बंदरों का तमाशा

नर्मदा नदी के तट पर एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ है ।

उस पेड़ पर हजारों पक्षी अपने घोसलों में आनन्द से रहते थे ।

इन सबमें आपसी प्रेम था ।

एक बार वर्षा के मौसम में बहुत ज़ोर की वर्षा होने लगी ।

इस पेड़ के नीचे कुछ बंदर बैठे थे जो इस वर्षा में बुरी तरह भीग गये थे ।

उन पक्षियों ने जैसे ही इन बंदरों को भीगते देखा , तो उन्हें इन पर दया आ गई ।

उन्होंने इन बंदरों से कहाः " अरे भाई , हम पक्षी चोंच से तिनका - तिनका चुनकर घोंसला बनाते हैं

और उसमें बड़े आराम से रहते हैं ।

और तुम हो कि हाथ - पांव रखते हुए भी कुछ करते नहीं और इतने दुःख झेल रहे हो ।

" पक्षियों की बात सुन बन्दरों ने समझा कि ये लोग वर्षा से बचने के लिए अपने - अपने घोंसलों में छुपे हुए उनका मजाक उड़ा रहे हैं और साथ ही उन्हें मूर्ख भी समझ रहे हैं ।

उनके इस व्यवहार से बंदर अंदर ही अंदर दुखी हुए , साथ ही उनके मन में बदले की भावना भी पैदा हो गई ।

तभी बन्दरों ने दिल ही दिल में कहा , ' कोई बात नहीं , बच्चो , जरा वर्षा रुकने दो , तुमसे भी थोड़ा हिसाब चुकाते हैं ।

' बस फिर क्या था ! जैसे ही वर्षा रुकी , बदले की आग में अंधे हो वे बंदर वृक्ष पर चढ़ गये ।

उन्होंने पक्षियों के घोंसले तोड़ डाले , अंड़े नीचे फेंक दिए ।

यह मिला फल मूर्ख से भलाई करने का ।

“ इसीलिए मैं कहता हूं कि कभी मूर्ख को उपदेश मत दो ।

” बगुला अपनी चोंच साफ करते हुए बोला । “

फिर उन पक्षियों ने तुमसे क्या कहा ?

" राजहंस ने पूछा । “ तभी उन्होंने क्रोध में आकर कहा कि राजहंस को किसने राजा है ?

मैंने भी उसी समय क्रोध में आकर उनसे पूछा , ' तुम्हारे मोर को किसने राजा चुना है ? "

चुना

" बस , फिर क्या था , मेरे इतना कहने पर ही सभी पक्षी मुझे मारने के लिए उठ खड़े हुए ।

तब क्या करता , मैंने भी उन्हें अपनी ताकत दिखा दी ।

" महाराज ! आम हालत में जैसे नारी का जेवर शर्म है , इसी प्रकार पुरुष का जेवर उसकी क्षमा है ,

किन्तु पति के साथ जैसे संभोग के समय नारी अपनी शर्म उतार देती है ,

वैसे ही अपमान के समय पुरुष के लिए दुश्मन के दांत तोड़ना ही अच्छा होता है ।

" हंस महाराज । अपनी और शत्रु की ताकत के अंतर को जो समझे , वह सदा हार का मुंह देखता है ।

एक बात और बता दूं किः " युद्ध में शक्ति से काम लेने की बातें केवल उसे ही शोभा देती हैं , जो बलवान् हो ।

आप अभी नहीं जानते कि प्राणी को अपनी शक्ति से बाहर जाकर कोई काम नहीं करना चाहिए , जैसे बड़े लोगों ने कहा है : पहले बात को तोलो , फिर बोलो ।

" ऐसे ही पहले अपने मुकाबले पर आए शत्रु की शक्ति को देखो फिर निर्णय करो कि तुम्हें क्या करना है ।

अपनी शक्ति को न देखकर एक गधे ने शेर की खाल पहनकर अपनी मौत को बुला लिया था ।

" “ क्या कह रहे हैं बगुले आप ? "

हंस ने आश्चर्य से बगुले के मुंह की ओर देखा ।

" महाराज ! मैं आपको अब उस मूर्ख गधे की कहानी सुनाता हूं । "