सागर और टिटहरी

हितोपदेश की कहानियां I Hitopadesh Ki Kahaniyan - सागर और टिटहरी

सागर तट पर एक टिटहरियों का जोड़ा रहता था ।

एक दिन टिटहरे की पत्नी मां बनने वाली थी तो उसने अपने पति से कहा , “ देखो मुझे अंडे देने के लिए आपको कहीं एकांत स्थान देखना होगा ।

" " प्रिये , यह जगह कौन - सी बुरी है ? " टिटहरा बोला ।

" आप देख नहीं रहे , यहां पर सारा स्थान सागर की लहरों के पानी से भर जाता है ! "

" अरी पगली , क्या में इतना कमजोर हूं कि सागर मेरे बच्चों को ही बहा ले जाए ! " " अजी आप भी कैसी बातें करते हैं ?

भला इतने शक्तिशाली सागर का आप कैसे मुकाबला करेंगे ! बुद्धिमान वही है जो अपनी ताकत का सही अंदाजा लगाए ,

तभी वह मुसीबतों से बच सकता है ।

चार बातें मौत का द्वार मानी जाती हैं : " ( १ ) गलत ढंग से काम शुरू करना , " ( २ ) अपने लोगों से दुश्मनी , " ( ३ ) ताकतवरों से टक्कर , “ ( ४ ) स्त्री पर विश्वास करना । "

सब सुनने के बाद भी टिटहरे ने अपनी पत्नी की बात नहीं मानी , उसकी पत्नी ने उसी सागर तट पर अंडे दे दिए ।

सागर ने भी टिटडरे की बात सुन ली थी ।

उसने उसकी अकड़ ठीक करने के लिए अपनी लहरों की शक्ति से अंडों को अपने पानी में समेट लिया ।

अपने अंडे जाते देख टिटहरी ज़ोर - ज़ोर से रोने लगी ।

टिटहरे ने अपनी पत्नी को रोते देख कहा , “ देखो प्रिये , तुम चिंता मत करो ।

मैं अभी सभी जानवरों और पक्षियों को इकट्ठा कर सकता हूं ।

" जानवरों और पक्षियों के इकट्ठे होने पर पक्षी राजा गरुड़ भी आया ।

टिटहरे ने गरुड़ के आगे हाथ जोड़ते हुए कहाः “ देखो महाराज , आप हम सबके राजा हो ,

आप ही भगवान् के पास जाकर इस सागर के अपराधों की कहानी सुनाओ ।

" गरुड़ ने सब जानवरों और पक्षियों को हाथ जोड़ते हुए कहाः " देखो भाइयों , तुम चिंता मत करो , मैं अभी विष्णु भगवान् के पास जाकर अपना दुःख सुनाता हूं ।

मुझे आशा है कि वे सागर को हुक्म दे देंगे कि उन अंड़ों को वापस कर दो ।

" इतना कहते ही गरुड़ वहां से उड़ गया था ।

उसने विष्णु भगवान् को सागर के इस जुल्म की सारी कहानी सुनाई और इन्साफ की भिक्षा मांगी ।

विष्णु भगवान् ने उसी समय सागर देवता को आदेश दिया कि टिटहरी के अंडे इसी समय वापस कर दो ।

यह सुन सागर ने झट से उसके अंडे वापस कर दिए ।

" महाराज , यह होती है बुद्धि की बात , आदमी को अपने शुत्र की कमजोरी के बारे में पहले से जानना चाहिए ।

" " मगर दमनक , यह कैसे पता चले कि बैल से हमारी दुश्मनी है ?

" " यह कोई कठिन बात नहीं । बैल जब भी आपके सामने अकड़कर सींग उठाए हुए आए तो समझ लो वह लड़ने की तैयारी में है ।

बस , इससे अधिक और क्या पहचान हो सकती है ।

" इतना कहते ही दमनक वहां से चल सीधा बैल के पास गया ।

गीदड़ बुरी तरह सहमा सा डरा - सा था , उसकी यह हालत देखकर बैल बुरी तरह डर गया ।

उसने गीदड़ से पूछाः " अरे भाई , यह क्या ? तुमने अपनी यह क्या हालत बना रखी है ?

" “ भैया बैल , हम गुलामों का भी क्या जीवन है , हमें तो जरा - सी जरूरत के लिए मालिक के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं ।

हर समय डर के मारे बुरा हाल रहता है ।

अब आप ही बताओ कि इस संसार में ऐसा कौन है :

" जो धन पाकर अकड़ा नहीं ? " ऐसा कौन है जिस पर मुसीबतें न आई हों ? "

ऐसा कौन है जिसका मन स्त्रियों के कारण न टूटा हो ? "

ऐसा कौन है जो हमेशा राजा का प्रिय रहा हो ? "

मौत ने आज तक किसे छोड़ा है ? “

ऐसा कौन - सा भिखारी है जो महान बना हो ? "

ऐसा कौन है जो पापियों के जाल में फंसकर सुख पा सके ?

" " अरे मित्र , आखिर इन बातों का अर्थ क्या है , आखिर तुम इतने निराश क्यों हो ? " बैल ने पूछा ।

" अरे भाई बैल ! मैं तुम्हें क्या बताऊं ? मैं तो बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं ।

मेरा हाल तो उस आदमी जैसा है जो सागर में डूबते हुए बचने के लिए एक सांप को पकड़ लेता है ।

उस सांप को न तो वह छोड़ सकता है और न ही पकड़े रख सकता है ।

“ एक ओर तो राजा का विश्वास टूटने की नौबत आ गई है , " दूसरी ओर " मित्र का खून होने की बात है ।

" अब तुम ही बताओ कि क्या करूं ?

कहां जाऊं ?

सच पूछो तो मैं बुरी तरह फंस गया हूं ।

" इतना कहते हुए ठंडी सांस भर गीदड़ वहीं पर बैठ गया ।

" भैया दमनक ! तुम मेरे मित्र हो , कम से कम अपने मित्र से तो कुछ छुपाने का प्रयास न करो ।

मैं तुम्हारे दुःख में काम नहीं आऊंगा तो कौन आएगा ! ”

यहां के लोग कुछ नहीं रह

" मेरे मित्र ! अब तो यह संसार ही बदल रहा है , बदल गये हैं ।

मैं तो यह कहूंगा , अब पाप के सिवा गया ।

वैसे तो राजा के भेद की बात खोलना पाप है , तो हमारे विश्वास पर यहां आए हो !

परलोक सुधारने के विचार से मैं तुम्हारे फायदे की बात बता रहा हूं । " " क्या बात ? " बैल ने आश्चर्य से पूछा ।

मगर तुम भी

" भैया , आपके बारे में हमारे राजा के मन में पाप आ चुका है ,

उन्होंने चुपके से कहा है कि बैल का सफाया करके हम सब मौज मनाएंगे । ”

" हांए ! " बैल के होश उड़ गये ।

" हां मित्र , खैर , यह सब तो इस संसार में होता ही आया है , आप समय को देखकर ही उचित पग उठाओ ।

" बैल सोच के सागर में डूबा यह विचार कर रहा था कि यह गीदड़ ठीक कहता है अथवा गलत ?

क्या इसके मन में भी कोई पाप है ?

जहां तक राजा का प्रश्न है वह पापियों के ही बहकावे में आता है ।

जैसे बुरी स्त्रियां पापियों के साथ ही खुश रहती हैं ।

धन सदा कंजूसों के पास ही जमा रहता है ।

बादल सदा पहाड़ों से टकराकर सागर में ही गिरते हैं ।

ऊंचा सहारा पाकर पापी लोग भी अपनी इज्जत बना लेते हैं ।

जैसे सुन्दर आंखों में लगा सुरमा भी मन को अच्छा लगने लगता है ।

बैल मन ही मन में दुःखी हो कह रहा था कि बैठे बैठाए यह मुसीबत कहां से आ गई !

आखिर इस शेर का मैंने क्या बिगाड़ा जो मेरी जान के पीछे पड़ गया ?

यदि वह मुझसे किसी बात पर नाराज़ था तो मुझे बता भी सकता था ।

मैं उसकी नाराज़गी दूर कर सकता था , लेकिन उसने तो यह फैसला ही कर लिया कि मुझे खाएगा ।

आखिर मैंने उसका क्या बिगाड़ा है ?

क्या सभी राजा लोग प्यार का जवाब नफरत से देते हैं ?

बैल के मन की दुविधा समझ गीदड़ कहने लगा , " प्यारे बैल !

आजकल यही कुछ होता है । भलाई के बदले में बुराई मिलती है ।

नौकर भले ही बुद्धिमान् हो , राजा पर अपनी जान देता हो किन्तु मालिक समय आते ही सब कुछ भूल जाता है ।

जो उसका बुरा चाहने वाले होते हैं उन्हें गले लगा लेता है ।

चंचल स्वभाव के लोगों के काम भी चंचल होते हैं , सेवा धर्म निभाना बड़ा ही कठिन है ।

योगी लोग भी इसमें मार खा जाते हैं ।

" मैं तो आपको लाखों बातों का एक ही निचोड़ बताऊंगा कि मूर्ख आदमी पर किए गये सभी उपकार व्यर्थ होते हैं ।

ऐसे लोगों को दिए गए सभी उपदेश बेकार हैं ।

न मानने वाले को कुछ भी कहने का कोई लाभ नहीं ।

“ अब रह गई सुख की बात इस संसार में सुख मिलता कहां है ?

" चंदन जो शीतलता देता है , उस पर नाग देवता लिपटे रहते हैं ।

“ गंदे जल में खिले कमल के फूल को पाने के लिए कीचड़ में लथपथ होना पड़ता है ।

" संभोग से आनन्द तो मिलता है , मगर इस काम वासना की आग में से सबसे अधिक बुराइयां जन्म लेती हैं ।

" मित्र , पापी दिल के लोग जो तरह - तरह के रंग बदलते हैं उनमें कपट के सिवा और कुछ नहीं होता ।

ऐसे लोग दूर से ही बांहें फैला प्यार जताएंगे , अपनी सिर आंखों पर बैठने की बात करेंगे ,

गले से लगा प्यार की वर्षा करेंगे परन्तु इनके अन्दर पाप का जहर भरा होता है ।

मगर

“ संसार में ऐसी कोई चीज नहीं जिसका इलाज विधाता ने न किया हो ।

नदियों को पार करने के लिए नाव , सागर पार करने के लिए

अंधेरा दूर करने के लिए दीपक , हवा लेने के लिए पंखे , दुष्टों का दिल बदलने के लिए विधाता ने कुछ नहीं किया ।

ऐसा प्रतीत होता है , पापी से विधाता भी डरता होगा । "

जहाज ,

" भाई गीदड़ , कितने दुःख की बात है कि मैं घास - फूंस खाकर दिन काटने वाला प्राणी हूं , क्या मुझे भी शेर महाराज मार डालेंगे ? "

शायद यह बात सत्य है कि मित्रता और शुत्रता उन्हीं में चलती है , जो बराबर के धनवान् और टक्कर के बलवान् हों ।

छोटों के बीच में न दोस्ती निभती है और न दुश्मनी ... यही सोच बैल बहुत चिंतित - सा सोचने लगा कि आखिर यह सब क्या हो गया ।

शेर को उसके विरुद्ध किसने भड़काया है ?

वह तो उसका बड़ा प्यारा मित्र था ! रूठे हुए राजा से तो सदा डरना चाहिए ।

क्योंकि मंत्री के कारण यदि राजा का दिल टूट जाए तो उसे जोड़ना ऐसा ही असंभव है , जैसे टूटे शीशे को जोड़ना ।

राजा का तेज और वज्र दोनों ही बड़े भयंकर होते हैं ।

वज्र तो वहीं तबाही करता है जहां पर गिरता है , किन्तु राजा सब ओर से घेरकर मारता है ।

इसलिए शेर के युद्ध में लड़कर मर जाना ही अच्छा ।

अब उसकी आज्ञा का पालन करना भी बेकार है ।

मर गये तो स्वर्ग मिलेगा , जीत गये तो राज का सुख मिलेगा ।

दोनों ही ओर से वीर बनने में लाभ है ।

बुज़दिलों की मौत तो कायर मरते हैं ।

अब तो शेर से दो - दो हाथ करने ही होंगे ।

युद्ध तो वीरों की अग्नि परीक्षा का दूसरा नाम है ।

युद्ध में भरना सबसे अच्छी मौत होती है । उसे लोग शहीद कहते हैं ।

यही सोचते हुए बैल ने गीदड़ दमनक से पूछा , " भाई , मुझे यह कैसे पता चलेगा कि शेर मुझे मार डालना चाहता है ? "

" जब शेर अपनी दुम उठाकर मुंह फाड़े तुम्हारी ओर देखे तो समझ लेना कि वह तुम पर हमला करना चाहता है ।

बस , उस समय तुम भी अपनी शक्ति दिखा देना ।

" यह सब काम तुम्हें चुपचाप करने होंगे ।

किसी को भी इसके बारे में नहीं बताना होगा ।

नहीं तो तुम भी मारे जाओगे और मैं भी ।

" " मित्र ! मुझ पर विश्वास रखो , मैं तुम्हारी बात किसी से भी नहीं कहूंगा ।

" बैल और शेर को एक - दूसरे के विरूद्ध भड़काकर दमनक अपने साथी करटक के पास आ गया ।

" क्या कर आए मित्र ? "

“ अरे यार , अब ही तो मज़ा आएगा जब वे दोनों आपस में लड़ेंगे ।

मैं तो नफरत की आग लगा आया हूं ।

" किसी ने ठीक ही कहा है कि बुरे प्राणी का किसी से कोई रिश्ता नहीं होता ,

बुरे लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए बड़ों को भी पाप में शामिल कर लेते हैं ।

बुरों की सोहबत आग की तरह है जिसमें हर चीज़ जल जाती है ।

अच्छा , मैं अब तमाशा देखने जा रहा हूं । " दमनक वहां से शेर के पास गया और बोला :

" देखो महाराज , वह

पापी आ रहा है , आप तैयार रहिए ।

" शेर ने जैसे ही बैल को अपनी ओर आते देखा , उसकी दुम तन गयी , उसने गरजते हुए अपना मुंह फाड़ा ।

बैल को तो गीदड़ दमनक पहले से ही सब कुछ बता चुका था , उसने शेर की शक्ल देखकर यह अंदाजा लगा लिया कि वह उस पर हमला करेगा ।

वह भी पूरी तरह तैयार हो गया । फिर दोनों में खूब जमकर लड़ाई होने लगी ।

शेर और बैल की लड़ाई का जो अंत होना था , बेचारा मारा गया ।

वही हुआ । बैल

शेर ने जैसे ही मरे हुए बैल को देखा , तो उसे देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गये ।

वह अपने किए पर पश्चात्ताप करने लगा , आखिर बैल उसका जिगरी यार था ।

विद्वानों ने कहा है :

उपजाऊ भूमि का हाथ से निकल जाना , बुद्धिमान् नौकर की हत्या , दोनों ही राजा के लिए मौत समान हैं ।

खोयी हुई ज़मीन तो फिर भी मिल सकती है , किन्तु गुणवान् मित्र दुबारा जीवित नहीं होता ।

दमनक ने शेर को पश्चात्ताप करते देखकर कहा , " महाराज ! आप तो चिंता के सागर में डूब गये ,

केवल इस बैल के लिए ।

हमने सुना है कि : " जो भी प्राणी , चाहे वह सगा भाई ही क्यों न हो , राजा के प्राण लेना चाहे तो उसकी हत्या करना राजा का कर्तव्य है ।

" महराज धर्म , अर्थ , काम के तत्त्वज्ञानी को दयालुता से काम नहीं लेना चाहिए , क्षमाशीलता में रुचि रखने वाले लोग सदा भूखे मरते

हैं ।

" मित्र एवं शत्रु को क्षमा करना योगियों का काम है , “ यदि कोई राजा अपने शत्रुओं को क्षमा करता है तो यह उसके लिए घातक सिद्ध होगा ।

" दयालु राजा , सर्वभक्षी ब्राह्मण , बुरी स्त्री , पापी सहायक , विद्रोही सेवक , अपनी भूल को दुहराने वाला नौकर ऐसे लोगों से सदा दूर रहो ,

इनसे कभी लाभ नहीं हो सकता ।

“ इसलिए महाराज , आपने कोई पाप नहीं किया , अपने शत्रु की हत्या करना राजा का कर्तव्य है ।

जो राजा अपने कर्तव्य का पालन करता है वही बलवान् और सत्यवादी माना जाता है ।

चलिए आप अपनी राजगद्दी पर बैठिए ।

" गीदड़ की बात सुन शेर अपनी राजगद्दी पर बैठ गया , गीदड़ों ने बड़ी चालाकी से अपने शत्रु को मरवा डाला और अपना रास्ता साफ कर लिया ।

राजकुमारों ने गीदड़ों की चतुराई से बहुत आनन्द लेते हुए पंडितजी के मुंह से राजनीति का बहुत बड़ा पाठ पढ़ लिया था ।

“ पंडितजी , इसमें तो हमें बहुत आनन्द आ रहा है ।

कृपया जरा और भी तो सुनाइए । "