व्यर्थ की दया मत करो

गौतम नाम के साधु के तपोवन में एक महात्मा नाम का साधु रहता था ।

एक बार उसने कौए के मुंह से गिरा एक चूहा देखा ।

वह बेचारा धरती पर गिरा तड़प रहा था ।

साधु का मन उसे तड़पते देख पिघल गया ।

उसे चूहे की यह हालत देखकर दया आ गई ।

उसने उस चूहे को उठाकर उसे पाल लिया ।

साधु के पास खाने - पीने की क्या कमी थी ।

बस , चूहा मौज उड़ाने लगा और कुछ दिनों में ही मोटा - ताजा हो गया ।

एक बार एक जंगली बिलाव उस चूहे के पीछे पड़ गया ।

चूहा डर के मारे भागता हुआ , साधु की गोद में आ छुपा ।

साधु ने चूहे को इस प्रकार डरे देखा तो उसकी हालत पर उसे तरस आ गया और झट से बोला : "

तुम मेरे चूहे हो , तुम्हें यदि बिलाव से डर लगता है ,

तो में आज से अपनी शक्ति द्वारा तुम्हें बिलाव ही बना देता हूं । "

चूहा बिलाव बनकर जंगल में घूमने लगा तो एक बार उसके पीछे एक कुत्ता पड़ गया ।

वह कुत्ते से डरकर भागा तो साधु ने उसे विलाब से कुत्ता बना डाला ।

एक बार उस कुत्ते के पीछे शेर पड़ गया , तो साधु ने क्रोध में आकर उसे कुत्ते से शेर बना डाला ,

और पश्चात् इस जंगल में कोई तुझे तंग नहीं राजा है । "

बस ,

बोला , " जा बेटा , आज के करेगा ।

तू तो जंगल का

फिर क्या था ।

चूहा शेर बनकर जंगल में घूमने लगा ।

लेकिन जंगल के सभी पक्षी जानवर यह जानते थे कि उस तपस्वी साधु ने ही इस चूहे को शेर बनाया है ।

सबके सब उसे देखकर यही कहने लगते , " ओ चूहे की औलाद , तू उस साधु की कृपा से ही शेर बना है । "

चूहा उन सबकी बातें सुनकर बहुत चिंतित हो जाता , आखिर एक दिन दुःखी होकर उसने सोचा कि जब तक यह साधु जीवित रहेगा ,

लोग उसे चूहे की औलाद डी कहेंगे इसलिए मैं सबसे पहले क्यों न उस साधु की ही हत्या कर डालूं ?

न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।

यह सोच चूहा , जो शेर बना हुआ था , साधु पर टूट पड़ा ।

साधु को तो पहले से ही उसकी नीयत का पता चल गया था ।

उसने अपने पर हमला करने से पहले ही उसे कहाः " जा दुष्ट , तू अब फिर से चूहा बन जा तू शेर बनने के योग्य नहीं है ।

तू पापी है , दुष्ट है ।

" इस प्रकार एक बार फिर से वह चूहा बन गया । "

ऐसे ही एक बगुले की कहानी मैं आपको और सुनाता हूं । "