बुरे दिन पूछकर नहीं आते

पुराने ज़माने में दो राजकुमार थे ।

दोनों ही सगे भाई थे ।

दोनों ने एक दिन सोचा कि क्यों न हम सारे संसार को जीतकर दुनिया - भर के बहादुर बन जाएं !

दूसरा भाई ज़रा समझदार था ।

वह बोला , “ इस काम के लिए तो बहुत शक्ति की जरूरत है ।

वह शक्ति भगवान् शिव की पूजा करने से वरदान के रूप में ही मिल सकती है ।

तो ठीक है भाई , हम पहाड़ पर चलकर भगवान् शिव के चरणों में पूजा करते हुए , उनसे ऐसा वरदान मांगते हैं । "

यह सोचकर दोनों राजकुमार कैलाश पर्वत पर गये और शिव की पूजा करने लगे ।

भगवान्

भगवान् शिव उनकी पूजा से बहुत खुश हुए और बोले , " मेरे प्रिय बच्चों , आप लोगों की तपस्या से में बहुत खुश हुआ हूं ।

आप जो कुछ भी मांगोगे , मैं वही दूंगा ।

" दोनों भाई खुश होकर नाचने लगे ।

वे दोनों खुशी में पागल होकर यह भूल गये थे कि हमें मांगना क्या है ,

इसलिए तो उन्होंने झट से कह दिया : " भगवान् शिव हमें अपनी प्यारी पत्नी पार्वती दे दो ।

" भगवान् शिव को उनकी बात सुनकर बहुत क्रोध आया किन्तु दिए वरदान के वचन को सामने रखकर चुप हो गये ,

और चुपचाप अपनी पत्नी को उन राजकुमारों के हवाले कर दिया ।

दोनों राजकुमारों ने इतनी सुन्दर नारी को अपने पास देखा तो पागल से हो गये और वह अपनी प्रतिज्ञा भी भूल गये कि वे तो विश्व विजेता बनना चाहते थे ।

वे यह भी भूल गये कि ये शिव जी महाराज की पत्नी जगत् माता पार्वती हैं ।

माया - मोह में अंधे होकर दोनों राजकुमार पार्वती को अपनी - अपनी बनाना चाहते थे ।

इसी बात पर दोनों में झगड़ा होने लगा ।

बात बढ़ते - बढ़ते इतनी बढ़ी कि फैसला करने वाले के लिए उन्हें तीसरे आदमी की जरूरत पड़ी ।

जब वे दोनों अपना फैसला करवाने के लिए तीसरे व्यक्ति के पास पहुंचे तो उसने उन दोनों की बात को बड़े ध्यान से सुना और फिर कहा कि " देखो !

भाई तुम दोनों राजपुत्र हो , राजपुत्रों का हर फैसला तलवार की शक्ति से हो सकता है ।

इसलिए तुम आपस में पहले युद्ध करो ।

जो तुममें से जीतेगा उसी की शादी पार्वती से होगी ।

" बस फिर क्या था , दोनों भाई एक - दूसरे पर टूट पड़े , देखते ही देखते वे दोनों ही एक - दूसरे के हाथों से मारे गये ।

" महाराज ! मैं इसीलिए आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप युद्ध की ओर ध्यान न देकर दुश्मन के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाइये ।

" " गिलजी ! आपने पहले यह बात क्यों नहीं कही । "

“ महाराज , पहले आपने मेरी पूरी बात सुनी ही कब थी ! उस समय भी यह युद्ध आपने मेरी सलाह से नहीं लड़ा था ।

मेरे विचार में तो . इस राजहंस के पास बहुत ही ज्ञान है , इसलिए उससे युद्ध करना बड़ी भूल थी ।

ज्ञान की बात तो यह है कि सात प्रकार से सदा मित्रता रखनी चाहिए : " ( १ ) सत्यवादी , ( २ ) धर्म का पालन करने वाले , ( ३ ) धर्म प्रचारक , ( ४ ) बन्धु - बांधवों वाले , ( ५ ) शक्तिशाली , ( ६ ) दयालु , ( ७ ) कई युद्धों में विजय प्राप्त करने वाले ।

" इसका कारण यह है कि सदा सच बोलने वाला राजा अपनी ज़बान का पक्का होता है ।

इसी तरह धर्म का पालन करने वाले राजा की जान भी यदि खतरे में पड़ जाए तो वह धोखा नहीं करता ।

धर्म प्रचारक राजा सदा धर्म पर कायम रहता है , युद्ध में अवश्य विजयी होते हैं ।

इसी प्रकार से सभी गुणों वाले राजाओं से मित्रता का लाभ होता है ।

" महाराज , किसी ज्ञानी ने यह नहीं कहा कि अपने से ताकतवर राजा से युद्ध करो ।

बादल भी हवा के विपरीत नहीं चल सकते ।

" " मैं आपकी यह बात मानते हुए , साथ ही यह बात भी जानना चाहता हूं कि किन राजा लोगों से मित्रता एवं संधि नहीं करनी क किन राजा लोगों से मित्रता एवं सहि चाहिए ।

" गिद्ध बोला , “ महाराज ये बातें में आपको बताता हूं : " इन राजाओं से कभी संधि मत करोः ( १ ) बालक , ( २ ) वृद्ध , ( ३ ) पुराना रोगी , ( ४ )

जाति समुदाय से निकाला गया , ( ५ ) कायर , ( ६ ) बुजदिल , ( ७ ) लालची , ( ८ ) जिसके सारे कर्मचारी उससे नाराज़ हो रहे हों , ( ९ ) जो ज़बान का पक्का न हो , ( १० ) देवताओं और ब्राह्मणों की बुराई करने वाला , ( ११ ) बुरे स्थानों पर जाने वाला , ( १२ ) जिसके बहुत - से शत्रु हों ,

( १३ ) जो समय पर काम न करे और ( १४ ) जो धर्म से दूर रहे ।

" शास्त्र यह कहते हैं कि राजाओं के साथ दोस्ती करने की बजाए ,

इनके साथ युद्ध करके इन्हें राज - पाट से वंचित कर उनकी प्रजा को दुखों से छुटकारा दिलाना चाहिए ।

" इसका कारण भी सुन लीजिए महाराज ,

राजा यदि बालक हो तो मंत्री या अधिकारी एवं प्रजा पर उसका कोई प्रभाव नहीं होता ।

उसका यह फल होता है कि न तो उसके लिए कोई अपना जीवन कुर्बान करता है ,

और न ही बालक राजा में युद्ध और शांति के भेद समझने की शक्ति होती है ।

" बूढ़े और रोगी राजा में हथियार उठाने की शक्ति ही नहीं होती , ऐसे राजा को हराने में कोई समय नहीं लगता ।

जो राजा अपने भाई - बन्धुओं से अलग हो चुका हो , दुःख के समय उसका कौन होगा ?

" बुज़दिल राजा युद्ध में ठहर ही नहीं सकता ।

वह तो अपने - आप मारा जाता है ।

यदि उसके सैनिक और रक्षा मंत्री डरपोक हों तो वे भी उसे युद्ध में अकेला छोड़कर भाग जाते हैं ।

" लालची राजा , अपनी प्रजा और सेना को लूटकर अपना खज़ाना- भरने लगता है ,

इसलिए युद्ध के समय कोई भी उसका साथ देने को तैयार नहीं होता ।

" जिस राजा से उसके अधिकारी एवं कर्मचारी नाराज रहें उसका पतन दूर नहीं होता ।

" इस प्रकार से मैंने आपको दोनों प्रकार के राजाओं के गुण और दोष बता दिए हैं और इसके

साथ मैं आपको राजनीति के गुण भी बताता हूं : " ( १ ) सन्धि , ( २ ) संग्राम , ( ३ ) दबाव डाले रखना ,

( ४ ) अपने से शक्तिशाली से मित्रता और उसका सहारा पाए रखना और ( ५ ) दोरंगी

चाल ।

“ मंत्रणा के पांच अंग होते हैं : " काम शुरू कैसे किया जाए , " मददगारों और धन का संग्रह कैसे किया जाए ,

" जो आदमी जिस समय जहां पर भी उपयोगी हो , उसे वही काम दिया जाए ।

" मुसीबत के समय बचने के उपाय सोचता रहे और सफलता के मार्ग की तलाश करता रहे ।

" शत्रु को चार तरह से काबू में लाया जा सकता है : साम , भेद , दंड से ।

दाम , " सरकार की तीन शक्तियां होती हैं : उत्साह , विचार विनिमय , प्रभुता ।

इन्हीं चीजों का सहारा लेकर बड़े लोग दुश्मन को हराने का प्रयत्न करते हैं ।

" जो लक्ष्मी प्राणों की बलि लेकर भी प्राप्त नहीं होती , वह नीतिशास्त्र की शक्ति से अपने - आप खिंची चली आती है ।

" वह राजा महान् और शक्तिशाली होता है जो अपने नौकरों को हर तरह से खुश रखता है ,

जिसकी गुप्तचर शक्ति सबसे अधिक हो , जिसके भेद बाहर न निकलें , जो किसी के साथ भी कड़वा न बोले ।

" इसीलिए अब हमें जो कुछ भी करना है , बहुत सोच समझकर ।

सर्वप्रथम तो हमें शत्रु के पास संधि का प्रस्ताव यथाशीघ्र भेज देना चाहिए ।

" . " गिद्धजी , हम आपकी सब बातों से सहमत हैं और हम हुक्म देते हैं कि राजहंस के पास संधि संदेश किसी भी राजदूत के हाथ भेज देना चाहिए ।

" " मैं अभी अपना दूत राजहंस के पास भेज रहा हूं । " गिद्ध ने नम्रता से कहा ।

जैसे ही संधि का संदेश लेकर गिद्ध का आदमी राजहंस के पास पहुंचा तो उसने अपने सब अधिकारियों को बुलाकर उनसे इस विषय में विचार - विमर्श किया ।

मंत्री ने अपने राजा की बात सुनकर कहाः " देखो महाराज , भले ही गिद्ध मंत्री ने हमारे सामने अपने राजा की ओर से संधि का प्रस्ताव रखा है ,

मगर मोर राजा अपनी जीत की खुशी में इतना अंधा हो गया है कि उसे अपने पराये की पहचान नहीं रही ,

इसलिए आप सिंहलद्वीप के महाबली सारस को उसके विरुद्ध भड़का दीजिए ।

वह सारस हमारा पुराना मित्र है ।

" महाराज , नीतिशास्त्र यही कहता है कि जिस दुश्मन को जीतना हो उसके विरुद्ध अधिक से अधिक लोगों को भड़का दीजिए ,

और साथ ही अपनी सेना को नए सिरे से इकट्ठी करके उसमें नया जोश पैदा करें ।

इस प्रकार से शत्रु को कमजोर करें । वही शत्रु संधि पर मजबूर

होगा । " " मंत्रीजी , हम आपकी इस राय को मानते हैं ।

आप इसी समय अपने विशेष दूत को हमारे सिंहल द्वीप के मित्र राजा सारस के पास

भेजो । "

मोर राजा का दूत जैसे ही बापस आया , उसने अपने महाराज को शत्रु पक्ष की पूरी बात बताई ,

तो गिद्ध ने चिंतित होकर अपने राजा की ओर देखकर कहाः “ देखो महाराज , यदि आपको राजहंस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करनी है

तो अपने सबसे बड़े जासूस कौए को बुलाकर उससे पूछिए क्योंकि वह बहुत लम्बे समय तक शत्रु के देश में रहकर आया

है । "

" ठीक है , कौए को इसी समय हमारे सामने हाज़िर करो । "

राजा ने उसी समय आदेश दे दिए ।

थोड़ी देर में ही कौआ राजा के सामने हाज़िर हो गया था ।

" क्यों काकराज , तुमने राजहंस के पास रहकर क्या देखा , जरा विस्तार से हमें बताओ । "

" महाराज ! विश्वास दिलाकर धोखा देना कोई बड़ी बात नहीं है ।

गोद में सुलाकर किसी का सिर काट लेना बहादुरी नहीं ।

" महाराज , उस मंत्री ने तो मुझे देखते ही पहचान लिया था , मगर राजहंस बड़ा दयालु और विशाल हृदय राजा सिद्ध हुआ ।

उस बेचारे ने तो मुझ जैसे पापी को भी प्यार दिया और गले से लगाया ।

मैं समझता हूं , उस जैसा महान् और भला राजा इस धरती पर नहीं है ।

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह संसार भले लोगों का नहीं ; शरीफ , सच्चे ,

भले लोग ही हेरा - फेरी वाले , चालाक , धोखेबाज़ , बेईमान लोगों के हाथों से ठगे जाते हैं ।

वास्तव में सीधे - सादे लोग कई बार बिना कारण ही मारे जाते हैं ।

" " वह कैसे ? " राजा ने कौए से पूछा । "

लो राजन् , सुनो उस नेवले की कहानी । "