बीरबल और चोर

एक सुबह अकबर का दरबार सजा हुआ था, कार्यवाही चल रही थी।

तभी एक समृद्ध व्यक्ति ने आकर कहा, “मेरे पैसों की चोरी हो गई है।

मुझे मेरे सेवक पर शंका है पर किसने चोरी की है यह मैं नहीं बता सकता।

कृपया मेरी सहायता करें।”

बीरबल ने समृद्ध व्यक्ति के घर जाकर सेवकों से पूछा कि क्या उन्होंने चोरी की थी पर उन सब ने नकार दिया।

कुछ पल सोचकर बीरबल ने सभी सेवक को एक-एक छड़ी देकर कहा, “यह जादुई छड़ी है।

अभी यह सब एक बराबर हैं पर चोरी करने वाले की छड़ी कल सुबह तक दो इंच बढ़ जाएगी।

तुम सब घर जाओ और कल सुबह छड़ी लेकर आना।"

अगले दिन बीरबल ने ध्यानपूर्वक उन सबकी छड़ियों को देखा। उसे एक छड़ी दो इंच छोटी लगी। “ओ हो! तो तुमने ही चोरी की है... ये

छड़ियाँ साभ्गरण छड़ियाँ ही हैं।

इनमें कोई जादू नहीं है।

तुम्हें मेरी बात पर भरोसा हो गया और तुमने अपनी छड़ी दो इंच छोटी कर दी।

" फिर समृद्ध व्यक्ति से बीरबल ने कहा, “वही चोर है।”

सजा के रूप में चोर को जेल भेज दिया गया।