दुःखों से बचने के लिए बुद्धि चाहिए

पुराने युग की बात है कि विक्रमपुर में एक समुद्रदत्त नाम का बनिया रहता था ।

उसकी पत्नी रत्नप्रभा नौकर के साथ ही प्यार करने लगी थी ।

वास्तव में इस प्यार के पीछे वासना की आग छुपी हुई थी और भला ऐसी स्त्रियों को प्यार से क्या लेना है ।

जैसे जंगल में रहने वाली गाएं हर रोज नई - नई घास चरना पंसद करती हैं ,

वैसे ही दुष्ट स्त्रियां नये - नये लोगों के साथ यौन सम्बन्ध बनाकर वासना की आग ठंडी करती रहती हैं ।

एक बार रत्नप्रभा अपने नौकर के साथ प्यार का नाटक रचा रही थी कि उसके पति ने ऊपर से आकर सब कुछ देख लिया ।

रत्नप्रभा समझ गई कि आज उसकी चोरी पकड़ी गई है ।

उसके पति ने उसे नौकर की बांहों में झूलते हुए देख लिया है ।

वह बड़ी होशियार और चालाक औरत थी ।

उसने झट से नाटक शुरू कर दिया , अपने पति के गले में प्यार से बांहें डालकर कहने लगी : " देखो प्राणनाथ , हमारा यह नौकर भी कैसा है ,

जरा - सी मेरे कपड़ों पर धूल पड़ी , बस फिर क्या था , लगा कहने , ' मालकिन , लाओ में

आपके कपड़ों को साफ कर दूं ।

देखो न यदि कोई हमारे घर में आकर आपके कपड़ों पर जमी धूल को देख लेगा तो यही कहेगा कि सेठजी कितने बुरे हैं जो अपनी पत्नी का इतना भी ख्याल नहीं करते ।

मैं भला अपने सेठजी की बदनामी कैसे सहन कर सकता हूं ।

" " इतना कहकर लगा मेरे कपड़े साफ करने ।

इधर मेरा पांव फिसला तो मैं झट से उसकी बांहों में जा गिरी , यदि यह नौकर मुझे न संभालता तो शायद मेरी हड्डी - पसली टूट जाती , कितना वफादार है यह नौकर बेचारा !

" पत्नी की बात सुन पति को विश्वास हो गया कि उसने अपनी पत्नी पर बेकार ही संदेह किया था ।

यह रत्नप्रभा तो उस पर जान देती है ।

देखो न , अब मुझसे ऐसे प्यार कर रही है जैसे वर्षों के पश्चात् आज मिली हो ।

वह अपनी पत्नी से कहने लगा : " वास्तव में ही हमारा यह सेवक बहुत अच्छा है ।

आज यदि यह न होता तो तुम्हारी हड्डी पसली अवश्य टूट जाती ।

फिर भला मुझे ऐसा प्यार कौन देता ?

" औरत की चाल सफल हो गई ।

एक तीर से उसने दो शिकार कर लिए ।

बनिया भी खुश और नौकर भी ।

“ इसे कहते हैं मुसीबत के समय बुद्धि का प्रयोग करके बचना ।

इसीलिए मैं कहता हूं कि जो होना नहीं है वह होगा भी नहीं , और जो होने वाला है वह होकर रहेगा ।

यही सोचकर ही प्राणी चिंता के ज़हर से बच सकता है ।

तुम लोग भी यही रास्ता क्यों नहीं अपनाते जब सुबह हुई तो दूसरा मच्छ जाल में फंसा , मुर्दे की तरह पड़ा था ।

मछेरे ने उसे जाल से निकालकर दूर फेंक दिया ।

साथ ही गाली दी , " मर गया साला ! " बस , उसी समय मच्छ ने छलांग लगाई और तालाब के गहरे पानी में जा छुपा ।

तीसरा मच्छ , जो मछेरे के हाथ जिंदा ही लग गया था , उसे मछेरे ने गला दबाकर अपना शिकार बना लिया ।

" इसीलिए मैं कहता हूं कि भविष्य की चिंता पहले से ही कर लो ।

कोई ऐसा उपाय करो कि मैं दूसरे तालाब में पहुंच सकूं ।

" हंस बोले , " दूसरे तालाब में पहुंचकर तुम बच तो सकते हो , लेकिन रास्ते में तुम कैसे बच पाओगे ? "

" तो महाराज आप कोई उपाय सोचो कि मैं भी आपके साथ ही उड़ता हुआ तालाब तक पहुंच जाऊं । "

" ऐसा कौन - सा उपाय हो सकता है ? "

हंस ने पूछा ' " देखो भाई , तुम दोनों एक लकड़ी का टुकड़ा ले आकर उसे अपनी चोंचों में पकड़ लो में उस लकड़ी के बीचोंबीच लटक जाऊंगा ,

इस प्रकार मैं तुम्हारे सहारे उड़ता हुआ अपनी मंजिल तक पहुंच जाऊंगा ।

" " कछुए भाई , ऐसा हो तो सकता है , मगर समझदार प्राणी का यह फर्ज है कि

किसी भी उपाय को सोचने से पहले उसका नफा - नुकसान अवश्य सोच ले कहीं उस मूर्ख बगुले की भांति अपने बच्चों को भी न गंवा बैठना ,

जो सांप के बच्चों को मरवाना चाहता था ।

मैं तुम्हें उसी की कहानी सुनाता हूँ । "