चतुर नारी

कैलाश पर्वत के समीप एक छोटा - सा गांव था ।

वहां के लोगों में इस बात की आम चर्चा थी कि इस चोटी पर एक राक्षस रहता है ।

एक बार घंटा लेकर भागते हुए किसी चोर को शेर ने मार डाला ।

उस चोर का घंटा बंदरों के हाथ लग गया ।

उस घंटे को ले जाकर बंदरों ने सारे जंगल में बजाना शुरू कर दिया ।

उधर से लोगों ने आकर मरे हुए उस चोर के शव को देखा , फिर साथ ही साथ निरंतर घंटा बजने की आवाजें सुनते रहे ।

उन्होंने यही

समझा कि पहाड़ की चोटी पर रहने वाला राक्षस आदमी की हत्या करके फिर खुशी से घंटा बजाता है ।

यह बात जंगल की आग की भांति चारों ओर फैल गई ।

लोग राक्षस के डर के मारे वहां से भागने लगे ।

यह बात राजा के कानों में भी जा पहुंची ।

इसी गांव के बाहर एक कुलटा स्त्री रहती थी जो बहुत ही चालाक थी ।

उसने जैसे ही लोगों को घर से भागते देखा तो हैरान रह गई ।

आखिर इस घंटे के पीछे क्या रहस्य है ।

यही जानने के लिए उस जंगल की ओर निकल पड़ी ।

वह बहुत चालाक थी ।

उसे पता था कि यह घंटा राक्षस नहीं बजा सकता ।

चालाक स्त्री उस घंटे की आवाज़ सुनते - सुनते बंदरों तक पहुंच गयी , उसने हंसकर दिल ही दिल में कहाः ' तो यह है सारी कहानी उस राक्षस की !

अब तो मैं सीधा राजा के पास जाऊंगी और उसे कहूंगी कि इस खूनी राक्षस को अपने बस में कर सकती हूं ।

' यही सोच चतुर नारी राजा के पास पहुंची ।

उसने जाते ही कहा कि आप थोड़ा - सा धन खर्च करें तो मैं उस खूनी राक्षस के घंटे की आवाज़ सदा के लिए बंद कर सकती हूं ।

राजा ने अपनी प्रजा के दुःख को देखते हुए उस औरत को बहुत सारा धन देकर कहा ,

“ जाओ तुम उस खूनी राक्षस को काबू करके हमारी दुःखी प्रजा को बचाओ । "

चालाक औरत ने अपना नाटक आरंभ कर शिव , गणेश , काली मां की मूर्तियां इकट्ठी कर अपने गले में डाल लीं ,

और राजा को नमस्कार कर वहां से चल पड़ी ।

उस औरत ने बाहर निकल बंदरों के लिए कुछ फल - फूल इकट्ठे किए ।

उसने उन फलों को उस पर्वत पर रख दिया , जहां से बंदरों के घंटे की आवाज़ आ रही थी ।

बंदरों ने जैसे ही फलों का ढेर देखा तो उन्होंने उस घंटे को दूर फेंक दिया और उन फलों पर टूट पड़े ।

बस , फिर क्या था , वह स्त्री झट से उस घंटे को उठा गांव की ओर बजाती हुई आ गई ।

गांव के सारे लोग हैरानी से उस नारी को देखने लगे ।

वे यह समझ गए कि इस औरत ने राक्षस को अपने बस में करके घंटा उससे

छीन लिया है ।

बस , फिर क्या था , सभी गांववासी उस चतुर नारी को देवी समझकर उसकी पूजा करने लगे ।

" इसीलिए मैं कहता हूं , महाराज ! खाली किसी आवाज़ से डरना नहीं चाहिए ।

चलिए हम आपको उस बैल के पास ले चलते हैं ।

" शेर जैसे ही बैल के पास आया , दोनों एक दूसरे के गले से मिले , दोनों का डर दूर हो गया ।

गीदड़ की चालाकी और होशियारी से दोनों ही मित्र बन गये ।

शेर ने बैल से कहा कि अब तुम मेरे प्रिय मित्र हो ।

इसलिए तुम मेरे पास ही रहो ।

इस प्रकार शेर और बैल इकट्ठे रहने लगे ।

एक दिन शेर का भाई उसके पास मिलने के लिए आया ।

उसके भोजन का प्रबंध करने के लिए शेर जंगल की ओर चल पड़ा ।

उसने सोचा , चलो पहले दमनक और करटक के पास ही चलते हैं , शायद उनके यहां ही कोई शिकार मिल जाए ,

लेकिन वहां तो कुछ भी न मिला ।

शेर को पता था कि कई हिरण पिछले दिनों उसने शिकार करके रखे थे ।

लेकिन यह सबके सब कहां गये ? यही सोचकर शेर बैल के पास आया ।

बैल ने शेर की सारी बात सुनी , इसके पश्चात् आश्चर्य से शेर की ओर देखकर कहने लगा : " अरे मित्र , क्या इतना मांस ये दोनों ही चट कर गये ,

जबकि इतना मांस तो आप एक साल तक खा सकते थे ।

यह बात तो बिलकुल गलत है ।

किसी भी नौकर को मालिक को बताए बिना कोई काम नहीं करना चाहिए ,

विशेष रूप से मंत्री का तो यह कर्तव्य होता है कि वह खर्च कम करे और राजा की आमदनी बढ़ाए ।

जो राजा के खजाने की रक्षा नहीं करता वह मंत्री मूर्ख होता है ।

" मेरे विचार में तो अच्छा मंत्री वही है जो कौड़ी कोड़ी जोड़ करके सरकारी खजाने का मुंह भर दे ।

क्योंकि राजा का सारा जीवन उसका खजाना होता है ।

मेरे मित्र , इस संसार में राजा का सम्मान उसके

खजाने से ही होता है ।

कुल के बारे में लोग नहीं जानते , पहले तो खजाने का मुंह खोलकर देखते हैं ।

यदि इन्सान के पास धन न हो तो पत्नी भी छोड़कर चली जाती हैं ।

" मेरे विचार में तो इस प्रकार माल उड़ाना , चोरी - छिपे कुछ खाना , कुछ उड़ाना , व्यर्थ में खर्च करना , यह विनाश के लक्षण गिने जाते हैं ।

" शेर ने बैल की बातों को बड़े ध्यान से सुनते हुए उत्तर दिया , " देखो मित्र , ये दोनों गीदड़ हमारे मंत्री हैं ।

इन दोनों का काम है लोगों में संधि और युद्ध करवाना ।

मैं आपकी सब बातों को मानते हुए इस परिणाम पर पहुंचा हूं ।

" " मैं आपकी बात मानता हूं मित्र , लेकिन मेरी बातों को भी सुनो ।

” बैल ने कहाः " ब्राह्मण और क्षत्रिय , बन्धु बान्धवों को धन का अधिकारी नहीं बनाना चाहिए ।

" ब्राह्मण में यह रोग है कि वह मुसीबत पड़ने पर भी धन को हाथ से नहीं छोड़ता ।

" क्षत्रिय में यह बुराई है कि वह बात - बात में तलवार निकाल लेता है ।

" बन्धु बांधवों को इसीलिए धन का अधिकारी नहीं बनाना चाहिए कि वे लालच में आकर उसके असली वारिस को ही ठिकाने लगा देते

हैं ।

" रही बात पुराने सेवक की में उसके इसलिए विरूद्ध हूं कि पुराने होने के कारण वह बेडर हो जाता है और पुराना होने के कारण

मालिक की परवाह न करते हुए मनमानी करने लगता है ।

उपकारी नौकर अपनी पदवी का अनुचित लाभ उठाकर अपने अपराधों की ओर ध्यान देता नहीं ,

वह उपकारों का झंडा लहराते हुए सब कुछ हड़प कर जाता

है । " शेर जी , यह बात भी मेरे अनुभव में आयी है : " जो नौकर ऊपर से दयालु और मन का खोटा होता है ,

वह सब तरह से अत्याचार कर सकता है जैसे महाभारत में कौरव , मामा शकुनि और महामंत्री शकटार इस बात के पूरे प्रमाण हैं ।

उन्हीं के कारण इतना बड़ा विनाशकारी युद्ध हुआ , भाई - भाई में झगड़े हुए ।

" मेरे कहने का भाव यह है कि बुद्धिमान् मंत्री को तो बस में नहीं किया जा सकता न ही उससे कोई डर होता है ,

मगर भ्रष्ट मंत्री पर हर समय नज़र रखनी चाहिए ।

यदि उचित हो तो अपने पद से भी हटा देना चाहिए ।

जिसमें यह चार प्रकार के दोष नज़र आ जाएं उस पर तो विश्वास ही समाप्त कर देना चाहिए :

" ( १ ) घूसखोरी का प्रमाण ।

" ( २ ) सरकारी धन का गबन और उसको बेकार खर्च करना ।

" ( 3 ) राजा या दूसरे अधिकारियों पर गैरकानूनी दबाव डालना ।

दूसरे अधिकारियों के आदेशों की परवाह न करना और सदा मनमानी करते रहना ।

" ( ४ ) बुद्धिभ्रष्ट हो जाना और भोग - विलास में लग जाना , ऐश के सामान की तलाश करना । "

इन सब बुराइयों का एक ही इलाज है कि राजा ऐसे लोगों पर आरंभ से ही कड़ी नज़र रखे ।

ऐसे अधिकारियों के प्रति कड़ा रुख अपनाए ।

कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी कर दे ।

मंत्रियों के विभागों में फेर - बदल करे ताकि नये विभागों में जाकर उन्हें घूस देने वालों से उनका सम्पर्क टूट जाए ।

“ जिसका मंत्री ही भ्रष्ट और चरित्रहीन हो , वह राजा अधिक देर तक राज नहीं कर सकता ।

" सुस्त कर्मचारी सरकार की बदनामी का कारण बनते हैं ।

विश्वासघात करने वाले की दोस्ती से सदा दूर भागना चाहिए ।

भोग - विलास में खोये , इन्द्रियों के दास से हर एक को घबराना ही चाहिए ।

जिस प्रकार धन के लोभी का कोई धर्म नहीं होता ; शराबी , जुआरी , चरसी , अफीमची का ज्ञान व्यर्थ होता है ; कंजूस को जैसे सभी छोड़ जाते हैं ,

इसी भांति घमंडी और भ्रष्ट मंत्री वाले राजा की सरकार अधिक समय नहीं चलकर उसके लिए विनाश का कारण बनती है ।

" मंत्री क्या , राजा को भी इस बात का पालन करना चाहिए कि भ्रष्ट लोगों , घूसखोर , लालची एवं भोग - विलासी कर्मचारियों को अपने दरबार में कोई स्थान न दे ,

और जो लोग उसके वफादार हों , भले हों , उनका आदर - सत्कार करे ।

" शेर बैल की बातों को सुनकर बहुत प्रभावित हुआ ।

वह बहुत देर तक इस विषय में सोचता रहा ।

अंत में उसके मन में विचार आया कि यह बैल तो उसका सच्चा मित्र है साथ ही ईमानदार भी है फिर इसके साथ ही यह शाकाहारी भी है ,

फिर क्यों न इसे खजाना मंत्री बना दूं ।

यह सोचकर उसने बैल को अपना खजाना मंत्री बना दिया ।

यह बात जब करटक और दमनक के कानों तक पहुंची तो उन्हें बहुत ही दुःख हुआ ।

आखिर इस शेर ने जंगली बैल को खजाना मंत्री क्यों बनाया ।

इससे तो उनका खाना - पीना बंद हो जाएगा ।

बैल के आगे खाने के लिए हाथ फैलाने पड़ेंगे ।

दोनों दुःखी हो गये । हेरा - फेरी का धंधा बंद , मनमानी करने से गये ।

अब क्या होगा ! दमनक ने करटक को बुलाकर कहा , " भैया , अब क्या करें , पहले तो हम खूब हराम का माल उड़ाते थे ,

अब भूखे मरेंगे , या फिर सुबह से शाम तक काम करके मरना पड़ेगा ।

मुझे तो वह कहानी याद आ रही है । "

" कौन - सी ? " " अभी सुनाता हूं भाई । "