मूर्ख गधा

हितोपदेश की कहानियां - मूर्ख गधा

एक गांव में एक धोबी के घर विलास नाम का गधा था ।

वह बेचारा सारी उम्र धोबी का बोझा ढोत - ढोते बूढ़ा हो गया था ।

यहां तक कि बेचारा मरने के नज़दीक पहुंच गया ।

यह दुनिया तो उसी की है जिससे कोई लाभ हो ।

जवानी के ग्राहक सभी हैं , बुढ़ापे में तो स्वयं अपना शरीर भी साथ नहीं देता ।

बस , फिर क्या था , धोबी ने सोचा , अब मैं इस गधे को घर में रखकर मुफ्त का खाना क्यों दूं ! यही सोच उसने गधे को घर से निकाल दिया ।

हां , उसने इस बूढ़े गधे के बचाव के लिए उसके शरीर पर शेर की खाल चढ़ा दी , ताकि कोई साधारण जानवर या इन्सान इसके निकट आकर मार न दे ।

गधा जंगल में चला गया ।

वहां से वह खेतों में जाकर किसानों की फसलें खा अपना पेट भरने लगा ।

किसान लोग जैसे ही देखते कि उनकी फसल खाने वाला तो शेर है , तो वे बेचारे डर के मारे भाग खड़े होते ।

एक बार एक दिलेर किसान ने सोचा कि मैं इस शेर को रात के अंधेरे में छुपकर मारूंगा ।

यह सोच उसने अपना तीर - कमान संभाला और खेत में जा कर बैठ गया ।

गधा भी हराम का माल खा - खाकर पल चुका था ।

अब तो उसे दिन - रात मस्ती ही सूझती थी ।

वह इसी मस्ती में आकर यह भूल गया कि उसने शेर की खाल पहन रखी है , बस लगा ज़ोर - ज़ोर से ' ढींचू - ढींचू ' करने ।

किसान झट से समझ गया कि यह तो शेर की खाल पहने कोई गधा है , जो आज तक हमें पागल बनाता रहा है ।

धत तेरे की ! इतना सोचते ही उस किसान ने सामने आकर गधे के आगे खड़े होकर उस पर तीर दे मारा ।

बस , फिर क्या था , मूर्ख गधा अपनी ही शेखी में आकर मारा गया ।

उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी , मौत ने उसे सदा के लिए सुला दिया ।

" बगुले जी , यह होती है मूर्खता , दूसरे के खाल में रहकर अपनी बोली बोलने की ।

" " हां महाराज , आप ठीक कहते हैं ।

उन पक्षियों ने मुझे फटकारते हुए कहा कि ओ पापी बगुले , तुम हमारी ही धरती पर चरते - खाते हो और हमारे ही राजा की निन्दा करते हो !

हम तुम्हें अब माफ नहीं करेंगे ।

" इतना कहते ही वे सब लगे मुझे चोंचों से मारने और साथ ही कहने लगे , ' सुन रे मुर्ख बगुले ! तुम्हारा वह राजा हंस बड़ा ही कोमल और शक्तिहीन है ,

वह राजा बनने के योग्य ही नहीं है , क्योंकि कोई कमजोर आदमी दूसरों की तो क्या अपनी रक्षा भी नहीं कर सकता ।

ऐसा प्राणी धरती पर क्या राज करेगा ।

उसका राज चलेगा ही क्या ! कुएं के मेढ़क की भांति तुम अपने देश के सिवा कुछ नहीं जानते ।

तुम्हारा ज्ञान कुछ नहीं है ।

अज्ञानी का साथ और मित्रता दोनों ही बुरे होते हैं ।

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' और सुन पागल बगुले , सदा फल और छाया देने वाले पेड़ के ऊपर रहना चाहिए ,

यदि कभी फल न भी मिला तो उसकी छाया काम आ ही जाएगी ।

EC

' बड़े लोगों का कहना है कि छोटी जाति की सेवा में रहने से कुछ नहीं मिलता , सहारा ही लेना है तो किसी बड़े का लो ।

' शराब पिलाने वाला यदि तुम्हे गंगाजल भी पिलाए तो लोग यही समझेंगे कि वह शराब पिला रहा है ।

" ' यह भी सुन लो कि मूर्ख लोगों के साथ रहने से बुद्धिमान् की शक्ति भी जाती रहती है ।

' हाथी का शरीर बेशक कितना भी बड़ा हो , वह शीशे के सामने जाए तो उसके अंदर वह भी छोटा - सा ही नजर आता है ।

' बड़े लोगों को देखना है तो उनके साथ रहो , शेर से मित्रता करके तो बकरी भी जंगल में निडर होकर घूम सकती है ।

विभीषण ने भगवान् राम की शरण ली तो उसे लंका का राज्य मिल गया ।

' ताकतवर आदमी का तो नाम लेने से भी रुके हुए काम बन जाते हैं ।

खरगोश में इतनी ताकत कहां जो हाथी से टक्कर ले सके , लेकिन चांद का नाम लेकर उन्होंने भी हाथियों को सीधा कर दिया

था । '

"" यह कैसे हुआ बगुले जी "

“ महाराज , एक बात मेरी और याद रखना । इस संसार में बुद्धि ही सबसे महान् है ।

बुद्धि से बड़ी शक्ति इस दुनिया में और कोई नहीं हो सकती ।

जिसके पास बुद्धि है वह शक्तिशाली को भी नीचा दिखा सकता है ।

" ऐसे ही थे वे छोटे - से खरगोश जिन्होंने अपनी बुद्धि की शक्ति से हाथियों को हरा दिया ।

" “ बगुले जी , ऐसे बुद्धिमानों की कहानी आप मुझे अवश्य सुनाएं ।

हो सकता है , इस कहानी को सुन मेरे दिल का बोझ कुछ हल्का हो जाए और मुझे प्रेरणा भी मिले । "