खरगोश ने भगाए हाथी

हितोपदेश की कहानियां - खरगोश ने भगाए हाथी

एक बार वर्षा के मौसम में पानी न बरसने से सूखा पड़ गया ।

हाथियों ने अपने राजा के पास जाकर कहा , " महाराज ।

हम तो प्यासे मर रहे हैं , हमारे नहाने का भी कहीं प्रबंध नहीं हो रहा हमारा क्या बनेगा !

क्योंकि आप यह जानते हैं कि पानी के बिना हम जीवित ही नहीं रह सकते ।

" " चिंता मत करो साथियो इस जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब है , वह सदा पानी से भरा रहता है ।

मैं तुम्हें वहीं पर ले चलता हूं ।

तुम आराम से नहाओ , धोओ , पानी पीओ । "

फिर क्या था , हाथी राजा अपने सभी साथियों को लेकर उस तालाब पर पहुंच गया ।

प्यासे हाथी पानी को देखकर पागल से हो

उस तालाब में कूद पड़े ।

उस तालाब के किनारे ही खरगोशों का एक दल रहता था ।

उन बेचारों ने जैसे ही इतने सारे हाथियों को अपने घर के तालाब पर अधिकार जमाते देखा तो वे लोग बड़े चिंतित हुए ।

उसी रात उन लोगों ने एक सभा की ।

अपने दुःखों को एक - दूसरे के सामने रखा तो उनमें से एक बूढ़े खरगोश ने उठकर कहा " देखो साथियों , तुम घबराओ मत ,

मैं कोई न कोई रास्ता अवश्य निकाल लूंगा ।

" बूढ़े खरगोश की बात सुन सभी खरगोशों के मन को कुछ शांति मिली ।

वहां से चलकर वह बूढ़ा खरगोश सोचने लगा कि अब मैं करू तो क्या करूं !

इन हाथियों के सामने में अपनी बात रखूं भी तो कैसे ?

हाथी तो छूने से ही भड़क उठता है ।

राजा की कितनी सेवा कर ले मगर वह जरा - सी भूल पर भी जान लेने के लिए तैयार हो जाता हैं ।

मगर हाथी तो जरा - सा छूने पर भी रौंदने के लिए तैयार हो जाता है ।

भलाई तो इसमें ही लगती है कि मैं उनके राजा के पास जाकर प्यार से बात करूं ।

हो सकता है , शायद इसी भांति कोई रास्ता निकल

आए ।

यही सोचकर बूढ़ा खरगोश हाथी राजा के पास गया ।

" तुम कौन हो , यहां क्यों आए हो ? "

हाथी राजा ने खरगोश को अपने पास आते देख रौब से पूछा ।

" हाथी महाराज ! मैं एक खरगोश हूँ , चांद देवता ने मुझे आपके पास भेजा है । "

" क्यों भेजा है ? " हाथी ने पूछा ।

“ मैं चांद देवता का दूत हूं महाराज , और आप यह तो जानते हैं कि दूत कभी झूठ नहीं बोलता ,

चाहे इसके ऊपर आप हथियारों से हमला ही क्यों न कर दें , इसलिए मैं चांद देवता की ओर से आपके लिए विशेष संदेश लेकर आया हूं । "

" क्या संदेश ? "

" उन्होंने कहा है कि यह तालाब हमारा और हमारे दूत खरगोशों का है इसलिए आप इस तालाब को गंदा न करो और

दूर किसी तालाब पर चले जाओ ।

" “ क्या तुम सच कह रहे हो चन्द्रदूत । "

हाथी राजा ने पूछा ।

" महाराज ! यदि आपको विश्वास नहीं आता तो आज रात को इस तालाब पर आकर चन्द्र देवता को क्रोध से कांपते देख लेना ,

ऐसा न हो कि वे क्रोध में तुम सबका सर्वनाश कर दें ।

इसलिए तुम यथाशीघ्र यहां से चले जाओ ।

" " चन्द्रदूत , यदि ऐसी बात है तो हम आज रात स्वयं अपनी आंखों से देवता को देखेंगे ।

यदि वास्तव में ही इस तालाब में चन्द्र देवता आए तो हम उनसे क्षमा मांगकर यहां से दूर चले जाएंगे ।

" " ठीक है महाराज , आज रात में अपने देवता के साथ ही आपसे उस तालाब पर मिलूंगा ।

" उसी रात , पूर्णिमा थी । चांद आकाश पर पूरे रूप से चमक रहा था ।

खरगोश तालाब के तट पर बैठा हाथी राजा की प्रतीक्षा कर रहा था ।

उसे पता था , पूर्णिमा की रात को इस तालाब में पूरा चांद नजर आता है ।

जैसे ही हाथी राजा वहां पर आया , चांददूत खरगोश ने उसे नमस्कार करते हुए कहाः " आओ महाराज , चांद देवता कब से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं

किन्तु इस समय वह बहुत ही क्रोध में हैं ।

देखो उनका सारा शरीर कैसे कांप रहा है ! " खरगोश ने हाथी को तलाब के अन्दर दिखाते हुए

कहा ।

हाथी ने जैसे ही तालाब के पानी के अन्दर चांद के कांपते बिम्ब को देखा तो वह डर गया ।

तभी उसने अपने सभी साथियों को बुलाकर कहा , " भाइयो , यहां से जितनी जल्दी हो सके निकल चलो ।

देखो हमारे देवता हमसे नाराज हो रहे हैं ।

हम सबको इनसे क्षमा मांगनी चाहिए ।

" इतना कहते ही सभी हाथी वहां से भाग खड़े हुए ।

“ इसीलिए मैं कहता हूं , बड़ों का नाम लेने से ही बुद्धिमान् लोग पूरा - पूरा लाभ उठा लेते हैं ।

तभी मैंने उन पक्षियों को समझाया था कि हमारे राजहंस बड़े ही भले , गुणवान् , प्रतापी , दयालु हैं ।

उन्हें तो तीनों लोकों के पक्षियों का राजा होना चाहिए था ।

फिर तुम हमारे राज्य में क्यों घूम रहे हो ? ' उन पक्षियों ने मुझसे कहा ।

इसी दोष में वे लोग मुझे पकड़कर अपने राजा के पास ले गये ।

उन्होंने जाते ही कहा , ' देखो महाराज ! यह बगुला हमारे ही राज्य घूमकर आपकी बुराई कर रहा है ।

' ' तुम कहां से आए हो और कौन हो ! ' राजा ने मुझसे पूछा ।

" मैंने झट से कहा कि में अपने देश खूनी जंगल के निकट से आया हूं ।

यहीं पर सागर तट पर हमारे राजा हंस रहते हैं ।

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' खूनी जंगल पर तो हमारा राज है । ' मोर राजा बोला । ' नहीं महाराज , आप भूल कर रहे हैं ।

उस जंगल पर , उसके साथ वाले द्वीप पर हमारा ही अधिकार है ।

यदि आपको इस बारे में कुछ कहना है तो आप हमारे महाराज के पास अपना दूत भेजकर ही कहिए । '

" मोर राजा ने अपने दरबारियों से पूछा कि हमारा दूत कौन - सा हो क्योंकि दूत इस तरह का होना चाहिए जो मालिक का वफादार हो , गुणी हो , बहादुर हो ।

दूसरों को भी समझ सकता हो , और ब्राह्मण जैसा तेज बुद्धि का हो । "

तभी कौआ बोला , ' महाराज , आप ठीक कहते हैं ।

मेरे विचार में तो हमें अपना राजदूत किसी ब्राह्मण को ही बनाना चाहिए ।

क्योंकि वह सबसे अधिक वफादार , गुणी , बुद्धिमान् होता है ।

उसे धन - दौलत का भी कोई लालच नहीं होता ।

जिस प्रकार शंकर के गले में जाकर जहर ने अपना नीला रंग नहीं छोड़ा , उसी प्रकार ब्राह्मण अपने सदाचार को कभी भी हाथ से नहीं जाने देता । '

" मोर राजा बोला , “ तब तोता ही सबसे बढ़िया दूत बनकर जा सकता है । "

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' जैसे महाराज की आज्ञा , किन्तु महाराज , यह बगुला दुष्ट मैं इसके साथ नहीं जाऊंगा ।

बड़े लोगों ने कहा है कि पापी के साथ है ।

न तो कहीं जाना चाहिए और न ही उससे मित्रता रखनी चाहिए । मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं । "