एक पेड़ पर एक कौआ और बतख इकट्ठे रहते थे ।
एक बार सभी पक्षी घूमते - फिरते भगवान् गरुड़ के दर्शनों के लिए सागर तट पर पहुंच गये ।
बतख भी अपने साथी कौए के साथ चल पड़ी ।
रास्ते में एक ग्वाला दही का बर्तन उठाए जा रहा था ।
उस दही के बर्तन को देख कौए के मुंह में पानी भर आया ।
फिर क्या था , वह बड़े मजे से उड़ता उड़ता उस दही में चोंचें मारने लगा ।
ग्वाले ने जैसे ही देखा कि उसके दही पर कोई पक्षी चोंचें मार रहा है तभी उसने दही का बर्तन धरती पर रखा और लगा उसकी ओर देखने ।
कौआ तो शैतान चुस्त था , झट से ऊंचा उड़ गया ।
बतख बेचारी कहां इतना ऊंचा उड़ सकती थी ।
बस , ग्वाले के हाथ लग गई और देखते ही देखते ग्वाले ने उस बतख को मार डाला ।
" अब आप ही बताइये महाराज ! बुरे आदमी के साथ जाने से क्या लाभ हो सकता है सिवाय इसके कि अपनी जान को खतरे में डालो ।
" " मैंने कहा , ' भाई तोते ! तुम ऐसी बातें क्यों कर रहे हो , मेरे लिए तो जैसे आपके महाराज वैसे ही तुम ।
क्योंकि तुम इनके दूत हो रही बात बुराई की , मेरी दृष्टि में शुत्र वही है जो मीठी - मीठी बातें करके दोनों ओर
आग भड़काता है तुम्हारी बात बेमौसम के फूल की भांति बुरी है ।
पाप तो तुम्हारी अपनी बातों से टपक रहा है , क्योंकि राजाओं में युद्ध भड़काने की नींव तुमने ही रखी है ।
तुम अपनी बातों से ही राजाओं को आपस में लड़वा देना चाहते हो ।
' यदि तुम बुरा न मानो तो मैं यह कहूंगा कि तुम्हारी बातों से ज़हर टपक रहा है , नफरत की बू आती है , तुम वैसी ही बातें कर रहे हो ,
जैसे बढ़ई की पत्नी ने की थी ।
बढ़ई ने अपने यार के साथ लेटी पत्नी की उन्हीं मीठी - मीठी बातों में आकर उसे भी सिर पर बैठा लिया था ।
' " मेरी बात सुन मोर महाराज ने आश्चर्य से पूछा , ' यह तुम क्या कह रहे हो ? "
" महाराज ! मैं जो कह रहा हूं , उस कहानी को आप भी ध्यान
से सुनिए ।