जैसी करनी वैसी भरनी
इस देश में एक राजा राज करता था ।
एक बार उसके नौकर एक नाई को बांधकर उसकी हत्या करने के लिए ले जा रहे थे ।
उसी समय एक साधू उनके पास आया और उसने एक सिपाही से कहा , " देखो , इसे नहीं मारना चाहिए । "
" क्यों नहीं मारना चाहिए ? "
सिपाही ने पूछा ।
" सुनो ! मैं सुवर्ण रेखा छूकर ... " सिपाही साधु के मुंह से यह नाम सुन हैरान रह गया ,
और आश्चर्य से उसके मुंह की ओर देखते हुए बोला : " अरे महाराज !
यह क्या कह रहे हैं आप ?
" साधु ने कहा , “ इसमें हैरान होने की क्या बात है , में सिंहल द्वीप के राजा का पुत्र हूं ।
एक बार मैं अपने महल में बैठा था कि उस समय एक व्यापारी मेरे पास आकर यह विचित्र कहानी सुनाने लगा ।
" " कौन - सी कहानी ?
" " उसने बताया कि सागर में पूर्णिमा की रात को बीणा बजाती हुई एक सुन्दरी दिखाई देती है ,
जो एक बहुत बड़े सोने के पलंग पर बैठी होती है ।
उसके शरीर पर सोने , हीरे , मोतियों के बने कितने ही जेवर गहने होते हैं ।
इन जेवरों की कीमत का अंदाजा ही यदि लगाया जाए तो करोड़ों - अरबों में बनता है ।
" व्यापारी की बात मैंने प्यार से उसे कहा , ही एक बार देखूंगा । '
सुन मेरे मुंह में लालच से पानी भर आया ।
मित्र , मुझे उसके पास ले चलो , मैं उसे अवश्य
" व्यापारी , मुझे उसी समय एक नाव में बैठा गहरे सागर की ओर चल दिया ।
" पूर्णिमा की ही रात थी वह , जब मैंने उस सागर सुन्दरी को उस सोने के बड़े पलंग पर अपनी कई सहेलियों के साथ बैठा हुआ देखा ।
उसने भी मुझे देख लिया ।
फिर उसने अपनी एक दासी को इशारा किया कि मुझे बुलाए ।
' मैं उसका इशारा समझ झट से उसके पास पहुंच गया ।
अंधा क्या मांगे , दो आंखें में भी तो इसीलिए यहां आया था !
जैसे ही में उसके पास पहुंचा तो उसने मुझसे बड़े प्यार से बात करते हुए कहाः
*
' मैं रत्नप्रभा हूं । मेरे पिता एक राजा है ।
मैंने एक प्रतिज्ञा की हुई है , जो सुवर्ण नगरी में आकर उसे अपनी आंखों से देखेगा ,
मैं उसी के साथ शादी करूंगी । '
" मेरे लिए यह कौन - सी बड़ी बात थी ।
जब मैं उसे दिल से चाहता था तो मुझे उसके साथ जाने में ही क्या एतराज था !
बस , में तो उसकी प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए सुवर्ण नगरी चल दिया ।
" उसने मेरे साथ शादी कर ली ।
" मैं वहीं रहने लगा ।
" एक बार उस सुन्दरी ने मुझसे कहाः
"
' देखो मेरे देवता , आप अपनी इच्छानुसार यहां की हर चीज़ को पा सकते हैं किन्तु इस चित्र में बनी सुवर्ण रेखा नाम की विद्याधरी को कभी भूलकर मन छूना ।
' " मगर मेरे मन में तो उस सुवर्ण रेखा को छूने की लालसा तेजी से भड़क उठी थी !
इन्सान जिसे न पा सकता है उसे पाने की इच्छा तो सदा ही उसके मन में बनी रहती है ।
" बस , एक दिन मैंने सुवर्ण रेखा को छू लिया ।
“ इसके पश्चात् ...
“ मुझे किसी अज्ञात प्राणी ने इतनी जोर की ठोकर मारी कि में सीधा अपने देश में आ गिरा ।
मैंने इस बात से दुःखी होकर संन्यास ले लिया और साधु बन गया और दर - दर की ठोकरें खाता यहां तक पहुंच गया ।
मैंने एक बार सपने में देखा कि एक ग्वाला पशु चराकर जैसे ही घर लौटा तो उसने अपनी पत्नी को नाई के पुत्र से बातें करते देखा ।
ग्वाले ने क्रोध में आ अपनी पत्नी को बुरी तरह पीटा और फिर उसे वृक्ष के साथ बांधकर सो गयाः
" आधी रात को नाई के लड़के ने अपने एक साथी नाई की पत्नी को उस बंधी हुई औरत के पास भेजा । उसने आते ही कहाः
"
' देखो , वह नाई का लड़का तुम्हारे प्रेम में पागल हो चुका है ।
उसने शाम से अब तक खाना भी नहीं खाया ।
यदि तुम उससे मिलने न गई तो वह शायद मर जाएगा ।
' " ग्वालिन ने उस औरत की बात सुनकर कहा , ' देखो बहन , मैं तो बुरी तरह बंधी हुई हूं ,
यदि भूल से ग्वाले की आंख खुल गई तो वह मुझे यहां न पाकर पीछे - पीछे नाई के घर में आएगा और वहां पर ही हम दोनों की हत्या कर देगा । '
" उस औरत ने कहा , ' तुम इसकी चिंता मत करो ।
लाओ , मैं थोड़ी देर के लिए तुम्हारे स्थान पर बंध जाती हूं ।
तुम जाकर उसका मन खुश करके आ जाओ ।
फिर तुम पहले की तरह इस वृक्ष से बंध जाना ।
इस प्रकार से दोनों का मन खुश हो जाएगा ।
' " बस , फिर क्या था ! ग्वालिन के स्थान पर उस नाई के मित्र की पत्नी बंध गई जो अपने घर वाले से चोरी उस नाई का काम इसलिए कर रही थी
कि उसने उसे धन का लोभ दिया था ।
" उधर , रात के समय ग्वाले के क्रोध की आग तेज़ हो गई थी ।
उसने सोचा , ऐसी कुलटा नारी को उसके अपराध की सजा मिलनी ही चाहिए ।
बस , यही सोच उसने एक तेज़ धार चाकू उठाया और अंधेरे में ही उसकी नाक काट डाली ।
“ थोड़ी देर के पश्चात् जैसे ही वह ग्वालिन अपने प्रेमी का मन खुश करके वापस आयी तो उसने उस औरत को खून में लथपथ देखा ।
उसके पूछने पर उस औरत ने सारी कहानी सुना डाली ।
बेचारी थोड़े - से धन के कारण अपनी नाक कटवा बैठी ।
" सुबह उठते ही उस नाई की औरत ने राजा के पास जाकर फरियाद की कि मेरे पति ने मेरी नाक काट डाली है ।
" दूसरी ओर सुबह उठते ही ग्वाले ने अपनी पत्नी से कहाः ' क्यों नकटी , अब पता चला तुम्हें पराये आदमी से प्रेम करने का नतीजा !
अब सब लोग तेरे अपराध को जान जाएंगे ... हा ... हा .
... डा ! "
" उसी समय औरत ने उत्तर दिया , ' अरे , मैं निर्दोष हूं , तभी तो मेरी नाक मेरे मुंह पर है ।
तुम्हारा चाकू मेरी नाक नहीं काट सका , क्योंकि में दोषी नहीं हूं ।
तुम्हारा ही मन काला है । मेरे पतिव्रता धर्म को तो सारी दुनिया जानती है ।
तुम भले ही जानो या ना जानो ।
आदमी के बर्ताव को सूर्य , चांद , हवा , आग , आकाश , धरती , जल , हृदय , यम , दिन और रात तथा सुबह और शाम देखते जानते हैं ।
यदि मैं सती . नारी हूं तो तुम्हें छोड़कर किसी और पुरुष का सपना भी नहीं देख सकती ।
तुमने तो मेरी नाक काट दी थी किन्तु मेरे पातिव्रत्य धर्म ने उसे जोड़ डाला । '
ग्वाले ने आश्चर्य से अपनी पत्नी की नाक को देखा ।
यह सब क्या था ?
जिस नाक को उसने अपने हाथों से काटा था , वही नाक ठीक - ठाक थी ।
वह अपनी पत्नी के पांव में गिर पड़ा और बोला : " मुझे माफ कर दो देवी , मैंने ही तुम्हें समझने में भूल की !
वास्तव में ही तुम सती नारी हो ।
' " रही बात इस साधु की , वह भी सुन लो ।
बारह वर्ष तक उस पहाड़ पर रहकर वह धरती पर आया है ।
शहर में यह एक वेश्या के कोठे पर रहकर सो रहा था , वेश्या के घर में बाहर ही लकड़ी की बनी एक मूर्ति लगी थी जिसके सिर पर एक कीमती हीरा जड़ा था ।
साधु ने जैसे ही हीरा देखा तो लालच में अंधा हो उसे चुराने की बात सोचने लगा ।
" उसने वेश्या से आंख बचा जैसे ही उस हीरे को उस मूर्ति से निकालना चाहा तो उसी समय मूर्ति के हाथ उठे ,
उसने साधु को इतनी ज़ोर से जकड़ा कि उसकी चीखें निकल पड़ीं ।
“ उस वेश्या ने जैसे ही उस साधु की चीखें सुनीं तो भागी भागी आयी और आते ही बोली : ' तुम उस ऊंचे पहाड़ से आए हो न !
अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि अपने पास के हीरे निकालकर रख दो ।
नहीं तो यह मूर्ति अपनी बांहों में ऐसे दबाएगी कि तुम सदा के लिए शांत हो जाओगे ।
' " बस , फिर क्या था ।
उस साधु ने डर के मारे सारे हीरे निकालकर उस वेश्या को दे दिए ।
अपना सब कुछ लुटवाकर साधु अब हमारे साथ आ मिला है ।
हम साधुओं का यही जीवन है , हम नहीं चाहते कि इस बेगुनाह नाई को फांसी दी जाए ।
" “ उस साधु की कहानी सुनकर सिपाही उसे राजा के पास ले गये ।
वहां पर राजा ने उसके मुंह से पूरी सत्यकथा सुन उस नाई को तो छोड़ दिया परन्तु उस पापी लड़के ,
नकटी नाइन , ग्वालिन को सज़ा दे जेल में बंद कर दिया ।
" इसीलिए मैं कहता हूं मेरे भाई , कि बुरी औरतों के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि उनका खाना पुरुष से दुगना ,
दिमाग चार गुना और काम वासना आठ गुना अधिक होते हैं ।
" बुद्धिमान् वही है जो दुःखों में भी खुश रहे , संकट से न घबराए । "
" मैं तुम्हारी सब बातें मानता हूं भाई , लेकिन ,
शेर और कौए में तो अब घनी मित्रता हो गई है ।
उनमें जब तक फूट नहीं डलेगी तब तक हम शेर के माल को खा नहीं सकेंगे ।
" " अरे करटक ! तुम क्यों घबरा रहे हो ?
इन दोनों में फूट डालना तो मेरा बायें हाथ का काम है ।
तरकीब से , बुद्धि से हर काम हो जाता है ।
" कौए ने तो सोने की माला से ही काल भुजंग मरवा दिया था ।
" " वह कैसे ? " “ हां , यही तो बात है , जो बुद्धि से जुड़ी है , लो मैं तुम्हें उस कौए की भी बात सुनाता हूँ । "