क्रोध का फल

दूर किसी गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था ।

एक दिन उसकी पत्नी नहाने के लिए गई तो अपने पति को पुत्र की रक्षा के लिए बिठा गई ।

इसी बीच राजा के आदमी ने आकर कहा कि हे ब्राह्मण , महाराज आपको दान देने के लिए बुला रहे हैं ।

ब्राह्मण राजा की आज्ञा को भी कैसे टाल सकता था , फिर राजा को तो उसे दान ही देना था ,

यदि वह न गया तो उसके स्थान पर कोई दूसरा ब्राह्मण आकर दान ले जाएगा ।

इधर उसका बच्चा अकेला पड़ा था ।

फिर उसे अपने पाले हुए नेवले का ख्याल आया ।

" हां , मैं अपने बेटे की रक्षा के लिए इस पालतू नेवले को कह जाता हूं ।

इसी बीच में दान लेकर आ लूंगा । "

गया ।

यह कहकर नेवले को बच्चे के पास छोड़कर ब्राह्मण वहां से चला

ब्राह्मण के जाते ही एक काला सांप उस बच्चे को डसने के लिए आगे बढ़ने ही लगा था कि नेवले ने झट से उस पर हमला कर दिया ।

फिर क्या था , देखते ही देखते नेवले ने सांप को लहू - लुहान करके फेंक दिया ।

इस लड़ाई में नेवले का सारा शरीर भी खून से लथपथ हो गया ।

ब्राह्मण जब राजदरबार से दान लेकर आया और उसने जैसे ही नेवले को खून से लथपथ देखा ,

तो यह समझा कि इस खूनी नेवले ने उसके बच्चे को खा लिया है ।

क्रोध में अंधे हो उस ब्राह्मण न लाठी उठाई और अपने ही पाले नेवले की हत्या कर दी ।

नेवले की हत्या करने के पश्चात् जैसे ही ब्राह्मण अंदर गया तो उसका बेटा बड़े आराम से सो रहा था ।

उसके पास ही मरे हुए काले सांप के टुकड़े पड़े थे ।

अब ब्राह्मण की समझ में सारी बात आई कि उस नेवले ने मेरे बच्चे को बचाने के लिए उस सांप का खून किया ,

और मैं पापी ने क्रोध की आग में अंधे होकर उसे ही मार डाला ।

मगर अब पछताने से हो क्या सकता था ! “ इसलिए मैं आपसे कहता हूं कि बिना सोचे - समझे क्रोध में आने से नुकसान ही होता है । राजा को चाहिए कि इन छः चीजों को अपने शत्रु समझकर छोड़ दे

" ( १ ) रात - दिन औरतों का ख्याल , " ( २ ) बिना सोचे - समझे गुस्से में आना , " ( ३ ) नश्वर चीजों का अधिक लोभ , " ( ४ ) झूठी मोह - माया , " ( ५ ) सम्मान की भूख , " ( ६ ) व्यर्थ का अभिमान । "

" मंत्री जी , क्या आप भी इसके विचारों से सहमत हैं ? " राजा गिद्ध

ने पूछा ।

" जी हां , महाराज , किसी भी काम को बिना सोचे - समझे करने से सदा नुकसान होता है ।

धैर्य सफलता की पहली मंजिल है ।

" " मगर मंत्रीजी , हम इतनी जल्दी से उनसे मित्रता कैसे कर सकते हैं ? "

" सब कुछ हो सकता है , मगर थोड़ी - सी सोच की जरूरत है ।

मूर्ख को काबू करने में थोड़ा समय लगता है किन्तु बुद्धिमान् तो प्यार से बहुत जल्दी काबू में आ जाता है ।

फिर यह राजा हंस तो बड़ा ज्ञानी है ।

विशेष रूप से उसका मंत्री चकवा बहुत ही बुद्धिमान् है ।

महाराज , भले ही आदमी आंखों के सामने न हो , फिर भी उसकी आदतों , उसके कार्यों से उसके गुणों का पता चल जाता है ।

" " मंत्रीजी , इस झगड़े को अब छोड़ो , जैसा भी उचित समझो वैसा काम करो ।

मैं आपके साथ हूं । " राजा ने अपने मंत्री गिद्ध से कहा । "

जो आज्ञा महाराज की । "

यह कहकर गिद्ध किले के बाहर निकल

गया ।

दूसरी ओर

बगुले ने राजहंस को आकर यह सूचना दी कि दुश्मनों की ओर से

उनके मंत्री मित्रता का हाथ बढ़ाने के लिए अपने राजा का संदेश लेकर आए हैं ।

राजहंस अपने मंत्री की ओर देखकर बोला , " कहीं यह शत्रु की नई चाल तो नहीं ? "

" नहीं महाराज , मुझे गिद्ध के स्वभाव का अच्छी तरह पता है ।

यह कौए की भांति कपटी नहीं होता ।

वैसे भी हम लोग तो हारे हुए ही हैं ।

हमें जीते हुए शत्रु से संधि करने में नुकसान नहीं होगा ।

इसलिए आप गिद्ध मंत्री का खुले दिल से स्वागत कीजिए ।

हमें इन लोगों से मित्रता करने में कोई नुकसान नहीं होगा ।

" " ठीक है मंत्रीजी , जो आपकी सलाह है वह हमारा आदेश है ।

" उसी समय गिद्ध को बड़े ही आदर - सम्मान से राज दरबार में बैठाया गया ।

राजहंस ने स्वयं खड़े होकर उसका स्वागत किया ।

यहां

चकवे ने गिद्ध को प्यार से गले लगाते हुए कहा , " मंत्री , का सब कुछ आप ही का है , हम आपकी हर सेवा के लिए तैयार हैं ।

आप हमें अपने साथ ही समझिए ।

" " बस - बस , आप लोगों की बातों से मैं बहुत खुश हुआ हूं ।

मैं केवल आपसे मित्रता करने आया हूं ।

धन - दौलत की भूख लालची लोगों को होती है , हाथ वे लोग जुड़वाते हैं जो खुशामद पंसद होते हैं ।

मुझे और मेरे राजा को केवल आपके सच्चे प्यार की जरूरत है में अपने महाराज की ओर से यही संदेश लेकर आपकी सेवा में आया हूं ।

बस , आपके महाराज राजहंस और आप स्वयं हमारे महाराज के पास चलें ।

" “ गिद्धजी , हम आपके महाराज से मित्रता करने से पूर्व इसका पूरा विवरण जानना चाहते हैं । "

“ सुनिए महाराज , बलवान् शत्रु से घिर जाने पर जब कोई भी बच निकलने का चारा न हो तो संधि कर लेनी चाहिए ।

विद्वानों ने सोलह प्रकार की संधियां बताई हैं ।

“ कपाल उपहार , औलाद उपहार , संगति , उपन्यास , प्रेम , संयोग इत्यादि ।

" हम जो संधि आपसे करना चाहते हैं , इस संधि में कोई ऊंचा नीचा नहीं होगा , दोनों समान मित्र रहेंगे ।

एक - दूसरे के दुःख - सुख के साथी ।

हमारे महाराज की एक बुद्धिमान् और वफादार मित्र की जरूरत है ।

क्या आप उनका मित्र बनना पसंद करेंगे ?

आपके बारे में तो यही

प्रसिद्ध है कि हंस लोग बड़े बुद्धिमान् और शुद्ध हृदय होते हैं ।

आप लोग किसी का बुरा भी नहीं चाहते , आप सत्यवादी हैं , एक सत्यवादी हज़ारों - लाखों पर भारी होता है । "

" यदि आप साफ दिल से यही चाहते हैं तो हमें कोई इन्कार नहीं ।

हम आपके साथ हैं ।

आपके महाराजा ने जो हमें सम्मान दिया उसे हम कभी भूल नहीं सकेंगे ,

हम अपने मंत्री चकवे को इस मित्रता के लिए आपके साथ भेज रहे हैं ।

" राजा हंस ने उठकर गिद्ध से हाथ मिलाया , फिर अपने मंत्री को गिद्ध के साथ भेज दिया ।

इस प्रकार मोर राजा के मंत्री गिद्ध राजहंस के मंत्री चकवे को साथ लेकर अपने राजा के पास गया ।

मोर राजा ने भी अपनी हार्दिक मित्रता दिखाते हुए चकवे को पूरे सम्मान से अपने दरबार में ऊंचे स्थान पर बैठाया और अपनी ओर से

यह स्पष्ट किया कि हम आज से राजा हंस के सच्चे मित्र रहेंगे और दुःख - सुख में उनका साथ निभाएंगे ।

इस तरह से दोनों पुराने शत्रु एक - दूसरे के मित्र बन गये ।

इससे युद्ध का भंयकर खतरा दोनों के ऊपर से टल गया ।

इसे कहते हैं बुद्धिमान् समय की गति को समझकर बड़ी से बड़ी भूल से बच जाते हैं ।

कहाः

यह कहानी पूरी करते हुए पंडितजी ने राजपुत्रों की ओर देखकर

" क्यों बच्चो ! अब तो आपको पूरा ज्ञान प्राप्त हो गया होगा ?

यदि कुछ और पूछना चाहते हो तो पूछ सकते हो ।

" " नहीं पंडितजी ! अब तो आपकी कृपा से हर प्रकार का ज्ञान प्राप्त हो गया है ।

अब तो हम अपने पिता के साथ राज - पाट के कामों में हाथ बंटाएंगे ।

वास्तव में विद्या - ज्ञान ही इस संसार का सबसे बड़ा प्रकाश है ।

हम आपके दिए हुए ज्ञान को सारे संसार में फैलाने के प्रयत्न करेंगे ।

इससे हमारे जैसे लाखों - करोड़ों , बच्चों का जीवन बलि होने से बच जाएगा ।

" धन्यवाद के साथ ही यह कहानी समाप्त कर दी थी पंडितजी ने ।