा तो बड़े प्यार से उसे अपने पास बुला लिया ।

दमनक ने शेर को बड़े आदर से प्रणाम किया और उसके चरणों में बैठ गया ।

" अरे भाई दमनक ! क्या बात है , तुम तो बड़े दिनों बाद नजर आए !

" “ महाराज , मैं तो आपका छोटा - सा सेवक हूं , मेरे बिना भला आपका कौन - सा काम रुकेगा ।

मैं तो केवल इसलिए चला आया कि चलो प्रणाम तो करता जाऊं !

फिर राजा और प्रजा का रिश्ता तो चोली - दामन का है ।

राजा के मन में प्रजा का वैसा ही आदर होता है जैसा अपने दरबार के बड़े लोगों के साथ ।

आपने तो मुझे बहुत दिनों से भुला रखा है किन्तु मैं आपको कभी भी भूल नहीं सकता ।

मैं तो स्वयं आपकी सेवा में हाजिर हो गया हूं ।

" महाराज , धीरज वाले आदमी का कितना ही निरादर क्यों न हो उसके संतोष का पैमाना कभी नहीं उछलता ।

धैर्य तो ऐसी आग है कि इसे जितना जी चाहे नीचे झुका दो , इसकी लपटें सदा ऊपर की ओर ही उठेगी ।

“ और आप तो जंगल के राजा हैं , बुद्धिमान् , भला मैं क्या समझाऊं ?

मणि को चाहे पांव में गिरा दो और शीशे को तोड़कर चाहे ताज में लगा लो तो भी मणि की कीमत कभी नहीं कम हो सकती ।

शीशा तो शीशा ही रहेगा , मणि ( हीरा ) मणि ही रहेगी ।

“ यह बात तो अवश्य याद रखने वाली है कि यदि मालिक नौकर के गुणों को देखकर उसके

साथ अच्छा व्यवहार न करे तो उस नौकर का दिल अवश्य टूट जाएगा ।

" आपको तो पता है कि प्राणी तीन प्रकार के होते है : “ ( १ ) उत्तम , ( २ ) मध्यम और ( ३ ) अधम इन तीनों को उनकी बुद्धि के अनुसार ही काम देना चाहिए ।

" मैं यह प्रार्थना कर रहा हूं कि नौकर जैसी भी बुद्धिवाला हो उसे वैसा स्थान देना चाहिए ।

चूड़ामणि सिर के लिए बनी होती है और पाजेब पांव के लिए , इसी तरह कोई नौकर सिर पर बैठाने के लिए होता है ,

तो कोई पांव के नीचे दबाकर रखने के योग्य । जो जिस योग्य हो उसे वही स्थान देना चाहिए ।

" हां , यदि कोई ताज में कांच जड़ ले और हीरे को पांव के जूते में लगा दे तो इसमें हीरे का क्या दोष ?

यह तो पहनने वाले की बुद्धि का दोष होता है ।

" महाराज ! कौन नौकर बुद्धिमान है और कौन मालिक पर जान देता है ; कौन बहादुर है

और किससे बचकर रहना चाहिए नौकरों के बारे में जिसे यह जानकारी है तो उससे बड़ा बुद्धिमान् कोई नहीं ,

उसे कोई धोखा दे नहीं सकता । “ रही बात बढ़िया - घटिया नौकर की , वह नौकर हो या घोड़ा ,

शस्त्र हो या शास्त्र , वीणा हो या वाणी , आदमी हो या औरत जैसे किसी बुद्धि वाले प्राणी के पास जाएंगे वैसे ही बन जाएंगे ।

“ महाराज , मुझे यह भी पता है कि यदि कोई नौकर कमजोर है । उससे कोई लाभ नहीं ।

इसी प्रकार यदि कोई शक्तिशाली नौकर अपने मालिक का कोई लाभ नहीं पहुंचा सकता तो उसका भी कोई लाभ नहीं ।

मैं तो ईश्वर की कृपा से आपका शुभचिंतक दास हूं और शक्तिशाली भी , इसलिए आप मुझ पर पूरा विश्वास कर सकते हैं ।

" मैं जानता हूं कि अपने मालिक का बुरा करने वाले की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है इसलिए बुद्धिमान् लोग उसके पास ही नहीं फटकते ।

इसी तरह जिस स्थान से बुद्धिमान् लोग हट जाते हैं वहां पर सिवाय दुख और मुसीबतों के कुछ भी बाकी नहीं रह जाता ।

" हां महाराज , जिस नौकर की बड़ाई स्वयं मालिक करता है उसकी इज्जत हर जगह होती है ।

जिसकी बुराई उसका मालिक करे उससे सभी दूर भागने लगते हैं ।

" आप शायद यह सोचें कि छोटे मुंह बड़ी बात कर रहा हूं , मगर मालिक ,

मैं बिल्कुल सही बात कह रहा हूँ । सही बात यदि किसी बच्चे के मुंह से भी निकले उसे सही मान लेना चाहिए ।

आप स्वयं ही देखो , जिस स्थान पर दीपक का प्रकाश न पहुंचे वहां पर सूर्य का प्रकाश पहुंच जाता है ,

जहां पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पातीं वहां पर दीपक अंधेरे को दूर करता है , प्रश्न केवल प्रकाश का है वास्तव में प्रकाश ही बुद्धि है ।

" शेर अपने सेवक दमनक ( गीदड़ ) की बातें सुनकर बहुत खुश हुआ ।

वह बड़े प्यार से बोला : " अरे दमनक , तुम तो मेरे प्रधान मंत्री के लड़के हो न जाने तुम कैसे हमसे दूर हो गये थे ।

खैर , कोई बात नहीं , अब भी क्या बिगड़ा है आओ , कैसे आना हुआ ? "

महाराज , मैं तो आपको केवल यह पूछने आया हूं कि आप नदी पर पानी पीने तो गये किन्तु वहां से प्यासे ही क्यों लौट आए ?

" " दमनक , तुमने बहुत ठीक समझा , मगर भाई , यह बात ही कुछ ऐसी है कि किसी के आगे नहीं रखी जाती मगर चूंकि तुम मेरे बफादार साथी हो

इसलिए तुम्हें अवश्य बताए देता हूं .... सुनो

" शेर धीरे से दमनक ( गीदड़ ) के कान के पास अपना मुंह ले जाकर कहने लगाः " इन दिनों जंगल में एक विचित्र - सा भयंकर जानवर आ गया है ।

लगता है , वह हम सबको खा जाएगा इसलिए में इस जंगल को छोड़कर किसी दूसरे जंगल की ओर जा रहा हूं ।

" " यदि ऐसी ही बात है तो आपकी राय ठीक है लेकिन महाराज , यह भी तो हो सकता है कि आपसे कुछ भूल हुई हो ।

मैं तो यही कहूंगा कि भाई हो या मित्र , पत्नी हो या नौकर , बुद्धि का मामला हो या फिर ताकत का इन सबके खरे - खोटे की पहचान दुःख के समय ही होती है ।

" " मगर दमनक , मैं इस समय बड़े संकट में पड़ गया हूं ।

ऐसा विचित्र भयंकर जानवर मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा ।

वह गर्जता है तो उसकी गूंज को सुनते ही सारा जंगल कांप उठता है ।

आज तक जहां पर मेरी दहाड़ नहीं पहुंची वहां से कहीं आगे उसकी गर्जना पहुंच जाती है ।

" “ बस - बस , राजाजी , मैं आपकी बात को समझ गया ।

बस , आप अपने मन से सारी चिंता निकाल दें ।

मेरे जीते जी आपकी ओर कोई नहीं देख सकता ।

जब तक मेरे शरीर में अन्तिम सांस भी चलती है आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ।

मेरे साथ मेरा दूसरा भाई करटक भी है । हम दोनों भाई आपकी पूरी रक्षा करेंगे ।

" गीदड़ दमनक और करटक को शेर ने अपने पास बुलाया ।

अपने इन दोनों मंत्रियों को पास पाकर शेर का डर कुछ कम हो गया था ।

उसने इन दोनों को अपने पास बैठाकर खूब खुलकर बातें कीं फिर उनको भोजन खिलाया ।

दमनक की बातों ने उसके डूबते दिल को सहारा दिया था ।

अब उसने यह निर्णय कर लिया था कि मैं इस जंगल को अब नहीं छोडूंगा ।

शेर को हौसला देकर दोनों मित्र वहां से चल पड़े ।

रास्ते में करटक ने दमनक कहा , " भाई , यदि हम शेर के मन से डर दूर न कर सकें तो हमारा क्या होगा ?

कहीं यह मामला उल्टा ही न पड़ जाए । " " अरे मित्र , तुम क्यों घबराते हो ! बुद्धि बड़ी या भैंस ?

" " मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकता था दमनक , कि तुम इतनी जल्दी शेर के साथ वायदे करके उससे पहले से ही इनाम ले लोगे ।

अरे पहले तो किसी को काम करके दिखाना चाहिए फिर उसके सामने वायदा करके प्रशंसा पानी चाहिए ।

शायद तुम्हें पता नहीं कि राजा में सभी प्रकार के तेज होते हैं । उसके महलों में लक्ष्मी का निवास होता है ।

युद्ध में जाने पर विजय उसका साथ देती है । यदि क्रोध में आए तो सब कुछ मिट्टी में मिला देता है ।

राजा छोटा हो या बड़ा मगर उसका आदर पूरा करना चाहिए । वह धरती का देवता होता है ।

यदि राजा का काम हमसे न हुआ तो समझ लो हमारा सर्वनाश होगा ही । " " अरे भाई करटक !

तुम क्यों घबरा रहे हो ! मैं उसकी सारी कहानी जान गया हूं । वह तो पागल है ।

उसे यह नहीं पता कि जिसे वह खूनी और भयंकर जानवर समझता है वह बैल ही तो है ।

भला इस शेर से कोई पूछे कि बैल से भी कभी जंगली जानवर डरते हैं ।

वह तो हम लोगों का भोजन है । बेचारा बैल शेर से क्या टकरायेगा ?

" " वाह मेरे भाई , तुमने भी कमाल कर दिया ।

यदि इतनी ही बात थी तो वहीं पर शेर से क्यों नही कह दिया ?

ताकि उसका डर वहीं पर दूर हो जाता ! " " तुम बहुत भोले हो करटक भाई , यदि मैं उस शेर को वहीं पर सब कुछ बता देता तो वह हमें बुद्धिमान् कैसे मानता ?

हमारी विशेषता ही समाप्त हो जाती ।

फिर शेर हमें बराबर में बैठाकर हमारी सेवा ही क्यों करता ?

तुम्हें यह नहीं पता कि नौकर की विशेषता केवल मालिक को उलझनों में डालने से ही बनी रह सकती है ।

तुम अभी पूरी राजनीति नहीं जानते ।

तुमने शायद उस चूहे और शेर की कहानी नहीं सुनी जो अपने समय की पूरी राजनीति की कहानी है ।

" " नहीं , भैया , मैंने तो कहानी नहीं सुनी ,

और मैं तो चाहूंगा कि आप मुझे ऐसी कहानी जरूर सुनाएं । "

" लो सुनो । "