हंस और कछुआ

एक तालाब में बहुत दिनों से दो हंस इकट्ठे रहते थे ।

इन दोनों का एक मित्र कछुआ भी इसी तालाब में रहने लगा ।

एक बार एक मछेरा उस तालाब के किनारे आकर कहने लगा : “ कल कम इसी तालाब में से मछलियां और कछुए पकड़ेंगे ।

" शिकारी की आवाज़ सुन कछुआ बेचारा भागा - भागा हंसों के पास गया और बोला , " मित्रो , सुन रहे हो उस शिकारी की बात ?

वह मेरा शिकार करने आया है ।

कहीं ऐसा न हो कि हम सब ही मारे जाएं ।

" हंसों ने कछुए की बात सुनकर कहा , " अरे भाई , क्यों बेकार की चिंता कर रहे हो ,

जब समय आएगा देखा जाएगा ।

" " मित्रो , तुम इस बात को टालकर भूल मत करो , ऐसा करने से बहुत नुकसान होता है ।

बड़े लोगों ने कहा है कि भविष्य की चिंता पहले से ही करनी चाहिए ।

जो समय पर सोच - विचार करके अपने काम निपटा लेता है , ऐसे प्राणी सदा सुखी रहते हैं ।

किन्तु ऐसा प्राणी सदा मरता है जो समय से पहले अपनी रक्षा के प्रबंध नहीं करता ।

" " यह तुम क्या कह रहे हो ? " "

जो मैं कहता हूं उसके प्रमाण के लिए सुनो यह कहानी ।

" यह कहानी सुनाने लगा ।