बीरबल और व्यापारी

एक दिन रायदास नामक एक कवि की मुलाकात एक व्यापारी से हुई।

रायदास ने अपनी कविताएँ उसे सुनाईं।

व्यापारी अत्यंत प्रभावित हुआ।

अगले दिन पुरस्कार देने का वादा किया तथा अपने घर बुलाया।

पर अगले दिन व्यापारी नकार गया कि उसने ऐसा कोई वादा नहीं किया था।

क्षुब्ध रायदास ने बीरबल से मिलकर उसे अपनी समस्या बताई।

बीरबल ने थोड़ी देर कुछ सोचा।

फिर रायदास को किसी मित्र के साथ मिलकर एक रात्रि भोज आयोजित करने के लिए कहा, जिसमें व्यापारी को भी निमंत्रित किया जाए।

रायदास ने मायादास से मिलकर बीरबल की योजना समझाई।

निर्धारित दिन व्यापारी मायादास के घर पहुँचा।

तीनों बातचीत में व्यस्त हो गए।

आधी रात व्यतीत हो गई पर भोजन नहीं परोसा गया।

इधर व्यापारी के पेट में चूहे दौड़ रहे थे।

अंत में जब उसने भोजन के लिए पूछा तब मायादास ने कहा, “मैंने आपको भोजन पर बुलाया था इसका कोई प्रमाण है क्या?"

व्यापारी कुछ बोल न सका।

तभी बीरबल भीतर आया

और उसने व्यापारी को याद दिलाया कि उसने रायदास के साथ कैसा बर्ताव किया था।

व्यापारी को अपनी भूल का आभास हो गया।

उसने हाथ जोड़कर क्षमा माँगी।

अपने गले का हार उतारकर उसने रायदास को दे दिया।

तत्पश्चात् सबने खुशी-खुशी साथ मिलकर भोजन किया।