एक पहाड़ी गुफा में बड़ा ही भंयकर खूनी शेर रहता था ।
उस शेर के सामने जो भी आ जाता , बस उसी का अंत क्षण भर में हो जाता ।
इस प्रकार खूनी शेर से सभी जंगली जानवर डर के मारे कांपते
थे ।
एक बार सभी जंगली जानवरों ने मिलकर उस शेर से कहा कि " देखो शेर राजा , आप तो रोजाना ही हम जानवरों को मारने की बेकार चेष्टा करते हो ।
इससे तो यही अच्छा है कि हम आपके भोजन का स्वयं प्रबंध करते हुए रोज बारी - बारी से एक - एक करके आपके पास आ जाया करें ताकि आप हमें खाकर अपना पेट भर लें ।
इस प्रकार से हमारे जानवर व्यर्थ नहीं मारे जायेंगे और आपकी संतुष्टि भी हो जाएगी ।
इस तरह हम दोनों पक्षों को सुविधा रहेगी ।
" शेर ने जंगली जानवरों की बात मान ली ।
इस तरह हर रोज ही एक जानवर अपनी बारी से शेर के पास चला जाता , जिसे खाकर शेर अपना पेट भर लेता ।
एक दिन एक बूढे खरगोश की बारी आ गई ।
वह बेचारा मरना तो नहीं चाहता था , किन्तु मजबूर था ।
उसे पता था कि शेर के आगे हाथ जोड़ने का भी कोई लाभ नहीं है ।
उसके मन में तो कभी दया आ ही नहीं सकती , जैसे पत्थर पर बंद पड़ना न पड़ना बराबर है ।
यही सोच वह बेचारा खरगोश धीरे - धीरे शेर की गुफा की ओर चलता रहा ।
उधर शेर भूख से पागल हुआ जा रहा था ।
जैसे ही खरगोश उसके पास पहुंचा तो क्रोध से भरे शेर ने उसे देखकर कहा , " अरे , तुम कहां मर गये थे ।
इतनी देर से क्यों आए हो ?
क्या तुम्हें पता नहीं कि हमारे भोजन का समय कब का हो चुका है ?
" खरगोश बड़ा चालाक था । उसने तो पहले से ही सारी योजना बना रखी थी ।
उसने झट से उत्तर दिया : " महाराज ! देर मैंने नहीं की , यह तो आपके ही दूसरे भाई ने करवा दी है ।
" “ क्या बक रहे हो ? हमारा इस जंगल में दूसरा कोई भाई नहीं है ! हम ही इस जंगल के राजा हैं ।
हमारे होते हुए यहां पर कोई पांव भी नहीं रख सकता ।
" " महाराज ! आप ठीक ही कहते हैं , मगर मैं तो अपनी आंखों से उस शेर को देखकर आया हूं ।
यदि आपको विश्वास नहीं आता तो स्वयं चलकर देख लीजिए ।
" “ यदि तुम ठीक कहते हो तो चलो हम अभी चलकर उसे देखते हैं ।
हम पहले उसका शिकार करेंगे , फिर कोई दूसरा काम । " शेर क्रोध से भरकर खरगोश के साथ चलने लगा ।
खरगोश अपनी योजना को पूरी करने के लिए शेर के आगे - आगे चलने लगा । वैसे तो उसे पता था कि उसका जीवन अब पूरा हो चुका है ।
मरता क्या न करता वाली बात थी ।
उसने सोचा , यदि हमारी योजना सफल हो गई तो जीवन बच जाएगा , नहीं तो मौत तो सामने खड़ी है ही ।
दोनों चलते - चलते एक गहरे कुएं के पास पहुंचकर रुक गये ।
" कहां है , वह शेर " शेर जोर से चिल्लाया ।
" महाराज ! इस कुएं के अंदर है । आप स्वयं ही इसके अंदर झांककर देख लीजिए ।
आप स्वयं ही सोचो कि यदि मैं उसके पास जाऊंगा तो वह मुझे खा नहीं जाएगा ।
मैं तो पहले ही बड़ी मुश्किल से उससे अपनी जान बचाकर निकला हूं ।
" " ठीक है , तुम यहीं पर ठहरो हम स्वयं उस शेर के पास जाते हैं ।
देखते हैं कि हमारे होते हुए वह कैसे यहां पर रह सकता है ।
" इतना कहते ही शेर उस कुएं के अंदर झांकने लगा ।
उसको अपनी ही परछाई नीचे कुएं के पानी में नज़र आने लगी ।
उसने समझा , वास्तव में ही कुएं में शेर खड़ा है । बस , फिर क्या था , उस शेर को देख शेर का गुस्सा और बढ़ गया ।
वह जोर से दहाड़ा ।
उसके उत्तर में उस कुएं में से अपनी ही जवाबी आवाज गूंजती सुनाई दी ।
पागल शेर क्रोध से और भड़क उठा ।
उसकी आंखों में खून उतर आया और वह चीखाः " अबे , तुमने मुझे क्या बुज़दिल समझा है , मेरे सामने आज तक कोई नहीं टिक सका ।
तेरी क्या मजाल जो मेरे सामने बोलोगे ! " " हां हां , महाराज , आप ठीक कहते हैं ।
भला यह शेर आपके सामने कैसे बोल सकता है ! आप ही तो इस जंगल के असली राजा हैं ।
यह न जाने कहां से आ टपका है ! लगता है यह आपका राज छीनना चाहता है ।
" खरगोश ने शेर को और गर्म कर दिया ।
" यदि यह बात है तो देखो मेरी ताकत , अभी इसकी हड्डियों को चूर - चूर करता हूं । "
इतना कहते ही शेर ने कहां ! यह तो उस मूर्ख शेर चालाकी सफल हो गई थी ।
कुएं में छलांग लगा दी । वहां शेर था ही की अपनी ही परछाई थी । खरगोश की शेर कुंए में गिरकर मर गया । जैसे ही जंगली जानवरों को पता चला कि खरगोश ने अपनी बुद्धि से उस खूनी शेर की हत्या कर दी है , तो वे सबके सब बड़े ही खुश हुए । उन्होंने खरगोश को बहुत प्यार किया ।
कोए ने यह कहानी सुनाकर अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा कि बुद्धि से तो शेर को भी मारा जा सकता है , यह तो भला सांप
है ।
" ठीक है , आप ही कोई रास्ता निकालें ।
" " देखो मेरी पत्नी , सामने नदी पर अपनी सहेलियों के साथ एक राजकुमारी हर सुबह नहाने के लिए आती है ।
वह अपने कपड़े और गहने उतारकर तट पर रखती है ।
उनमें उसका सोने का मोतियों वाला हार भी होता है ।
बस , कल सुबह ही तुम जाकर उस हार को उठा लाओ ।
और उसे लाकर इस काले नाग के बिल में डाल दो ।
राजा के आदमी उस हार को ढूंढते हुए इस वृक्ष तक आएंगे ।
जैसे ही वे लोग सांप के बिल में उस हार को देखेंगे तो समझेंगे , यह सांप ही चोर है ।
फिर हार को निकालने के लिए उन्हें बिल को तो खोदना ही पड़ेगा , बस , जैसे ही सांप बाहर आया तो राजा के सिपाही उसे मार डालेंगे ।
" कौए की पत्नी अपने पति की योजना सुन बहुत खुश हुई ।
सुबह जैसे ही राजकुमारी नदी तट पर नहाने आई , तो उसने उसका हार बड़ी चलाकी से उड़ा लिया और हार लाकर इस खूनी सांप के दिल में डाल दिया |
योजना के अनुसार ही सब काम होने लगा । राजा के सिपाही उस हार की खोज में भागे ।
जैसे ही उन्होंने सांप के बिल में कौए को मोतियों के हार को डालते देखा तो झट से बिल को खोदा और हार निकाल सांप को
मार डाला ।
इस प्रकार उनकी योजना सफल हो गई ।
करटक दमनक की बात पर हंसकर बोला , “ यदि ऐसा हो सकता है तो तुम जरूर जाओ । "
दमनक सीधा शेर के पास पहुंचा और बड़े आदर से प्रणाम करके बोला " महाराज , में आपकी सेवा में इसलिए हाज़िर हुआ हूं क्योंकि मुझे पता चला है कि आप पर बहुत मुसीबत आने वाली है । में आपका
वफादार सेवक हूं ।
हर बफादार सेवक का यह धर्म है कि मुसीबत के समय अपने मालिक का पूरा ख्याल रखे ।
फिर मैं आपका मंत्री हूं , मंत्री होने के नाते भी मुझ पर बहुत बड़ी जिम्मेवारी आती है ।
" " तुम कहना क्या चाहते हो मेरे मंत्री ? " शेर उसकी चिकनी - चुपड़ी बातों में फंस गया ।
" महाराज , मुझे यह पता चला है कि वह बैल आपके साथ कोई बड़ी चाल चल रहा है ।
वह हमारे सामने आपकी तीनों शक्तियों ( 9 ) प्रभु शक्ति , ( २ ) मंत्र शक्ति और ( ३ ) उत्साहशक्ति के बारे में बहुत बुरी - बुरी बातें कह रहा था ।
यहां तक भी सुना गया है कि वह आपका राज छीनने की बात सोच रहा है । "
" क्या कहा ? " शेर डरकर बोला ।
" महाराज , आपने अपने सभी मंत्रियों को हटाकर उस बैल को सारी ताकत दे रखी है ।
अब उसे पता है में ही सब चीजों का मालिक हूं ।
मुझे कोई टोकने वाला नहीं है , इसीलिए वह सोच सकता है कि मैं यहां का राजा ही बन जाऊं ।
“ महाराज , कोई भी राजा जब एक ही मंत्री को सारी ताकत सौंप देता है तो उस मंत्री का घमंडी हो जाना स्वाभाविक बात है ।
राजा पर अधिकार पाने के लिए वह राजा की हत्या भी कर सकता है ।
ऐसे मंत्री को तो जहरीले भोजन और हिले हुए दांत की भांति जड़ से उखाड़ देना चाहिए , तभी सुख मिल सकता है ।
" " दमनक ! मैं यदि तुम्हारी सारी बातों पर विश्वास कर भी लूं तो भी तुम्हें पता होना चाहिए कि यह बैल मेरा मित्र है ।
मैं उसे दिल से प्यार करता हूं ।
मित्र कितनी भी भूल करे मगर रहता तो मित्र ही है , अपने शरीर में भले ही कितने ही रोग हों मगर उससे प्यार तो नहीं समाप्त हो जाता ?
" " महाराज , यही तो आपकी सबसे बड़ी भूल है ।
ये बातें याद रखो कि चाहे पुत्र हो , मंत्री हो या फिर कोई उदासीन व्यक्ति , जो कोई राजा की नजरों में चढ़ जाएगा लक्ष्मी उसी के पीछे होती है ।
हो सकता है आपको मेरी बातें कड़वी लग रही हों मगर समझदार की बात नीम के पते की भांति कड़वी अवश्य होती है , इसका फल बहुत मीठा होता
है । जहां पर भी कोई दूसरे की भलाई के लिए कड़वी बात कहेगा वहां पर अंत में सुख नजर आएगा !
" महाराज , आपने केवल इस बैल के लिए जो पुराने नौकरों को निकाल दिया है यह कोई अच्छी बात नहीं ।
शास्त्रों में लिखा है कि किसी एक नये प्राणी के लिए पुराने सबको दूर कर देना , अपने राज्य में स्वयं ही मुसीबतें खड़ी करने वाली बात है ।
" " दमनक , क्या तुम्हें उस बैल पर कोई संदेह है ?
" शेर ने
पूछा ।
“ महाराज , शत्रु से मित्रता पाकर कभी कोई सुखी नहीं रह सकता ।
विष के वृक्षों की जड़ों में कितना ही अमृत डालते रहो , लेकिन उसमें फल जो लगेगा वह जहरीला ही होगा !
" यह सब कुछ मैं इसलिए आपको बता रहा हूं क्योंकि आप दूसरों की भलाई चाहते हैं ।
जो दूसरों की भलाई सोचे , उसे अवश्य ही अच्छी सलाह देनी चाहिए ।
बड़ों ने कहा है कि " सच्चा मित्र वही है जो मित्र का भला चाहे , जो मित्र को दुःख से बचाए ।
कर्म वही है जो पवित्र हो । स्त्री वही है जो पति की आज्ञा का पालन करे ।
विद्वान् वही है जिसे लोग सम्मान दें ।
धन दौलत वही अच्छा जो मनुष्य में घमंड न आने दे , मर्द वही है जो इन्द्रियों को काबू में रखे ।
“ महाराज , यदि इतना कुछ कहने पर भी आप उस बैल पर विश्वास करते हैं तो फिर अपना भला - बुरा स्वयं सोचें ।
कल को कोई भी आफत आ जाए तो मुझे मत कहना कि मैं आपका वफादार नहीं था ।
सुनिए महाराजः " राजाओं के विनाश का कारण उनका मनमाना सलूक ही होता है ।
अंधाधुंध काम करने वाला राजा कभी सफल नहीं होता , एक दिन उसे धोखा खाना ही होता है ।
" दमनक की बातें सुन शेर सोच में पड़ गया ।
बैल उसका ऐसा मित्र था जिसके बारे में वह कभी कुछ सोच ही नहीं सकता था लेकिन यहां गीदड़ भी तो उसका पुराना मित्र है ।
' इसी ने चतुर बुद्धि से मुझे इस बैल का मित्र बनाया था , आज यदि यह उस बैल के बारे में कह रहा है तो अवश्य ही इसके पीछे कोई बात जरूर है ।
भला बैल से इसकी क्या दुश्मनी हो सकती है । '
" तो क्या मैं उस बैल को अपने पद से हटा दूं ?
" शेर ने दमनक से पूछा । “
नहीं महाराज , ऐसी जल्दीबाजी से काम मत लें ।
इससे तो मामला और बिगड़ जाएगा ।
विद्वान् कहते हैं कि राजा को अपना हर कार्य गुप्त रखना चाहिए ।
बात खुल जाने से दुश्मन सावधान हो जाता है ।
भेद की बात दो के बीच में रहे तो ही सफल हो पाती है , तीसरे के पास जाते ही मामला चौपट हो जाता है ।
बुजदिल आदमी युद्ध में कितने ही भयंकर हथियार ले जाए लेकिन लड़ नहीं सकता ।
ऐसे ही आप इस खोटे मित्र से बचने के लिए उस पर विश्वास करना छोड़ दें ।
" " दमनक , पहले तुम यह पता लगाओ कि यह बैल हमारा क्या नुकसान कर सकता है ।
आखिर हम भी तो शेर हैं ।
" " महाराज , शत्रु को कभी अपने से कमजोर न समझो , भले ही वह कितना ही छोटा हो ।
मैं आपको टिटहरी की कहानी सुनाता हूं जिसने सागर की नींद हराम कर दी थी ।
" इतना कह दमनक यह कहानी सुनाने लगाः