ढोल की पोल
घने जंगलों में एक तालाब था । वहां पर एक बूढ़ा बगुला रहता था ।
उसके पास अब इतनी शक्ति नहीं रही थी कि अपना शिकार करके पेट भर लेता ।
एक दिन एक केकड़े ने उस बगुले को उदास पड़े देखा तो झट से पूछा ,
“ अरे भाई , आप ऐसे उदास क्यों पड़े हो ? क्यों नहीं किसी
शिकार की तलाश में
जाते ? "
" भाई केकड़े ! तुम तो जानते हो , मेरा शिकार मछली है ।
मैंने सुना है ।
किसी सुबह बहुत सारे मछेरे आकर इन मछलियों का शिकार करेंगे ।
तुम जानते हो जब सारी मछलियां यहां से चली जाएंगी तो मुझे भूखे ही तो मरना पड़ेगा ! इसलिए भाई , मैंने आज से ही मछली खाना छोड़
दिया है । "
मछलियों ने सोचा , इस समय तो यह हमारे हित की बात कर रहा है ।
इसलिए अब इसको ही अपना दुःख - सुख का साथी बनाते हुए इसकी राय ही लें कि कैसे इस मुसीबत से छुटकारा पाया जाए ।
बड़ों ने कहा है कि दुःख के समय दुश्मनों से भी मित्रता कर लेना चाहिए ।
दोस्त और दुश्मन की पहचान तो दुःख के समय ही होती है ! मछलियों ने झट से कहा ,
" अरे भाई बगुले ! हमें इतना तो बता दो कि हम अपना जीवन कैसे बचाएं ?
" " देखो , इस समय इस मौत से बचने का एक ही रास्ता है ।
वह हैं इस तालाब को छोड़ भागकर किसी दूसरे तालाब में छिपना ।
मैं जानता हूं कि यह काम तुम्हारे लिए बहुत कठिन है , मित्र हूं , यह सारा काम में कर दूंगा ।
मैं तुम सबको एक एक करके मगर मैं आपका अपनी पीठ पर लादकर दूसरे तालाब तक पहुंचा दूंगा ।
" " ठीक है भैया , आप ऐसा ही कर दो । कभी नहीं भूलेंगे । ” मौत के डर से सहमी
हम आपका यह एहसान मछलियां बोलीं ।
तब वह पापी बगुला एक - एक करके उन मछलियों को दूसरे तालाब में ले जाने के बहाने ले जाता और दूर जाकर खा जाता ।
एक बार केकड़ा बोला , “ भाई बगुले ! तुम मुझे भी तो ले चलो । "
बगुले ने कभी केकड़े को खाया नहीं था , इस बार उसने सोचा , चलो मुंह का जायका बदलने के लिए केकड़े को ही खाकर देखो ।
रोज़ - रोज़ मछली खाने से भी दिल भर गया है ।
बस , फिर क्या था , पापी बगुला केकड़े को भी ले उड़ा ।
जैसे ही एक स्थान पर केकड़े ने मछलियों की हड्डियां पड़ी देखीं तो वह इस बगुले के पापों की सारी कहानी समझ गया ।
उसे तो अब अपनी मौत साफ नजर आ रही थी ।
अब तो वह सोच रहा था कि अपनी जान कैसे बचाई जाए ।
अचानक ही उसे नीतिशास्त्र का वचन याद आया कि उस समय तक नहीं डरना चाहिए , जब तक डर सामने आ न जाए ।
बहादुरों का कहना है कि शत्रु के हमला करने पर जब बच निकलने का कोई रास्ता न रहे तो फिर तुम्हारे सामने एक ही रास्ता है कि " करो या मरो । "
शत्रु पर टूट पड़ो , मौत तो वैसे भी आनी है और ऐसे भी , फिर क्यों न बहादुरों की मौत मर शहीदों में नाम लिखवाया जाए !
यह सोचते हुए केकड़े ने अपना दांव मारा और बगुले की गर्दन पर इतने जोर से काटा कि उसे सांस लेने का भी मौका नहीं दिया ।
बस , फिर क्या था , पापी बगुला मर गया ।
गिद्ध ने हंसकर कहा कि कहीं ऐसा न हो कि उस लालची बगुले की भांति आप भी मार खा जाओ ।
मोर राजा बोला , " देखो मंत्रीजी , यदि कौआ उस देश में जाकर राज करेगा तो हमारे लिए खाने की अच्छी - अच्छी चीजें भेजा करेगा ,
जिन्हें खाकर हम नये - नये मज़ेदार जायकों का आनन्द लिया करेंगे ।
" " महाराज ! जो आदमी भविष्य में झूठे सपनों में खोकर अपने मन को खुश करता है
उसका हाल भी उस लालची ब्राह्मण जैसा होता है जिसने भंडा फोड़ा था , मैं आपको उसी की कहानी सुनाता हूं । "