लालची नाई

देश के उत्तरी भाग में चूड़ामणि नाम का एक व्यक्ति रहता था ।

वह निर्धन था इसलिए अमीर बनने के लिए भगवान् शिव की पूजा करने लगा ।

एक बार भगवान् शिव उसकी पूजा से खुश हो गये ।

एक रात उस व्यक्ति ने स्वप्न देखा , जिसमें शिवजी उससे कह रहे

थेः

" बेटा , आज तुम बाल कटवाकर एक डंडा हाथ में ले द्वार के पीछे छुप जाना ।

तुम्हारे आंगन में कोई भिखारी आएगा ।

बस , जैसे ही वह भिखारी अंदर आए तुम उसके सिर में डंडा मार देना ।

जैसे ही उसके सिर में डंडा लगेगा , वह सोने का बन जाएगा ।

तुम उस सोने को घर में ले जाकर जीवन भर मज़े से रहना ।

" वह व्यक्ति स्वप्न की बात सुन खुश हो गया ।

उसने जल्दी से जाकर नाई से अपने बाल कटवाये ।

नाई ने बाल काटते - काटते उसे खुश देखकर पूछा कि आखिर इतनी जल्दी बाल कटवाने का क्या कारण है ?

उस आदमी ने रात वाली सारी बात उस नाई को भी बता डाली ।

नाई ने सोचा कि यदि यह आदमी अमीर बन सकता है , वह भी किसी

के सिर पर डंडा मारकर तो भला में कैसे नहीं अमीर बन सकता ?

मैं भी यही करूंगा ।

फिर क्या था , नाई भी एक बड़ा डंडा लेकर द्वार के पीछे छुपा हुआ भिखारी के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।

आखिर एक भिखारी उसके द्वार पर आ ही गया ।

नाई उस पर शिकारी की भांति टूट पड़ा ।

बस , एक ही डंडे में उसे ठंडा करके रख दिया ।

नाई भागा - भागा उसके शव के पास पहुंचा कि यह अभी सोने का बन जाए तो मैं इसे उठा ले जाऊं ।

मगर नसीब के बिना क्या होता है ! भिखारी का शव तो सोने का नहीं हुआ , हां , भिखारी की हत्या के अपराध में नाई को पकड़ लिया गया

और सरे बाजार फांसी पर लटका दिया गया ।

" इसलिए मैं कहता हूं राजन् कि कर्मों से हर एक की डोर बंधी है ।

नसीब के बिना कुछ नहीं मिल सकता , दूसरे की नकल करके हम उसके नसीब नहीं पा सकते ।

" चकवे की कहानी सुन राजहंस ने कहा , “ देखो !

हम पुरानी कहानियों की नींव पर किसी के बारे में कुछ भी निर्णय नहीं कर सकते ।

खैर , अभी इस बात को छोड़कर अपनी रक्षा की ओर ध्यान दो ।

क्योंकि हमारा शत्रु हम पर हमले की पूरी तैयारी कर चुका है ।

" " महाराज , मुझे अपने विशेष जासूस से पता चला है कि उस राजा का मंत्री गिद्ध नाराज होकर वहां से निकल आया है ।

ऐसा राजा युद्ध में कभी सफल नहीं हो सकता जिसका मंत्री युद्ध के दिनों में उसे छोड़

जाए ।

" बड़ों ने कहा हैः

" लालची , कठोर , आलसी , झूठा , असावधान , बुज़दिल , चंचल और अपने साथियों का अपमान करने वाले राजा युद्ध में कभी जीत नहीं

सकते ।

" इसलिए महाराज , ऐसे शत्रु को घेरने के लिए अपनी सेनाओं का जाल चारों ओर फैला दीजिए ।

पहाड़ों , नदियों , नालों , तालाबों के आसपास , शत्रु की सेना को घेरकर मारने के लिए सारस जैसे सेनापतियों को भेज दीजिए ।

" रणनीति यही कहती है कि लम्बे सफर से थके - हारे , नदियों - पहाड़ों - जगलों से डरे हुए , भूखे - प्यासे , आंधी - तूफान से चिंतित ,

डाकुओं से लुटे - पिटे शत्रु के सैनिकों का नाक में दम कर देना चाहिए ।

" राजा को चाहिए कि शुत्र की सेना पर अंधेरे में टूट पड़े , क्योंकि हमले के डर से दुश्मन की सेना सारी रात आंख में निकालकर बुरी तरह टूट चुकी होती है ।

इससे दुश्मन का सफाया बड़ी आसानी से किया जा सकता है ।

" " महामंत्री , तुम ठीक कहते हो , हम तुम्हारी इस योजना से बहुत खुश हुए हैं ।

तुम इसी समय अपने सभी साथियों को बुलाओ ।

" राजा ने अपने सभी सैनिकों को इकट्ठा करके उन्हें शत्रु पर टूट पड़ने के लिए कहा ।

राजहंस की सेना आंधी की भांति अपने शत्रुओं पर टूट पड़ी थी ।

उसके आगे शत्रु की सेना कहां ठहर सकती थी हारते हुए राजा ने दूर खड़े अपने पुराने मंत्री गिद्ध की ओर देखा ।

“ क्यों राजन् , आया मज़ा ! आपने केवल अपनी सैनिक शक्ति को ही देखा था , राजनीति को समझने का यत्न नहीं किया ।

मैंने आपको ठीक सलाह दी तो आपने मुझे बुरा भला कहा , आज हमें उसी भूल का फल मिल रहा है ।

आप यह भूल गये कि नीतिशास्त्र यह कहता है कि : " बुरे मंत्री के कारण किस राजा में नीति सम्बन्धी दोष नहीं आ जाते ?

“ गन्दे भोजन को खाने से कौन बीमारियों से बच सकता है ?

" धन पाकर किसे अकड़ नहीं आती ?

" मौत किसको छोड़ती है ? " औरत की जरूरत किस प्राणी को नहीं पड़ती ? "

इसलिए मैंने पहले से ही जान लिया , राजा हंस बुद्धिमान् है ।

मैं झूठी बातें सुनाकर आपको धोखे में क्यों रखता ? "

महाराज ! जिसके पास अपनी बुद्धि ही न हो , भला शस्त्र उसकी सहायता क्या करेगा !

" शीशे में हर कोई अपनी शक्ल देख लेता है ,

मगर अधे को उसकी तस्वीर कौन दिखाएगा ?

" गिद्ध की जली कटी बातें सुन राजा को होश आया ।

उसने गिद्ध के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा , " देखो साथी ,

मैं अपनी भूल को स्वीकार करता हूँ ।

अब तो मेरी सहायता करो और मुझे इस मौत जैसी हार से बचने का कोई रास्ता बताओ ,

ताकि मैं वहां से बची खुची सेना लेकर भाग सकूं । "

गिद्ध सोच में डूबा हुआ बोला : " अब तो कोई न कोई उपाय करना पड़ेगा , क्योंकिः " देवता , गुरु , गाय , राजा , ब्राह्मण ,

बालक , बूढ़ा और रोगी संकट में हों तो अपनी हार और अपमान भुलाकर क्रोध त्याग देना चाहिए ।

" वह हंसकर बोला : " महाराज , आप चिंता मत कीजिए , मंत्रियों की बुद्धि का तो दुःख के समय ही पता चलता है ।

उसी तरह जैसे भयंकर रोगी को वैध की बुद्धि का दवाई खाकर ही पता चलता है ; वैसे ही जैसे साधारण हालत में ज्ञानी और अज्ञानी का फर्क पता नहीं चल सकता ।

मुख का स्वभाव यहीं से पता चल जाता है कि वे जरा - सा दुःख आने पर ही चिंतित हो जाते हैं ।

आप चिंता न करें , मैं आपकी कृपा से शत्रु का किला तोड़कर आपको बचाऊंगा ।

" " मंत्री जी , इस समय हमारे पास थोड़ी सी सेना बची है , भला इससे हम क्या युद्ध जीत सकते हैं ? " “

सब ठीक होगा , अपनी मनमर्जी का फल तोड़कर खाने के लिए जल्दी से काम किया जाता है ।

अब आप अचानक ही शत्रु के किले

को घेर डालें । "

गिद्ध और राजा की बात सुन राजहंस का जासूस तेजी से अपने राजा की ओर जाने लगा ।

उसने जाते ही राजा को बताया कि बागी मंत्री गिद्ध फिर अपने राजा से जा मिला है ।

अब वे सब मिलकर हमारे किले को घेरने वाले हैं ।

जासूस की बात सुनकर राजहंस चकवे की ओर देखकर पूछने लगाः " अब क्या होगा ? "

चकवा बोला , “ महाराज , हमें अपनी सेना और ताकत की कमजोरियों को पहले से देखना होगा ।

अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए उन्हें इनाम भी देने होंगे ।

" नीतिशास्त्र यह कहता है कि राजा व्यर्थ की चीज़ को भी कीमती समझकर उठा लेता है और अपने खजाने को बेकार उड़ाता है उस राजा के पास लक्ष्मी कभी नहीं रह सकती ।

" यह बात भी कही गई है कि उस राजा को फिजूल खर्च नहीं कहा जा सकता जो आठ अवसरों पर खुला खर्च करता है ।

ये आठ अवसर ये हैं : ( 9 ) कीर्ति के काम में , ( २ ) शादी में , ( ३ ) दुःखों में , ( ४ ) शत्रु के मुकाबले के लिए , ( ५ ) भले कामों के लिए , ( ६ ) मित्रों पर , ( ७ ) प्रिय औरत पर , ( ८ ) गरीब जनता की भलाई के लिए ।

" बस , पागल और बुद्धिमान में इतना ही अंतर होता है ।

" मूर्ख आदमी थोड़े - से लाभ के लिए बचत देखते हुए , अच्छी वस्तुओं को भी खराब कर डालता है ।

आप स्वयं ही सोचें महाराज , कि राज्य कर के डर के मारे कौन अपना माल छोड़ देगा !

" " मंत्री जी , क्या आप समझते हैं कि इस दुःख के समय में इतना अधिक खर्च करना ठीक होगा !

" " तो क्या आप समझते हैं कि लक्ष्मी रखने पर मुसीबत दूर हो जाएगी ? " "

यदि हमारे नसीब ही खराब हो जाएं और हमारा सारा धन भी चला जाए तो ? "

राजा ने मंत्री से पूछा ।

" यदि नसीब ही फूट गये महाराज , तो हमारा यह धन किस काम आएगा !

इस समय धन की रक्षा से पहले देश रक्षा की जरूरत है ।

यदि देश गया तो धन से हमें क्या लाभ ! इसलिए आप कंजूसी छोड़कर खुले दिल से अपने सैनिकों पर खर्च कीजिए खर्च करने से उनका हौसला बढ़ेगा ।

जिस सेना का हौसला ऊंचा हो , वह दिल से , शक्ति से लड़ती है ।

जो सेना तालमेल से , हौसले से लड़ती है उसे कोई नहीं हरा सकता ।

ऐसे हौसले से लड़ने वाली थोड़ी - सी सेना भी शत्रु की बड़ी से बड़ी सेना को हरा सकती है ।

" राजन् , एक बात का और ध्यान रखें ।

जिन लोगों के पास विशेष बुद्धि नहीं होती , जो बने कामों को बिगाड़ देते हैं , उन्हें अपना ही

मतलब पूरा करने का फिक्र रहता है , ऐसे लोगों से तो उनके मित्र भी दूर भागते हैं ,

साधारण आदमी की तो बात ही छोड़ो ।

" एक अच्छे राजा में ये गुण होने जरूरी हैं : " ( १ ) सत्यवादी , ( २ ) बहादुर , ( ३ ) दयालु और ( ४ ) त्यागी ।

जिस राजा के पास ये चारों गुण न हों उसे कोई अच्छा नहीं कहेगा , इसलिए इस युद्ध के समय आप अपने सैनिकों को खूब इनाम दीजिए ,

उनकी पदोन्नति कीजिए ।

ऐसा करने से सैनिकों का साहस बढ़ेगा , वे दिल से आप पर जान देंगे ।

" महाराज ! जो राजा दुःख और सुख में एक जैसा रहता है , जिसे शास्त्रों का ज्ञान होता है ,

जो अपने नौकरों का पूरा ध्यान रखते हुए , उनके दुःख - सुख का साथी होता है उस राजा का खजाना सदा भरपूर रहता है ।

उसकी प्रजा सदा सुखी रहती है ।

" उसी समय कौए ने आकर कहा , “ महाराज , जरा हमारी भी बात सुनने का कष्ट कीजिए ।

" " कहो मित्र , आप क्या कहना चाहते हैं । "

राजहंस ने कौए की ओर देखकर पूछा ।

" देखो महाराज , मैंने बहुत दिनों से आपका नमक खाया है ,

अब जबकि शत्रु हमारे सिर पर आ गया है यदि आप आज्ञा दें तो मैं किले से बाहर निकलकर अपनी शक्ति दिखाऊं ।

" चकवा झट से बोल उठा , " नहीं कौआ जी ! इसकी कोई जरूरत नहीं ।

यदि बाहर निकलकर ही युद्ध करना है तो किले का आसरा लेना ही बेकार है ।

आप शायद यह भूल गये हैं कि पानी के किले से निकलकर घड़ियाल और जंगल के किले से निकले शेर भी गीदड़ की मौत मारे जाते हैं ।

" कौआ इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था ।

चकवे की बात को अनसुनी करते हुए बोला , " देखो महाराज , यह समय बातों में या विवाद में पड़ने का नहीं ,

आप स्वयं चलकर युद्ध की हालत देखिए ।

राजा का तो यह कर्तव्य है कि युद्ध के समय सेना के साथ रहें ,

इससे सेना का हौसला बढ़ता है , जैसे मालिक के साथ होने से कुत्ता भी शेर हो जाता है । "

कौए की बात सुनकर राजा स्वयं किले के द्वार पर गया और अपने सैनिकों के साथ मिलकर युद्ध करने लगा ।

दूसरी ओर ।

शत्रु राजा ने अपने मंत्री गिद्ध को बुलाया और उससे कहा कि अब तो आपको प्रतिज्ञा पूरी करनी चाहिए ।

गिद्ध ने झट से कहा , “ महाराज , शत्रु के किले के गुण और दोष सामने रखकर ही आप आगे बढ़ने की बात सोचिए ।

उस किले को आप अपनी शक्ति से नहीं बुद्धि से जीत सकते हैं ।

इसके लिए हमें यह चार काम करने होंगे : “ ( १ ) किले के अंदर के सैनिकों में फूट डालना । "

( २ ) शत्रु की घेराबंदी शक्तिशाली ढंग से की जाए ।

" ( ३ ) छुप - छुपकर चोरी से हमले किए जाएं । " ( ४ ) फिर दुश्मन पर एक जोरदार हमला किया जाए , जिसका नारा हो मरो या मारो ।

" बस , अब आपको अपना काम शुरू कर देना चाहिए ।

इसमें जरा भी ढील नहीं देनी चाहिए ।

यदि आप जरा - सी भी भूल कर गये तो समझ लो मौत दूर नहीं ।

" गिद्ध की बात सुनकर राजा सोच में जरूर डूबा लेकिन उसने यह निर्णय कर लिया कि मैं सुबह वही करूंगा जो गिद्ध ने कहा है ।

बस , दूसरे दिन सुबह होने से पहले ही किले पर हमला कर दिया गया ।

युद्ध के सभी द्वारों पर ज़ोरदार युद्ध शुरू हो गया ।

कौए ने अपने लिए सबसे अच्छा मौका ताड़ा ।

उसने झट से किले के अंदर आग लगा दी , साथ ही मोर राजा की ओर से शोर उठने

लगाः

" हमने राजहंस का किला जीत लिया ! " " हमने राजहंस का किला जीत लिया ! "

" हम जीत गये ! "

" जीत गये ! "

भयंकर आग को देखकर सभी सैनिक तालाब में घुस गये ,

क्योंकि राजनीति यही कहती है कि आपातकाल में अपनी जान बचाना बहुत जरूरी है ,

जान बचने पर ही कोई दूसरा रास्ता सोचा जा सकता है ।

राजहंस बहुत सुस्त गति का था ।

वह तो बेचारा घिर गया था . उसे घेरने वाला शत्रु का एक मुर्गा था ।

सारस उसकी जान बचाने के लिए आगे आया तो राजहंस ने कहा , “ मित्र , तुम मेरे मरने के पश्चात् मेरे बेटे को राजगद्दी पर बैठा देना ।

पहले तो मैं इन शत्रुओं से बचकर भागने की राह निकालता हूं ।

" " महाराज ! आप ऐसी दुःख भरी बातें क्यों करते हैं ?

हम सब यह चाहते हैं कि जब तक इस धरती पर चांद - सितारे , सूर्य हैं , तब तक आपका राज्य बना रहे ,

आप राज्य करते रहें । आप कभी न हारें ।

आपने मुझे इस किले की रक्षा का काम सौंपा है न ! "

" हां , सारस ! "

" तो फिर आप यह भी जान लीजिए कि जब तक शत्रु मेरे खून कीचड़ को पार नहीं करेगा मैं उसे किले के अन्दर नहीं जाने दूंगा ।

आप मेरे राजा हैं , आप दयालु हैं ।

गुणवान् और दयालु राजा किसी भाग्यशाली सैनिक को ही मिलता है ।

" “ सारस , यह बातों का समय नहीं , शत्रु हमें घेरे हुए है ।

यदि यहां से हम न भार्गे तो हमारी मौत को कोई नहीं रोक सकता ।

" " महाराज ! आप इस बात को भी मत भूलें कि मौत कभी रुक नहीं सकती , यदि यहां से बुज़दिलों की तरह भागकर मरना ही है तो फिर यहीं

पर क्यों न वीरों की मौत मरा जाए ! “ मेरे विचार में तो यह संसार एक सागर है जिसमें समय की गति के अनुसार हम सब लहरों की भांति पैदा होते और मिलते रहते हैं ।

तब मरने से क्यों डरा जाए ? युद्ध में वीरगति प्राप्त करना तो अमर होना है ।

उन्हें शहीदे - वतन कहा जाता है ।

इस देश की धरती हमारी मां है , जननी है , मां की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है ।

" और सुनो महाराज , हर देश के आठ अंग होते हैं : ( १ ) राजा , ( २ ) मंत्री , ( ३ ) देश , ( ४ ) किला , ( ५ ) खज़ाना , ( ६ ) सेना , ( ७ ) मित्र और ( ८ ) प्रजा ।

" इसलिए मैं कहता हूं कि आप सबके स्वामी हैं और आपकी रक्षा पहले होनी चाहिए ।

राजा के बिना प्रजा का भी कोई सम्मान नहीं करता ।

प्रजा का असली जीवन ही उसका राजा है ।

यदि जीवन ही समाप्त हो गया तो रोगों को इस संसार का बड़े से बड़ा हकीम वैद्य भी नहीं बचा सकता ।

" राजा के साथ ही प्रजा जीवित है , यदि राजा न रहे तो प्रजा भी नहीं रहती ।

प्रजा तो उन कमलों की भांति है जो सूर्य रूपी राजा के उदय के साथ - साथ ही खिलने लगते हैं ।

" अभी सारस यह बात कह ही रहा था कि मुर्गे ने उछलकर राजहंस पर अपनी तीखी चोंच से वार किया ।

उसी समय सारस ने उड़ते हुए अपने पर आगे करके मुर्गे के वार को बचाया , साथ ही राजा को पानी में धकेल दिया ।

सारस को कई मुर्गों ने इकट्ठे ही आकर घेरा तो उसने खूब जमकर लड़ाई की ।

उसका सारा शरीर ही मुर्गों के हमलों से लहू - लुहान हो गया ।

मगर उसने भी जवाबी हमले कर बहुत - से मुर्गों को वहीं पर ढेर कर दिया ।

सारस बहुत देर तक लड़ता रहा । लड़ते - लड़ते वह बेचारा शहीद हो गया ।

राजहंस हार गया था । शत्रु की सेना उसके देश में प्रवेश कर गई ।

उन्होंने वहां पर खूब लूट - मार की बेचारा राजहंस पानी में छुप गया था ,

सारस की बहादुरी के चर्चे चारों ओर हो रहे थे ।

उस अकेले सारस ने शत्रु से खूब टक्कर ली ।

अपने राजा की जान बचाने वाला यह बहादुर अपनी जान पर खेल गया ।

तभी तो लोग कहते हैं किः गाएं वैसे तो बैल जैसे कितने ही बच्चे पैदा करती हैं किन्तु ऐसे सांड़ को कोई - कोई गाय जन्म देती है जिसके कन्धों पर युद्ध में सींगों के प्रहार करने के निशान हों ।

" राजकुमार , कहो अब तुम्हें वीरता भरी कहानी सुनकर आनन्द आया ?

" " हां , पंडितजी , हमें वास्तव में ही इस कहानी को सुनकर बहुत ही आनन्द आया है ।

हम राजकुमारों को तो ऐसी कहानियों से शिक्षा मिलती है । "

" हां बेटो , मैं आपकी भावनाओं को भली प्रकार से समझता हूं ।

मेरी यह दिली इच्छा है कि आनन्द सभी को मिले ।

मेरे साथ मिलकर तुम दोनों भी यही प्रार्थना करो कि राजाओं की सेना में कभी फूट न पड़े ।

एकता ही राज्य की सबसे बड़ी शक्ति है ।

" “ पंडितजी , हमने सब प्रकार की कहानियां तो सुन ली हैं ,

अब हमें आप संधि के बारे में कोई ज्ञान भरी कहानियां सुनाइये जिन्हें सुन हम कुछ और सीख सकें ।

" दोनों राजकुमार हाथ जोड़कर बोले ।

“ लो सुनो , मैं तुम्हें अब संधि के बारे में कुछ कहानियां सुनाता हूं । "