युद्ध

हितोपदेश की कहानियां I Hitopadesh Ki Kahaniyan | हितोपदेश कथाएँ

नई कहानी आरंभ करने से पूर्व पंडितजी ने जैसे ही राजकुमारों की ओर झांककर देखा

तो उन्हें ऐसा लगा जैसे वे ऐसी कथाओं से अब ऊब से गये हैं ।

तभी पंडितजी ने पूछाः " हे राजपुत्रो , तुम इन कहानियों से ऊब गये हो क्या ?

" . " हां , पंडितजी ! वास्तव में ही ये कहानियां हम बहुत सुन चुके हैं ।

आपको तो पता ही है कि हम राजकुमार हैं ।

हमें युद्ध के बारे में भी ज्ञान की जरूरत है ।

यदि आप हमें कुछ युद्ध कथाएं सुना दें तो बहुत अच्छा होगा ।

इससे हम युद्धनीति के बारे में भी जान जाएंगे ।

इसके सहारे हम अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेंगे ।

" “ राजपुत्रो , मैं तुम्हारी बात सुनकर बहुत खुश हुआ हूं ।

वास्तव में तुमने वही बात की जो सच्चे राजकुमारों को करनी चाहिए ।

राजपाट का कार्य वही चला सकता है जो युद्ध नीति को समझता हो ।

इसका पहला पाठ यही है कि : " बराबर की ताकत वाले हंसों और मोरों के युद्ध में कौओं ने अपने दुश्मन हंस के घर में रहकर उन्हे धोखे से मरवा डाला ।

बच्चो , राज चलाने के लिए शक्ति से अधिक राजनीति की जरूरत होती है ।

" " ऐसी ही राजनीति हमें बताओ , पंडितजी ।

" दोनों राजकुमार एक साथ बोल उठे ।

“ तो सुनो , राजकुमारो ! "

दूर एक द्वीप में , तालाब में , एक राजहंस रहता था ।

जल के सभी पक्षियों ने मिलकर उसे अपना राजा मान लिया था ,

क्योंकि उस तालाब में पहले से कोई राजा था ही नहीं ।

जब किसी देश में कोई राजा न हो उसकी प्रजा का तो वही हाल होता है जो बिना मल्लाह की नाव का ।

कहते हैं , प्रजा की रक्षा राजा करता है और प्रजा उसे धन से खुश कर देती है ।

यदि कोई राजा अपनी प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता तो उसे राजा बनने का कोई अधिकार नहीं ।

एक बार राजहंस कमल के खिले हुए बड़े फूल पर आनन्द से बैठा था कि किसी दूसरे स्थान का एक बगुला उसके पास आकर बैठ गया ।

उस बगुले ने आते ही पहले राजहंस को प्रणाम किया ।

" अरे भाई ! तुम तो किसी दूसरे देश से आ रहे हो , बोलो वहां के बारे में क्या समाचार लाए हो ?

" राजहंस ने बगुले से पूछा । " राजन् , मेरे पास तो बहुत - से समाचार हैं , वही सुनाने के लिए तो मैं आपके पास आया हूँ ।

" " तो सुनाओ मित्र ! संकोच क्या है ! " " हां महाराज ! सुना रहा हूं । " यह कहकर बगुले ने बताया ,

“ दूर एक पहाड़ पर एक मोर राजा राज करता है , मैं उस पहाड़ पर बड़ी शांति से घूम रहा था कि मोर राजा के नौकरों ने आकर मुझे चारों ओर से घेर लिया ।

' तुम कौन हो ? कहां से आए हो ?

' " मैंने झट से कहा , ' मैं अपने राजा राजहंस का एक नौकर हूं , उन्होंने मुझे दूसरे देश से समाचार लाने के लिए भेजा है । '

CE

' ठीक है , हम तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेते हैं , किन्तु अब तुम यह बताओ कि जिस देश से तुम आए हो ,

उस देश के मुकाबले में हमारा देश अच्छा है या वह देश ? '

"

' अरे आप लोग यह कैसा प्रश्न मुझसे पूछ रहे हैं ।

मैं तो यह समझता हूं कि इस अंतर को तुम भी जानते होगे ।

यह तो सारा संसार जानता है कि हमारा देश धरती का स्वर्ग है ।

राजहंस दूसरे इन्द्र हैं , जिसकी महिमा को बताना इतना सरल नहीं है ।

आप लोग इस पथरीले खुश्क पहाड़ पर बैठे क्या कर रहे हो , ज़रा हमारे देश में चलकर देखो ।

' " मेरा जवाब सुनते ही सब पक्षियों की आंखों में क्रोध के डोरे दौड़ने लगे ।

तभी तो कहते हैं कि जैसे सांप को दूध पिलाना उसका ज़हर बढ़ाना है , वैसे ही मूर्खों को उपदेश देना , अपनी हानि करना है ।

" बुद्धिमानों ने कहा है कि उपदेश समझदार आदमी के लिए ही होता है ।

मूर्ख को उपदेश देना पत्थर पर बूंद डालने के बराबर है ।

ऐसे ही पक्षियों ने बंदर को उपदेश दिया था तो उन्हें अपने बच्चों से हाथ धोने पड़े ।

" यह कहानी में आपको सुनाता हूं ।