यह गीदड़ एक जंगल में रहता था ।
एक बार वह जंगल से निकलकर गांव की ओर चला गया ।
यहां पर एक कपड़े रंगने वाले रंगसार का बड़ा हौज में पड़ा था जिसमें नीला रंग घुला हुआ था ।
वह गीदड़ उस होज में गिर पड़ा ।
वहां से निकलने को उस गीदड़ ने बहुत कोशिश की , किंतु निकल न सका ।
बस , रात - भर वह उसी हौज में पड़ा रहा ।
सुबह जैसे ही रंगसाज कपड़े रंगने के लिए आया तो उसने हौज में पड़े गीदड़ को देखा ।
उसने समझा कि यह गीदड़ रंग में गिरकर मर गया है ।
उसने होज को उठा दूर जंगल में गीदड़ समेत फेंक दिया ।
वास्तव में गीदड़ मरा नहीं था , वह तो वैसे ही दम साधे पड़ा था ।
जैसे ही रंगसाज वहां से गया , तो गीदड़ बड़े आराम से उठा और धीरे - धीरे जंगल की ओर चलने लगा ।
चलते चलते उसने अपने शरीर को देखा जो सारे का सारा नीला हो चुका था ।
जैसे वह अपने लोगों में पहुंचा तो उन्होंने नीले रंग के गीदड़ को देखकर बहुत ही हैरानी प्रकट की ।
गीदड़ ने हंसते हुए जंगल के जानवरों से कहा : " देखो भाइयो , मेरा यह लिवास एक राजा होने की निशानी है ।
आज से हम इस जंगल के राजा है , इसलिए आज से यहां के सारे काम मेरी आज्ञा से ही होंगे ।
" जंगल के दूसरे जानवरों और गीदड़ों ने उसके रंग को देखकर यह बात मान ली कि आज से वास्तव में ही हमारा राजा यही गीदड़ होगा ।
सबने मिलकर अपने नये राजा की जय - जयकार बुलाई ।
इस प्रकार गीदड़ रंग के हौज से गिरकर राजा बन गया , और वह अपने को दूसरों से बड़ा समझने लगा ।
उस दिन से ही वह इन सबसे अलग रहने लगा और अपने साथियों पर हुक्म चलाते हुए उनसे घृणा भी करने लगा ।
उसके व्यवहार से दुखी हो बहुत - से गीदड़ उसके राज्य से चले गये ।
उन गीदड़ों को उदास और चिंतित देखकर एक बूढ़े शेर ने उनसे
पूछा
" अरे भाई लोगो , तुम्हें क्या हुआ जो सबके सब इस जंगल को छोड़कर जा रहे हो ?
" “ मामा , तुम्हें क्या बताएं , हम तो उस गीदड़ के दुर्व्यवहार से दुखी होकर ही इस जंगल को छोड़ रहे हैं ।
उस पर नीला रंग क्या चढ़ गया वह तो हमसे नफरत करने लगा है ।
" " यह बात है तो मैं तुम्हें रास्ता बताता हूं उसे नंगा करने का । " "
जल्दी बताओ मामा , हम तो इस समय बहुत दुखी हैं । " सारे गीदड़ बोले । “
देखो मेरे बेटो , तुम सब लोग इक्ट्ठे होकर उसके पास जाओ , जैसे ही शाम हो , जोर - जोर से चिल्लाना शुरू करो - हुवां ... हुवां ... हुवां । "
" तुम्हें इस प्रकार बोलते देख उसके अंदर का पुराना गीदड़ जागेगा ।
वह भी तुम्हारी ही बोली में चिल्लाने लगेगा ।
फिर क्या है , उसका सारा भेद खुल जाएगा ।
जैसे तुम कुत्ते को राज गद्दी पर बैठा दो जूते सूंघने की उसकी आदत नहीं जाएगी ।
" “ बस , इस प्रकार से गीदड़ पहचाना जाएगा । तुम वहां से भाग निकलना ।
वह राजा होने की अकड़ में वहीं पर चौड़ा होकर बैठा रहेगा ।
" गीदड़ों की आवाजें सुनकर जंगल से शेर आएगा और नकली राजा को खा जाएगा ।
" गीदड़ों ने उस बूढ़े शेर मामा की बात मान ली ।
सभी गीदड़ उसी जंगल में वापस चले गये ।
रात के समय उन्होंने वही किया जो शेर ने बताया था ।
आखिर वही हुआ ।
हुवां ... हुवां ... हुवां ... हुवां की आवाजें सुन जंगल से शेर आया ।
बाकी सब गीदड़ पहले ही भाग गये । मगर नकली राजा अकड़कर बैठा रहा । '
बस , फिर क्या था , शेर आया और उसे खा गया ।
" महाराज , यही होता है परिणाम अपनी बिरादरी से अलग होने का ।
" चकवे ने कहानी सुनाकर कहा ।
“ इसीलिए मैं कहता हूं , अपनी बिरादरी को छोड़कर दूसरी बिरादरी के लोगों से दोस्ती मत बढ़ाओ ।
" " मैं तुम्हारी बात मानता हूं मित्र , मिलने आया है वह भी इतनी दूर से है और उसके लिए रहने का स्थान
किन्तु जो हमारे राज्य में हमसे उससे मिलना तो हमारा कर्तव्य देना भी जरूरी है । "
" आपकी जो इच्छा महाराज ! वैसे हमने अपने दिया है , और साथ ही किला भी तैयार हो गया है ,
सुग्गे ( तोते ) को भी बुला लेना चाहिए , आप अपने
गुप्तचरों को भेज इसलिए अब उस सैनिकों के साथ
उससे दूर से ही बात कीजिए ।
आपको याद ही होगा कि चाणक्य ने अपने कपट दूत के हाथों ही नन्द को मरवा डाला था ,
इसलिए आप अपने मंत्रियों के साथ बैठें और उस तोते के साथ दूर से ही बात करें ।
" चकवे ने राजा को समझाया ।
इसी योजना के अंतर्गत , राजहंस ने अपने दरबार में एक सभा बुलाई ,
वहीं पर उस दूत तोते को भी बुला लिया गया ।
राजहंस ने तोते से पूछाः " हां , दूत , तुम क्या कहना चाहते हो ?
" तोते ने अपनी लाल चोंच को खोलते हुए कहा , " देखो महाराज ,
मेरे राजा ने आपको यह सलाह दी है कि यदि आपको अपने जीवन से प्यार है और अपना राज - पाट चाहते हो तो उनके सामने जाकर उनके
अधीन होने की प्रतिज्ञा करके चरणों में झुककर प्रणाम करो ।
नहीं तो वहां से दूर भाग जाओ ।
" कौए ने घूरकर उस तोते की ओर देखा , फिर राजहंस की ओर देखता हुआ बोला ,
“ महाराज , यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं इस तोते को चीरकर रख दूं ।
" " शान्त , शान्त , " चकवे ने उठकर कहा , " याद रखो , वह सभा कोई सभा नहीं होती जिसमें कोई विरोधी न हो ।
वह बुद्धिमान् भी कोई बुद्धिमान नहीं जो धर्म की बात न करे ।
वह धर्म भी कोई धर्म नहीं जो सच्चाई की बात न करे वह सत्य भी सत्य नहीं जो कपट से भरा हो ।
हमारा राजधर्म यह कहता है कि दूत चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो ,
उसकी हत्या पाप है ।
इसका कारण यह है कि राजा सदा दूत के हाथ ही अपना संदेश भिजवाता है और दूत युद्ध में भी झूठी बात नहीं बोलते ।
“ धर्म के अनुसार , राजा दूत के मुंह से अपने मुंह की हर बात कह डालता है ।
अपनी बुराई और शत्रु की बढ़ाई को राजा सहन नहीं कर सकता है ,
परन्तु उसकी उपेक्षा करके दूत अवध्य होने के कारण यह सब कुछ कह डालता है ।
" चकवे की बात सुन राजा और कौआ दोनों ही शांत हो गये ।
तोता भी वहां से चल पड़ा ।
चकवे ने तोते को जाते देखकर उसे अपने
पास बुलाकर कहाः
" देखो मित्र , तुम हमारे मेहमान हो , हमारी किसी बात का बुरा मत मानना ।
आपने दूत का कर्तव्य निभाया , बस इसी की हमें खुशी है ।
" इतना कहकर चकवे ने तोते को विदा किया ।
तोता जैसे ही अपने महाराज के पास पहुंचा तो उसे देखते ही राजा ने पूछा , “ बोलो दूत , क्या समाचार लाए हो राजहंस का ।
" महाराज , समाचार केवल इतना ही है कि आप युद्ध की पूरी तैयारी आरंभ कर दें ।
राजहंस का देश तो धरती का स्वर्ग लगता है ।
ऐसे स्वर्ग को हम न जीतें यह हमारे पक्ष में अच्छी बात नहीं होगी ।
" " ठीक है , हमारे सभी साथियों को इसी समय बुलाया जाए ताकि हम उनकी राय जानकर अपना काम शुरू कर दें ।
" फिर क्या था , थोड़े ही समय में सभी बड़े मंत्री राजा के दरबार में हाजिर हो गये ।
उनके सामने राजा ने कहा , " देखो साथियो , आप सब युद्ध के लिए तैयार हो जाओ ,
अब हमें यह बताओ कि यह युद्ध कैसे लड़ें , क्योंकि युद्ध तो हमें हर हाल में करना ही है
क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि संतोष से बैठने वाला ब्राह्मण , घोड़े में सतोष करने वाला राजा और
शरीफ घराने की नारी की बेशर्मी विनाशकारी होते हैं ।
" एक मंत्री गिद्ध ने उठकर कहा , " महाराज ! जब प्रजा और अधिकारी अनुकुल नहीं तो कभी युद्ध नहीं छेड़ना चाहिए ।
युद्ध तभी छेड़ना चाहिए जब सभी लोग एकमत हों , एक आवाज़ हों , इस युद्ध का तभी महत्त्व है
जब तीन प्रकार के लाभ उसमें हों : ( १ ) भूमि लाभ , ( २ ) मित्र लाभ , के लाभ उसमें हौं : ( १ ) भूमि लाभ , ( 2 ) ( ३ ) धन लाभ ।
" राजा गिद्ध की बात सुनकर बोला , " मंत्री जी , पहले आप मेरी सैनिक शक्ति को देख लें और यह भी देख लें कि वे युद्ध में क्या कर सकते हैं ,
फिर युद्ध की घोषणा कर दें ।
” “ राजन् ! मैं आपकी बात मानता हूं , मगर याद रखें कि जल्दी में यात्रा करना ठीक नहीं ,
क्योंकि जो पागल लोग शुत्र की शक्ति को जाने बिना उसके राज्य में घुस जाते हैं ,
उन्हें तलवार की धार पर अपने सिर कटवाने पड़ते हैं ।
" “ देखो मित्र , इस समय ऐसी बातें करने का अर्थ हमारी युद्ध भावना को ठंडा करना है ।
इन बातों का समय नहीं है ।
अब तो केवल युद्ध के बारे में ही सोचने का समय है ।
" गिद्ध ने उत्तर दिया , " महाराज , मैं भी आपको समय की जरूरत के बारे में ही बता रहा हूं ।
युद्ध में जीत भी तभी होगी जब नीति
के अनुसार काम होगा , शास्त्रों का ज्ञानी होने पर भी यदि राजा सलाह से काम न ले तो उसे कैसे लाभ हो सकता है ?
केवल दवाइयों का नाम लेने से तो बीमारियां ठीक नहीं हो जातीं !
" पहली बात तो यह है कि राजा की हर आज्ञा का पालन होना चाहिए ।
दूसरा जहां - जहां शत्रु के बड़े ठिकाने हों जिन पर से हमला होने का डर हो वहां - वहां पर सेनापतियों को अपनी सेनाओं के साथ मोर्चे संभालने होंगे ।
प्रधान सेनापति बड़े - बड़े वीरों को साथ ले जाकर सबसे आगे बढ़ जाए ।
इन सेनाओं के बीच में स्त्रियां , खजाना और कमजोर लोग रहें ।
इनके चारों ओर घुड़सवार हों ।
उनकी बगल में रथ , फिर हाथी और उनके साथ पैदल सेना की टुकड़ियां हों ।
इनके पीछे - पीछे सेनापति चलें जो मीठी - मीठी बातें करके इन सबका मन बहलाते रहें और इन सबके पीछे राजा को रहना चाहिए ।
" बरसात के मौसम में हाथियों का प्रयोग करें और आम मौसम में घोड़ों को काम में लाना चाहिए ।
पहाड़ी और जंगली रास्ते में राजा को रक्षा का पूरा ख्याल रखना चाहिए ।
" दुश्मन के किले को तोड़ - फोड़ कर और रास्ते की बाधाओं को दूर करते हुए शत्रुओं को मारना चाहिए और
उन्हें निरंतर कष्ट देते रहना चाहिए ।
दुश्मन के क्षेत्र में घुसने से पहले जंगली लोगों को रास्ता बनाने के लिए आगे - आगे भेज देना चाहिए ।
खजाना वहीं पर रहे जहां राजा हो , क्योंकि खजाने से खाली राजा का राजस्व , सैन्य शक्ति समाप्त हो जाते हैं ।
राजा का धर्म है कि वह खुले दिल से लोगों को दान देता रहे ।
दानी राजा के लिए लोग जान देने के लिए तैयार रहते हैं ।
" धन की बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आदमी किसी की नौकरी नहीं करता , बल्कि वह उसके धन का गुलाम होता है ।
बड़ा - छोटा भी इसी धन के हिसाब से बताया जाता है ।
सैनिकों को तालमेल के साथ युद्ध करना चाहिए ।
कमजोर सैनिकों को सदा पीछे रखना चाहिए ।
पैदल सेना को सबसे आगे रखें ।
शत्रु को चारों ओर से घेरना चाहिए ।
उनके अन्न और जल दोनों को दूषित कर देना चाहिए ।
खेतों में खड़ी फसलें जलाकर शत्रु को भूखे मरने पर मजबूर करना चाहिए ।
तालाबों , किलों को तोड़ - फोड़ देना चाहिए ।
सेना में शक्ति की नजर से हाथी ही बड़ा माना जाता है ; एक सूंड , एक दुम , दो दांतों और चार पावों को देखते हुए उसे आठ हथियार वाला वीर माना गया है ।
" घोड़ा भी सेना की प्रमुख शक्ति है क्योंकि उसे युद्ध में चलती - फिरती मैदानी युद्ध में जीत उसी की होती है
जिसके पैदल सेना का काम यह है कि सबसे आगे सैनिकों की रक्षा करे ओर सारे रास्ते शत्रुओं
दीवार कहा जाता है । पास घोड़े अधिक हों होकर लड़े और दूसरे से साफ करते चलें ।
" सेना बेशक थोड़ी ही हो मगर यदि उसमें बहादुर सैनिक हैं तो वे बड़ी से बड़ी बुज़दिल सेना को भी हरा सकते हैं ।
सैनिकों का हौसला बनाए रखने के लिए राजा को पांच बातों का ख्याल रखना चाहिए :
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( १ ) वीर सैनिकों का सम्मान , ( २ ) सेनापति सदा बहादुर , शक्तिशाली , बलवान् हो , ( ३ ) दिए हुए धन को कभी वापस न ले , ( ४ ) सैनिकों को धन देने में कमी टाल - मटोल न करे और ( ५ ) सैनिकों के दुःखों , उनकी आवश्यकताओं का पूरा - पूरा ख्याल रखें ।
" जीत की आशा रखने वाले राजा को चाहिए कि शत्रु पर इस ढंग से वार करे कि उसकी अपनी सेना को कम से कम कष्ट हो ।
अधिक दूरी से आने वाली सेना रास्ते में ही थककर टूट जाती है ।
" दुश्मन को जीतने का सबसे बड़ा तरीका यह है कि उनमें फूट डलवा दो ।
इस प्रकार उनकी एकता शक्ति समाप्त हो जाएगी ।
" शत्रु को हराने के लिए उसके मंत्रियों , राजकुमारों को थोड़ा - बहुत लालच देकर अपने साथ मिला लेने से भी शत्रु की शक्ति आधी रह जाती है ।
ऐसी गुप्त संधि से शत्रु के देश में विद्रोह हो जाते हैं , जिसके कारण उनकी शक्ति आपसी लड़ाई में ही नष्ट हो जाती है ।
" शत्रु जब भी युद्ध में हार जाए तो उसे कभी जीवित नहीं छोड़ना चाहिए ।
उसके सगे - सम्बन्धियों को कैदी बना लेना चाहिए , ताकि राजवंश का सर्वनाश हो जाए ।
और अधिक मैं आपसे क्या कहूं राजन् , यह राजनीति के कुछ सुनहरी असूल हैं , जो युद्ध के लिए अधिक लाभदायक हैं ।
युद्ध में विजय प्राप्त करना और शत्रु की युद्ध शक्ति जड़ से ही उखाड़ देना ,
यही लक्ष्य होना चाहिए राजा का ।
" " वाह - वाह , आपने तो मुझे बहुत कुछ बता दिया है लेकिन में जहां तक समझ पा रहा हूं ,
शास्त्र , विद्या और काम करने में बड़ा अंतर
है । प्रकाश और अंधकार दोनों एक साथ नहीं चल सकते ।
अब जो कुछ भी है , हमें समय की ओर देखते हुए युद्ध का घोषणा कर देनी चाहिए । "
दूसरी ओर ।
राजहंस के गुप्तचरों ने अपने राजा को सूचना दे दी कि शत्रु पूरी तैयारी के साथ हमारे देश की ओर बढ़ रहा है ।
आप अपने किले का पूरा - पूरा ध्यान रखें ।
वहां पर किसी समय भी हमला हो सकता है ।
उनकी बातों से हमें साफ पता चल गया है कि उसने हमारे सारे भेद अपने किसी जासूस को भेजकर पा लिए हैं ।
अपने जासूसों का संदेश सुनकर राजहंस हैरान रह गया कि आखिर उसके राज में शत्रु के जासूस कहां से आए ?
“ महाराज , वह जासूस उस कौए के सिवा और कोई नहीं हो सकता जिसे आप अपना मेहमान समझकर रखे हुए हैं ।
" चकवे ने कहा । " नहीं - नहीं , यह नहीं हो सकता ।
कौए ने तो शुत्र के जासूस को मारना चाहा था , वह तो हमारे देश में बहुत दिनों से रह रहा है ।
उसने तो हमें शत्रु पर हमला करने की सलाह दी थी ।
" " महाराज , आप भोले हैं , इस समय जो अपने देश को छोड़कर हमारे देश में आया है ,
अवश्य ही इसके पीछे कोई कहानी है । " " मंत्री जी ! आप भी यहां पर भूल कर रहे हैं ।
आपको शायद पता नहीं कि शत्रु के देश से आने वाले लोग युद्ध में काफी लाभदायक होते हैं ,
मैंने ऐसे ही एक सेवक की कहानी सुनी है जिसने अपने राजा के लिए अपने बेटे को भी कुर्बान कर दिया था ।
" " क्या आप मुझे उस सेवक की कहानी सुनाएंगे ? "
चकवे ने कहा । " हां ... हां ... क्यों नहीं ? "